जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2021: किताबों, विचारों और संवाद का एक वर्चुअल सफ़र

साहित्य के कुम्भ के तीसरे दिन इतिहास, संस्मरण, महामारी, तकनीक, बुकर विजेता 2020 के साथ ही और भी बहुत कुछ उल्लेखनीय रहा| विन्सेंट ब्राउन का जबरदस्त जिओ-पोलिटिकल थ्रिलर टैकी’स रिवोल्ट: द स्टोरी ऑफ़ एन अटलांटिक स्लेव वार; भोजपुरी से अंग्रेजी में अनूदित होने वाला पहला उपन्यास; कोविड-19 महामारी के खिलाफ भारत का संघर्ष; भारत के पहले चीफ इनफार्मेशन कमिश्नर वजाहत हबीबुल्लाह और भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच व्यावसायिक और निजी सम्बन्ध; धर्म की अवधारणा|
पत्रकार श्रीनिवासन जैन से चर्चा करते हुए प्रसिद्ध अमेरिकी भाषाविद, दार्शनिक, इतिहासकार, सामाजिक आलोचक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता, प्रोफेसर नोआम चोमस्की ने वैश्विक उथल-पुथल, ट्रम्प पश्चात् अमेरिका, और उन तथ्यों पर बात की, जिन्होंने सुधारों को संभव बनाया| उन्होंने हाल ही में हुए यूनाइटेड स्टेट कैपिटल के घेराव की घटना और उसके बाद आये बदलाव पर अपने विचार रखे| प्रोफेसर चोमस्की ने कहा कि अमेरिकी लोकतंत्र गंभीर समस्याओं से गुजर रहा था, और ये ट्रम्प के सत्ता में आने से पहले की बात है| चोमस्की ने कहा कि बदलाव कोई जादू की छड़ी नहीं है, इसके लिए आपको लड़ना पड़ता है|

“समय के साथ कोई भी राजनैतिक या सामाजिक आंदोलन चल निकलता है,” उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के संदर्भ में कहा| श्रमिक आंदोलन, नागरिक अधिकार आंदोलन और महिलाओं के अधिकार आंदोलन जैसे कुछ महत्वपूर्ण प्रगतिशील आंदोलनों पर विचार करते हुए, उन्होंने एकजुटता और निरंतर समर्पित संघर्ष के साथ आने के महत्व को स्वीकारा| “आशावादी या निराशावादी होने का कोई मतलब नहीं है। मुद्दा चुनौतियों का सामना करने, अवसरों का लाभ लेते हुए, समस्याओं को दूर करने का है।” उन्होंने कहा|

‘एक सिंगल मदर का कुईर (समलैंगिक) बेटा’| स्कॉटिश-अमेरिकन लेखक डगलस स्टुअर्ट ने इस तरह अपना परिचय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2021 के तीसरे दिन के सत्र में, लेखक और नाटककार पॉल मैकवे को दिया| डगलस को अभी हाल ही में उनके पहले उपन्यास “शगी बेन” के लिए वर्ष 2020 का बुकर प्राइज प्रदान किया गया है|  स्टुअर्ट ने अपनी माँ के बारे में बताया, जिन पर उनकी किताब का किरदार एग्नेस आधारित है| उन्होंने किरदार की गहराई में उतरते हुए, उसकी अपनी माँ के साथ समानताएं बताईं – जैसे एग्नेस को भी उनकी माँ की तरह ही शराब की लत थी, और जब स्टुअर्ट की उम्र महज 16 साल थी, तो उनकी माँ ने अपनी इस लत के सामने घुटने टेक दिए| स्टुअर्ट ने बताया कि ग्लासगो में उनकी माँ की थैरेपी का दौर स्टुअर्ट के लिए बहुत ख़ास था, और वो भी दूसरे पीड़ित व्यक्तियों के बच्चों की तरह हमेशा यही सोचा करते थे कि किस तरह अपनी माँ की ये लत छुड़ाई जाए|

आयरिश लेखक कॉलम मैकेन ने श्रीलंकाई लेखिका और कार्यकर्त्ता रू फ्रीमैन से अपनी किताब अपेरोगोन और कभी न ख़त्म होने वाली आशा पर बात की| अनुसंधान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने ‘बर्ड रिंगिंग सेंटर’ का ज़िक्र किया| उन्होंने कहा कि वह इस बात को लेकर काफी रोमांचित थे कि प्रवासी पक्षियों को कैसे पकड़ा गया और मुक्त कर दिया गया और यहां तक कि उन पाठकों से उनकी तुलना की गई जो इस स्थान पर आए थे और खुद में इसका एक हिस्सा लेकर वापस गए थे। किताब लिखने की पांच साल की अवधि के दौरान मैकेन रामी और बसम और उनके परिवारों से मिले| रामी और बसम अपेरोगोन के नायक हैं| किताब लिखने के सफ़र को उन्होंने ‘मुश्किल, लेकिन जरूरी’ और ‘असाधारण’ बताया|

