खो-खो की दुर्दशा: शहर में नहीं हैं कोच और मैदान, खिलाड़ियों का भविष्य अधर में

खो-खो
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चंडीगढ़। भारत में पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने के नाम पर तमाम योजनाएं बनती हैं, विज्ञापन चलते हैं, और घोषणाएं भी होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे एकदम उलट है। इसका सबसे जीवंत उदाहरण चंडीगढ़ में देखा जा सकता है, जहां खो-खो जैसे ऐतिहासिक भारतीय खेल की हालत दयनीय है। ना कोच हैं, ना मैदान, और ना ही कोई सरकारी प्रोत्साहन। खेलों की राजधानी में खो-खो के लिए नहीं कोई कोना

चंडीगढ़ को आमतौर पर एक विकसित शहर और शैक्षिक व खेल गतिविधियों के लिए अनुकूल माना जाता है। लेकिन जब बात खो-खो की आती है, तो यहां के हालात चिंताजनक हैं। चंडीगढ़ युवा दल के प्रधान विनायक बंगिया और संयोजक सुनील यादव ने बताया कि खो-खो को लेकर जो मूलभूत ढांचा चाहिए, वह पूरी तरह नदारद है। न तो शहर में कोई समर्पित कोच है और न ही एक ढंग का मैदान।

यह हाल तब है जब हाल ही में भारत की गर्ल्स और बॉयज़ टीम ने 2025 में आयोजित खो-खो वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रच दिया है। बावजूद इसके, शहर में इस खेल के विकास की कोई ठोस पहल नहीं की गई। जिन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपनी चमक बिखेरी है। लेकिन प्रशिक्षण और मार्गदर्शन की कमी के चलते वे खो-खो से दूर होते जा रहे हैं। अधिकांश खिलाड़ी निजी अकादमियों के भरोसे हैं, जहां वे महंगे शुल्क देकर कोचिंग ले रहे हैं।