आओ मिलकर मांगते हैं…

इसे कहते हैं चुनाव। भले ही लोग इन पर चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात का टेग टांगे। भले ही तस्वीर साफ होने से पहले इन पर ‘गांव बसा ही नहीं और मांगणिएं आ गए और तस्वीर साफ होने के बाद ‘तू भी मांगीलाल-मैं भी मांगीलाल-तू इधर मांग मैं उधर मांगता हूं का टंगे। एक बार तो सभी को गलियों में आना ही पड़ता है, बाद में भले ही गई पांच साल की। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


‘चुनाव की उत्पत्ति कब हुई। किस ने की। ईसा पूर्व हुई या ईसा के बाद। कौन से काल-खंड या युग में हुई, इसके बारे में किसी के पास कोई अधिकृत जानकारी नही होगी। कोई किलीखाने में खड़ा होकर किले पर कागज की पुड़ी फैंकने का दम भर दे, तो कह नहीं सकते। ऐसे लोगों को अपने यहां फैंकू कहा जाता है। धरू और हांकू उसके पर्यायवाची शब्द। करने वाले इनकी विस्तृत परिभाषा करते हैं। जो ऊंची-ऊंची फैंके वो फैंकू। अपने यहां भांत-भांत के फैंकू पाए जाते हैं पर उन्हें इस संबोधन से पुकार नही सकते। एथलेटिक्स में फंै काफैंकी की प्रतियोगिता होती है। भाला फैंक-तश्तरी फैंक। जो ज्यादा दूरी पर भाला अथवा तश्तरी फैंकता है, वह विजेता। राम लाल ने भाला छह मीटर दूरी पे और श्यामलाल ने पांच प्वाइंट तीन मीटर की दूरी पर फैंका तो रामलाल मीर। यही टोटका तश्तरी फैंक प्रतियोगिता में लागू होता है। इन के विजेता को हम ‘फैंकू नही कह सकते। उन पर पदक विजेता अथवा प्रथम रहे का टेग टांगा जाता है। तो फैंकू कौन-इसका जवाब भी तैयार। एक ने कहा-मेरे दा’जी ने गुलाब सागर में ‘गंठा लगाया और अगले दिन घर में लगे नल से बाहर निकले। दूसरे ने कहा-बरसात लंबे समय तक नही हुई तो राजा ने मेरे दा’जी को बुलाकर ‘कुछ जतन करने को कहा। इस पर दा जी ने खेत में पड़ा बांस बादलों में घुसेड़ा तो इतनी बरसात हुई कि पूरा राज्य धाप गया। इसे कहते हैं फैंकाफैंकी। विजेता कौन-आप बता दो। इसे कहते हैं-धराधरी। पहले पायदान पे कौन। इस की एम्पायरिंग भी आप के जिम्मे।


इसमें ‘टोरे भी शामिल। अपने यहां एक से बढ़कर एक-आले से आले टोरेबाज मिल जाणे हैं। आसमां पे तारे कितने। सात लाख तीस हजार दो सौ पैंसठ। यकीन नही हो तो गिन के देख ल्यो। टोरानंद ने टोरा टेक दिया, किस के पास इतनी फुरसत जो तारे गिनने बैठे। बैठ भी जाएं तो सफलता मिलना मुश्किल। इस की पलट में एक कहावत भी आम है। उस पर भी अमल करें तो कुछ हासिल नहीं होणा। कहावत है-‘नाई अंकल.. नाई अंकल बाल कितने-थावस रखो, अभी सामने आ जाएंगे। सामने आने के बाद कोई उनकी गिनती करके बता दे तो मान जाएंगे। ऐसे में यहां भी फैंकूपंथी का प्रदर्शन किया जा सकता है। चुनाव पर भी यही बात लागू होती है।


चुनाव के माने किसी को चुनना। चुनाव का मतलब चयन करना। टीम का चयन करना। खिलाड़ी का चयन करना। कपड़ों का चयन करना। गहनों-गांठों का चयन करना। बरतन-भांडों का चयन करना। स्थान-मकान का चयन करना। भूखंड का चयन करना। घर बिक्री के सामान का चयन करना। लुड़का-लुड़की एक-दूसरे का चुनाव करते हैं। सदियों पूर्व जिस प्रथा को ‘स्वयंवर कहा जाता था, एक हिसाब से वह ‘वर का चयन करना ही तो था। सीता स्वयंवर से पहले किसी का चयन हुआ, हमने तो नही सुना। तभी तो अंदेशा होता है कि चयन-चुनाव की प्रक्रिया त्रेता युग से प्रारंभ हुई होगी। जिसने आगे चल कर विस्तृत रूप ले लिया। आज उसका जिक्र होते ही ‘वोट दो-वोट दो वाले चुनावों पर ठप्पा ठुक जाता है। मतदान वाले चुनावों ने सारे सलेक्शन-चयन-चुनाव को पीछे धकेल दिया। चर्चा भी तो उन्हीं की हो रही थी।


इन दिनों शहर में नगर निगम चुनावों का हो-हल्ला जोरों पर हैं। हर गली-गुवाड़ी और चांतरियों-नुक्कड़ों पर इन्हीं की धूम। कहने को तो निषेधाज्ञा और रात दस बजे के बाद सड़कों पर नाहक डोलने की मनाही मगर कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां रात दस बजे के बाद ही जाजम जमती है। कई स्थानों पर महफिल। बाकी शहर में दिन भर चहल-पहल। चुनावों में सब मांगणियार। बोले तो-मांगने वाले। देने वाले देवीलाल और मांगने वाले मांगीलाल। चुनाव लडऩे वालों में से कई लोग करोड़पति-कई लखपति और कई दस-बीस हजारिए मगर फिलहाल सब के सब एक पंगत में। करोड़पति भी रोड़ पर और रोडपति गली-कूंचे में। चुनाव ने सबको मांगणियार बना दिया। भायाजी-मायाजी सुबह-सवेरे अपने समर्थकों के साथ सड़कों पे उतर जाते हैं। घर-घर दस्तक देकर हाथ जोड़ते हैं। अपने पक्ष में वोट देने की अपील करते है। उसके चाल भई आगे। वोटर्स भी स्याणे-एक नंबर के स्याणे। वो सब को वोट देते हैं। हां सा, आप ने ‘इज वोट देवांला। अंगुली किस के नाम की पीं..म.. बजाएगी, यह बाद की बात। वोट पडऩे के बाद कोई किसी को पूछने वाला नहीं, फिलहाल तो देवीलालों की कॉलर ऊपर।