एक प्रभावशाली सत्र में प्रोफेसर विन्सेंट ब्राउन ने प्रोफेसर माया जेसनोफ़ से अपनी किताब ‘टैकी’स रिवोल्ट’ पर चर्चा की| ये किताब एटलान्टिक के दास व्यापार के इतिहास, विद्रोह और हार-जीत की कथा सुनाती है| ब्रिटिश अटलांटिक वर्ल्ड के साम्राज्यी शासन के खिलाफ ये विद्रोह, जिसे टैकी का विद्रोह कहा गया, वर्षों की गुलामी से बाहर निकलने की एक कोशिश थी|

उदारवाद हमेशा पश्चिमी संस्कृति के मूल में रहा है क्योंकि यह सबसे आगे व्यक्तिगत स्वतंत्रता रखता है। पत्रकार और लेखक जॉन मिक्लेट ने इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया, “उदारवाद का आरंभ ही सत्ता के प्रति अविश्वास से हुआ”| “द डेथ ऑफ़ लिब्रलिस्म” सत्र के दौरान जॉन के साथ उपस्थित अमेरिकी लेखक एडम गोपनिक ने इस विषय पर सार्थक चर्चा की| गोपनिक ने पिछले तीस सालों में अमेरिका में जन-शिक्षा के घटते स्तर और उदारवाद की उपेक्षा पर रौशनी डाली| उन्होंने जोर दिया कि एक शक्तिशाली सामाजिक और लोकतांत्रिक सरकार कभी भी सामाजिक या उदारवादी स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाएगी|

धर्म की अवधारणा भारतीय दर्शन के लिए अद्वितीय है और इसका अनुवाद करना कठिन है क्योंकि इसका अर्थ विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग है। हिंदू आख्यान अस्पष्ट हैं और निर्देशात्मक नैतिकता से बचते हैं। विभिन्न व्यक्तियों के धर्म और कर्तव्यों का सामना नैतिक और मानवीय आयामों से होता है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, लेखक, विद्वान और अनुवादक बिबेक देबरॉय ने इन दुविधाओं और उनमें निहित नैतिक और कर्मगत विकल्पों की बात की। इस गहन सत्र में उन्होंने कीर्थिक शशिधरण से बात की, जिनका उपन्यास द धर्म फोरेस्टो अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है|    

