किरोड़ी पूजा

पक्का तो नहीं कह सकते, मगर शंका जरूर है कि जिस तथाकथित पुजारी या पुजारियों ने जो पूजा की, वह दुनिया की सब से महंगी होगी। आने वाले कल में भले ही कोई एक पाउंडा ऊपर चढ़ जाए मगर आज और गुजरे कल में उसे वह खिताब देना अतिपूयोक्ति नहीं होगी। आगे चल कर शंका यकीन में भी बदल सकती है। अभी हम कहे कि वैसा हुआ होगा फिर कहेंगे वैसा ही हुआ, जैसा हम ने कहा था। चूंकि इस लिए के चक्कर में पड़ गए तो गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में स्थान पक्का। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

आगे बढऩे से पहले एक बार फिर साफ कर दें कि हमे शक और शंका के कीड़े पालने का शौक नहीं है। यह बात हम पहले भी कह चुके है, आज फिर दोहरा रहे हैं। आगे भी ऐसा हो सकता है। हमें पता है कि एक ही रिकॉर्ड बार-बार घिसने से बोरियत हो जाती है। हमारी भाषा में उसे ”तांता ताणना कहते हैं। सुबह देखो तो वही राग-शाम देखो तो वही खटराग। दोपहर देखो तो वही राग-रात देखो तो वही खटराग। सुनते-सुनते कान पक जाते है। पण खबरिया चैनल्स में ऐसा नहीं होता। लोग उनसे भी पक जाते हैं मगर वो खिरने का नाम नहीं लेते। खिरने को लेकर अचकच हो रही होगी। हमारी पीढ़ी के लोग भले ही जान गए होंगे।

पहचान गए होंगे, मगर नई नस्ल वाम-दक्ष ताक रही होगी। ”खिरने के माने स्वाभाविक रूप से गिरना। उसमें भी लोचा। गिरना तो गिरना होवे है, इसमें स्वाभाविक और अस्वाभाविक कहां से टपक पड़ा। ऐसा किसी का सोचना है-ऐसा किसी का समझना है। जब कि ऐसा होता नहीं है। पत्रवाचन से स्थिति साफ हो सकती है। इसके बावजूद भी कोई ना माने तो मरजी उसकी। आपने पेड़ों पर लगे फल तो देखे ही होंगे। डाल पके फलों के नीचे गिरने को ”खिरना कहा जाता है। कई बार बाग मालिक कच्चे फल तोड़ के उसे केमिकल के जरिए पकाते हैं। आज ऐसा ज्यादा हो रहा है। डाल पके फल कम और केमिकल से पकाए फल ज्यादा बाजार में आ रहे हैं।


कुछ लोगो के नसीब में वो लिखा होता है जो हरेक की किस्मत में लिखा नहीं होता। उन्हें बगैर कुछ किए-धरे सब कुछ मिल जाती है। उसे पकी-पकाई मिलना कहा जावे है। उन्हें ना तो गेहूं लाने पड़ते है ना चुगणे पड़ते है। उन्हें ना तो गेहूं पिसाने पड़ते है ना आटा गूथना पड़ता है। उन्हें ना तो रोटी बेलनी पड़ती है ना सेंकनी पड़ती है। पकी-पकाई मिलती है वह भी चुपड़ी हुई। बस चेपते रहो। ढंगढांग से चले तो जिंदगी भर की रोटी पक्की वरना एक-एक बाल्टी निकालने से टैंक भी खाली हो जाता है। फल पकाई भी इस में शुमार मगर मतलब मायने कुछ हट के। इस के तार खबरिया चैनल्स से जुड़ते हुए। जब चैनल्स एक खबर को दिन भर घिस सकते हैं तो हम शक-शंका पे दो-चारेक बार पत्रवाचन क्यूं नहीं कर सकते।


हथाईबाज शक-शंका-वहम से सदा दूर रहे है और आइंदा भी रहेंगे। मगर यहां शंका इसलिए कि पहले भी ऐसा हो चुका है या नहीं। हमने तो देखा-सुना नहीं। हां, पूरा उत्सव किरोड़ी हो गया हो तो कह नहीं सकते। आधा घंटे की पूजा में छ: करोड़ की टन…टन.. पहली बार ही सुनी। आधे घंटे में छह करोड़ का कपूर जलता पहली बार सुना। आधे घंटे की पूजा में छह करोड़ की धूप-अगरबत्ती का धुंआ उठते पहली बार देखा। आधे घंटे की पूजा में छह करोड़ की माला-चौसरे चढते पहली दफे देखे। आधे घंटे की पूजा में छह करोड़ के दीपक जलते पहली बार देखे। आधे घंटे की पूजा में छह करोड़ की परसादी पहली बार देखी। जब पूजा हुई है तो धूप-दीप-अगरबत्ती-कपूर-पुष्प-माला-चौसरे-प्रसादी-सब कुछ चढ़े होंगे। इन सब पर कितना खरचा होणा था। ज्यादा से ज्यादा ग्यारह सौ। खीचताण के ग्यारह हजार। इससे भी ज्यादा खींचे तो इक्कीस हजार। इक्यावन हजार। एक लाख-एक हजार-एक सौ इक्यावन मान लो। इसके आगे काळी भींत मगर भाईसेणों ने पूजा के प्रसारण में छह करोड़ रूपए फूंक दिए। वह भी अपने आप को गरीब कहने वाली पारटी के मुखिया ने।


आम आदमी पारटी के सुप्रीमों और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिवाली पर लक्ष्मीपूजन का आयोजन करवाया। अच्छी बात है। मां लक्ष्मी हम सब को वैभव दे। स्वस्थ्य एवं समृद्ध रखे। पूजा तक तो ठीक है मगर तामझाम पर छह करोड़ खरच कर दिए। आधे घंटे की पूजा का लाइव प्रसारण किया गया जिस पर छह करोड़ रूपए लग गए। एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा चाही जानकारी में किरोड़ी पूजा का पता चला।
सुना-पढ़ा तो हैरत हुई। लिखा तो भी अचंभा हुआ। पूजा-पाठ तक तो ठीक है। ढोल-नगाड़ों तक तो ठीक है। ओम जय… जगदीश हरे… और जय लक्ष्मी मैया… तक तो ठीक है। आधे घंटे की पूजा पर छह करोड़ रूपए स्वाहा कर देना, जंचा नहीं।