आजाद के बाद किस का पुतला !

पक्का तो नहीं कह सकते, मगर जैसा चल रहा है उसको देखते हुए तो ऐसा लगता है मानो बाईस और जलने हैं। एक-एक कर के जलाए तो बाईस दिन की धमचक। एक दिन में दो निपटे तो ग्यारह दिन का धमाल। हो सकता है सामूहिक दहन कर दिया जाए। ऐसा हुआ तो एक दिन में कार्यक्रम और क्रियाकर्म दोनों निपट जाणे हैं, मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा। अभी रायता और बिखरना है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

दहन-जलन और क्रियाकर्म के बारे में पढ-सुनकर ऐसा लगा मानो मामला लोचानाक है। इसमें बाईस का पुट देखा तो उलझन सी खड़ी हो गई। बाईस और जलने हैं की बात ने इसे और ज्यादा रहस्यमय बना दिया। अगर सीधी सादी संख्या बाईस होती तो नो पंगा-नो लफड़ा। इक्कीस के बाद बाईस और तेईस के पहले बाईस। बाईस हजारी नंबर हो सकता है। कैदी नंबर हो सकता है। क्वाटर नंबर हो सकता है।

मकान नंबर हो सकता है। संजोग से हम जिस क्षेत्र में रहते हैं। वो वार्ड संख्या बाईस में पडता है, मगर वहां के ज्यादातर लोगों को अपनी पार्षद का नाम पता नहीं। शकल तो चुनाव से पहले भी नही देखी। जीतणे के बाद तो देखणे का सवाल ही नही उठता। चुनाव जीतने के बाद नजर आ जाए तो नेता ही क्या।

हमने ना अपने सांसद को देखा, ना विधायक को। सोचा था कि स्थानीय निकाय के चुनाव तो टोले-मौहल्ले स्त्तर के होते हैं। कम से कम पार्षद के दीदार तो होते रहेंगे, मगर उनके दर्शन भी दुर्लभ। वोट मांगणे उनके समर्थक आया करते थे। रिश्तेदार आया करते थे। पति-देवर और ससुर-जेठ आया करते थे। कहते थे फलाणे री लुगाई ने वोट देणा है। हमने दे दिया और वो मोहतरमां पार्षद बन गई। मगर आज भी हमें उसका नाम पता नहीं। कोई पूछे तो बताते हैं-‘फलाणिएं री बहु है।

जैपर में बाईस गोदाम क्षेत्र है। हमें वहां बाईस तो क्या बीस-इक्कीस-अट्ठारह-उन्नीस गोदाम भी नहीं दिखे। किसी जमाने में होंगे तो होंगे। तब का पड़ा नाम आज भी चल रहा है और आइंदा भी दौडेगा। अगर ब्लॉक संख्या बाईस या गली संख्या बाईस दर्शाई गई होती तो दिमाग पे जोर डाल के कोई ना कोई रास्ता खोज लेते पर यहां जलाने की बात कही गई। बाईस और जलने के माने क्या। सामूहिम दहन और क्रियाकर्म का सस्पेंस अलग से। दहन में बाईस की संख्या का खुलासा भी किया गया है जिससे कयास लगा सकते हैं कि मामला गंभीर है। भले ही लोग थप्पड़ खा के मुंह लाल करें। भले ही लोग उसे घर का मामला कहें मगर अब वो बातें नहीं रहीं। आज जी-23 खड़ा हुआ कल इस ग्रुप-गुट की संख्या बढ भी सकती है। इनमें से एक का पुतला तो फूंक दिया गया, बाकी के नंबर भी आ जाणे हैं और अगर गुट के सदस्य बढ गए तो पुतले भी बढ जाणे हैं।

जहां तक हमारा खयाल है, समझने वाले समझ गए होंगे कि इशारा किस की तरफ है। कई लोगों को इशारे की भी जरूरत नहीं। हो सकता है कई लोग इशारा ना समझे हों। उनके लिए हम हैं ना और जो जान के अनजान बनें रहें उनका इलाज एम्स और वेदांता में भी संभव नहीं। विदेश ले जाने का भी कोई फायदा नहीं। हमारा काम समझाना है, कोई समझे तो ठीक वरना मरजी उनकी। ऐसे लोग और कोई बात समझें या ना समझें। अपने मतलब की बात फटाक से समझ जाते हैं।

कांगरेस के 23 नेता पिछले दिनों से पार्टी आलाकमान से नाराज चल रहे हैं। इनमें से ज्यादा को सियासतखोरी का उतना अनुभव है जितनी उम्र पार्टी के युवराज की है। मीडिया ने उन्हें जी-23 से विभूषित किया। जी बोले तो गुट और जी बोले ग्रुप। इसमें गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ नेता शामिल है। उन्हें राहुल गांधी की कार्यप्रणाली बिल्कुल रास नही आ रही। पार्टी के वरिष्ठ नेता जाजम साफ करते हैं और राहुल की उछलकूद सारा खेल बिगाड़ देती है। इन लोगों ने पिछले दिनों कश्मीर में सम्मेलन किया था, जिसमें आजाद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर दी। यह तारीफ उन्हें भारी पड़ गई।

सियासत का ककहरा सीख रहे चंगु-मंगु सड़क पे उतर गए। उन्होंने आजाद का पुतला फूंक डाला और उन्हें पार्टी से बाहर निकालने की मांग कर दी। आजाद जब राजनीति में आए उस वक्त जिन लोगों के भ्रूण भी नही पडे। वो लोग उनके पुतले जला रहे हैं।
हथाईबाजों को शक है कि ऐसे पुतलेबाजों की पीठ थपथपाई जा रही है। आज आजाद का पुतला जला। कल आनंद शर्मा की बारी। फिर सिब्बल की तैयारी। एक-एक कर के बाईस पुतले और जलणे हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होणे हैं। जलन-दहन के फेर में ऐसा ना हो कि कांगरेस सियासी रेस से और ज्यादा बाहर ना हो जाए।