रेकेट बेंकिसर के सहयोग से आयोजित सत्र “टिल वी विन: इंडिया’स फाइट अगेंस्ट द कोविड-19 पेंडेमिक” में डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, चंद्रकांत लहरिया और गगनदीप कंग ने पत्रकार माया मीरचंदानी से बात की| सत्र का नाम तीनों डॉक्टर की नई किताब के नाम पर ही आधारित था| इस किताब में उन्होंने महामारी से मिले जरूरी सबक और सावधानियों पर गहन रूप से लिखा है|  
फेस्टिवल के पहले वीकेंड की समाप्ति पर, “आल पावर करप्ट” शीर्षक से एक बहस का आयोजन किया गया, जिसमें शामिल थे: लेखक अमीश त्रिपाठी व पवन के. वर्मा, डच पत्रकार किम घेट्स, भारतीय राजनेता पिनाकी मिश्रा, प्रसिद्ध वकील पिंकी आनंद और स्तंभकार सुहेल सेठ| वक्ताओं को विभिन्न पहलुओं से ये साफ़ करना था कि क्या सच में किसी भी तरह की पावर इन्सान को भ्रष्ट बना देती है या इसका कोई अन्य पहलु भी है? क्या पावर अपने आप में भ्रष्ट होती है या ये तानाशाह होने पर भ्रष्ट हो जाती है?
प्रस्तावित विषय के विरोध में बोलते हुए पत्रकार, लेखक और निरीक्षक किम घेट्स ने कहा, “मैंने कई बदतर स्तर की पावर को देखा और उन पर लिखा है| सत्ता का उपयोग हर स्तर पर किया जाता है, नौकरशाहों द्वारा, जेल के प्रहरियों द्वारा, तानाशाहों द्वारा, लेकिन मैंने भलाई के लिए भी पावर का इस्तेमाल होते देखा है – लोगों की मदद के लिए, ज़िंदगी बचाने के लिए| तो मैं इसी पर भरोसा करना चाहता हूँ कि पावर भलाई भी कर सकती है, और अच्छे लोग सत्ता में आने के बाद भी अपनी अच्छाई को बरक़रार रख सकते हैं|”
प्रस्तावित विषय के पक्ष में बोलते हुए, पवन के. वर्मा ने समझाया कि जरूरी है “इस प्रतियोगिता भरी दुनिया में इंसानी प्रकृति को न आँका जाए, खासकर राजनीति में| अगर आपके पास सत्ता आ जाती है, तो मान लिया जाता है कि आप उसे अपने पास बरक़रार रखने के लिए कानूनों को किसी भी हद तक तोड़ेंगे|”
अमीश त्रिपाठी ने इसका विरोध करते हुए कहा, “प्रभु राम के पास असीम शक्ति थी, लेकिन वो भ्रष्ट नहीं थे, तो सत्ता के आने से इंसान की वास्तविक प्रकृति सामने आ जाती है|” अमीश ने मानव प्रकृति के अनावरण के रूप में शक्ति की बात की और बताया कि ये आपके सच को उजागर कर देती है| उन्होंने वर्तमान परिदृश्य में दलाई लामा का नाम लिया, जो असीम शक्ति का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए कर रहे हैं|
पिनाकी मिश्रा ने प्रस्तावित विषय के विरुद्ध बोलते हुए अब्राहम लिंकन का उद्धरण दिया, “लगभग सभी इंसान कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं, लेकिन अगर आप किसी व्यक्ति के चरित्र को जानना चाहते हैं, तो उसे पावर दे दो|” पब्लिक सेक्टर में काम करने के अपने अनुभव से पिनाकी ने कहा, “पावर को एक अंत की तरह नहीं, बल्कि अंत के स्रोत के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल लोगों का जीवन बदलने में होना चाहिए|”
प्रस्तावित विषय के पक्ष में सुहेल सेठ ने कहा, “बहुत से लोग अच्छा करते हैं, लेकिन हम उस राजनीतिक शक्ति की बात कर रहे हैं, जिसका सिस्टम में दुरुपयोग किया जाता है।” उन्होंने तर्क दिया कि “परोपकार” कोई नियम न होकर, एक अपवाद, स्व-इच्छा है।
पिंकी आनंद ने प्रस्तावित विषय के विरोध में कहा, “मुझे लगता है कि समय की कसौटी ने हमें दिखाया है कि संस्थागत चुनौतियां, संस्थागत नियंत्रण, जांच और संतुलन के माध्यम से गठन और लोकतंत्र कार्य कर सकते हैं, निश्चित रूप से ये लोगों की इच्छा है।”
पवन के. वर्मा ने मजबूती से अपनी बात रखते हुए कहा, अगर आल पॉवर करप्ट नहीं है, तो “लोकतंत्र में जांच और संतुलन की ज़रूरत क्यों है? इनका होना ही दर्शाता है कि सत्ता भ्रष्ट होगी ही होगी|”
अंत में, जबकि सभी पैनलिस्ट आपसी समझ पर सहमत थे, लेकिन श्रोताओं ने बेखटके पोल द्वारा अपना चुनाव किया| उन्होंने “आल पावर करप्ट” के पक्ष को विजेता बनया|
सप्ताहांत भी अनिरुद्ध वर्मा कलेक्टिव, रहमत-ए-नुसरत और ‘बिलोंगिंग’, जैसन ओ’रुर्के व दीपमोय दास की मधुर प्रस्तुतियों से गूंजता रहा|
आइकोनिक फेस्टिवल के इस 14वें संस्करण का आयोजन विशेष वर्चुअल प्लेटफार्म पर 28 फरवरी तक किया जायेगा| आने वाले दिनों में प्रमुख सत्र रहेंगे: जलवायु परिवर्तन पर बिल गेट्स के विचार; जॉन ज़ुब्रजेक अपनी किताब द हाउस ऑफ़ जयपुर के विषय में बताएँगे; कैमिला टाउनसेंड और पीटर फ्रंकोपन एज़्टेक एम्पायर की चर्चा करेंगे; शांति के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाली और सफल लेखिका मलाला युसूफजई; होमी के. भाभा के साथ चर्चा में कलाकार अनीश कपूर; अपनी भारतीय जड़ों की खोज में मरीना व्हीलर| चिपको आन्दोलन पर आयोजित एक सत्र में रामचंद्र गुहा, शेखर पाठक और मनीषा चौधरी से संवाद करेंगे मुकुल शर्मा| बोरिआ मजुमदार की किताब पर आधारित सत्र स्पोर्ट एंड ए बिलियन ड्रीम्स: 2021 में पुलेला गोपीचंद और मानसी जोशी शामिल होंगे|