करवा चौथ: जानिए सुहागिन महिलाएं क्यों रखती है आज के दिन व्रत, यह है प्रचलित कथा

पति की स्वस्थ ओर लंबी आयु की कामना के लिए सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ पर्व का एक विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं पति के लिए व्रत रखती हैं और इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रोदय के बाद पूजा कर अपना व्रत खोलती है। इस बार 24 अक्टूबर 2021 को करवाचौथ मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में करवा चौथ सबसे शुभ त्योहारों में से एक माना जाता है। ये त्योहार पति-पत्नी के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है। करवा चौथ की शुरुआत सुबह-सुबह की रस्म सरगी से शुरू होती है। सास के द्वारा तैयार सरगी खाने के बाद से ही महिलाओं का व्रत शुरू हो जाता है और शाम को श्रृंगार करके तैयार होती हैं और चंद्रमा का पूजन करती हैं, अर्घ्य देती हैं और छलनी से चांद को देखती हैं। तिलक करने के बाद पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं और पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं। इसके बाद वे अपना व्रत खोलती हैं। करवा चौथ के दिन पति भी अपनी पत्नी का पूरा ख्याल रखते हैं और उन्हें गिफ्ट्स देकर खास महसूस कराते हैं। इस दिन पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं

यह है शुभ मुहूर्त

24 अक्टूबर को शाम 5:45 बजे से 6:59 बजे तक पूजन का शुभ मुहूर्त है। इस बार करवा चौथ में चांद का पूजन विशेष फलदायी होगा। चंद्रमा का पूजन महिलाओं के लिए पति और बच्चों के लिए अच्छा रहेगा। करवा चौथ का पूजन चंद्रोदय के पहले करना उत्तम होगा। चंद्रोदय रात 8.07 बजे होगा। इससे पहले प्रदोष बेला में 7.30 बजे तक पूजन कर सकते हैं। चतुर्थी 23 को सुबह 3:01 बजे से शुरू होकर 25 अक्टूबर को 5:43 बजे तक रहेगी।

करवा चौथ की कथा

यदि हम करवा चौथ की प्रचलित कथाओं को देखें, तो इनमें स्त्रियोंको निरुपाय या असहाय नहीं, बल्कि सशक्त दिखाया गया है। पौराणिक कथाओं में भी स्त्रियां सशक्त भूमिका में नजर आती हैं और वे अपने पति और परिवार के लिए संकटमोचक बनकर उभरती हैं। जिस देश में सावित्री जैसे उदाहरण हैं, जिसने अपने पति सत्यवान को अपने सशक्त मनोबल से यमराज से छीन लिया था, वहां की स्त्रियां साहसी क्यों न हों।

यह है प्रचलित कथा

करवा चौथ को लेकर एक कथा भी प्रचलित है। उसके अनुसार, प्राचीन समय में करवा नाम की एक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। उसने पत्नी को सहायता के लिए पुकारा। करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और तत्काल धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। उसका सिरा पकडक़र करवा पति के साथ यमराज के पास तक पहुंच गई। यमराज के साथ प्रश्न उत्तर के बाद करवा के साहस को देखते हुए यमराज को उसके पति को वापस करना पड़ा। जाते समय उन्होंने करवा को सुख-समृद्धि के साथ वर भी दिया- जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा। इस कथा में करवा ने अपने सशक्त मनोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की। मान्यता है कि जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी। व्रत रखने का अर्थ ही है संकल्प लेना। वह संकल्प चाहे पति की रक्षा का हो, परिवार के कष्टों को दूर करने का या कोई और। यह संकल्प वही ले सकता है, जिसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो। प्रतीकात्मक रूप में करवा चौथ पर महिलाएं अन्न-जल त्याग कर यह संकल्प लेती हैं और अपनी इच्छा शक्ति की परख करती हैं। यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं, बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है।