हंसते-हंसते सहन करें कर्मों को : साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा

नागौर। जयमल जैन पौषधशाला में बुधवार को पर्युषण पर्व के पांचवें दिन साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने प्रवचन में कहा कि पर्व के पावन दिवस जीव को उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर, राग से विराग, स्वार्थ से परमार्थ, भोग से त्याग, अंधकार से प्रकाश, वासना से साधना, कृष्ण से शुक्ल पक्ष की ओर ले जाते हैं।

जिनवाणी श्रवण करने से साधक में परिवर्तन आता है। महापुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर उनके समान गुणधारी बनने का प्रयास करना चाहिए। चाहे कोई साधु हो या संत, राजा हो या रंक, गरीब हो या अमीर, पुरुष हो या स्त्री या चाहे तीर्थंकर भी क्यों न हो सभी को अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। पाप करने के बाद भयभीत होने से उसके फल से बचा नहीं जा सकता।

अत: पाप करने से पूर्व ही सावधान रहना चाहिए। संसार में कभी खुशियों का मेला लगता है, तो कभी गम के कारण आंखों में आंसू भी आ जाते हैं। आशावादी बनते हुए हर परिस्थिति में वर्तमान में जीना चाहिए। भविष्य की चिंता नहीं करनी चाहिए। कायोत्सर्ग के द्वारा मन, वचन और काया को स्थिर किया जा सकता है। मन को स्थिर करने के लिए काया को स्थिर करना भी नितांत आवश्यक है। साध्वी ने कहा कि त्याग से जीव की प्रगति एवं आत्मा का उत्थान होता है। जिस प्रकार भोजन को पकाने के लिए आग चाहिए, गाना गाने के लिए राग चाहिए, रोटी खाने के लिए साग चाहिए। उसी प्रकार आत्मा के उत्थान के लिए त्याग चाहिए। संचालन संजय पींचा ने किया।

जयेश पींचा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में प्रवचन और चौपाई की प्रभावना तथा प्रश्नोत्तरी विजेताओं को पुरस्कृत करने के लाभार्थी अकल्यादेवी-हस्तीमल पींचा एंड सन्स नागौर, सूरत, गुवाहाटी रहें। प्रवचन प्रश्नों के उत्तर सुनील ललवानी, ज्ञानचंद माली, प्रेमचंद चौरड़िया, खुशबू पींचा, रीता ललवानी एवं सरोज चौरड़िया ने दिए।

पांचीदेवी ललवानी ने 6 उपवास एवं तोषिना ललवानी ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान साध्वी वृंद से ग्रहण किए। आगंतुकों के भोजन का लाभ ललित, विदित सुराणा परिवार ने लिया। इस मौके पर मूलचंद ललवानी, मनोज ललवानी, फतेहचंद छोरिया, जतन बाघमार सहित सैंकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।

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