म्हैं जाणा नै म्हारा टाबर

मामे ने चार लाइने क्या लिख दी, कोहराम मच गया। होणा तो यह चाहिए कि अगर लिखाई में सच्चाई है-तो उस पर गौर करना चाहिए और अगर बकवास है तो मुस्करा के रह जाना चाहिए था या कि चंगुओं-मंगुओं को सड़क में उतार देते। दूसरी धारा ये कि उन चार लाइनों ने बचपने से लेकर अब तक कहीं-सुनी बातों-उलाहनों पर पड़ी राख हटा दी। अंदर धुआं भी था-तपिश भी। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


बात शुरू तो मामे से होणी चाहिए थी। इस का कारण ये कि जब हथाई का बिस्मिल्लाह ही मामे से हुआ है तो उसे आगे ही रखना चाहिए। क्यूंकि हथाई का मुख्य केंद्र ही मामा है तो उसे एंड की लड़ाई में आगे लाना चाहिए, ऐसा हमारा मानना है। आप ने फिल्में तो देखी होंगी। यकीनन देखी होंगी। ठेठ गांव-देहात मे रहने वालों की बात और है, अब तो उनके पांव भी रह-रह के शहरों की तरफ उठते रहते हैं, तिस में आप तो पक्के शहरिए है। कोई शहर में रहे और फिलिम नही देखे, ऐसा हो ही नही सकता। अब तो खैर फिल्मों का इतना क्रेज नही रहा वरना एक जमाने में लोग पहले दिन पहला शो देखने में अपनी शान समझा करते थे। ज्यादातर फिल्मों में एंड की लड़ाई होती है। एक तरफ अकेला हीरो और दूसरी तरफ खलनायक की पूरी टीम। पांच-दस-पंद्रह मिनट की धां..धूं.. के बाद तू मेरा जानू है.. तू मेरा दिलवर है.. और फिलिम एंड। पर यहा एंड से शुरू।


इसके बाद कोहराम को लेते हैं। अपने यहां ऐसे लोग भी हैं, जो कोहराम को नाम से जोड़ते हैं। आप जानते होंगे। ये जानते होंगे। वो जानते होंगे, हो सकता है वो नही जानते होंगे। उन की नजरों में जैसा देवाराम। जैसा तेजाराम। जैसा रामूराम। जैसा हड़मान राम। जैसा दीपाराम वैसा कोहराम। उन्हें यह बताना जरूरी कि कोहराम गांव के किसी भाए का नाम नहीं वरन हंगामें-बवाल-हुड़दंग और हाकादड़बड़ को कोहराम से जोड़ा जाता है। अब सवाल ये कि चार लाइनों ने कोहराम कैसे मचा दिया, तो भाई चार लाइनें तो बहुत ज्यादा हैं, अपने यहां एक शब्द ने कोहराम मचा रखा था। किसी के खिलाफ कोई एक एतराजनाक शब्द लिख के सोशल मीडिया पे डाल दे, फिर देखो कोहराम मचता है या नहीं। कई बार तो कोहराम भी फीका नजर आने लगता है। शुकर है कि वहां कोहराम ही मचा।


चार लाइन की बात करें तो कई लोगों की अंगुली नजर हास्य कवि सुरेन्द्र शरमा की तरफ मुड़ गई होंगी। कारण ये कि वो अपनी कविताओं में चार लाइनों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। आगे चलकर उनके हसगुल्ले भले ही आठ-दस या बारह लाइन के हो जाएं मगर तकियाकलाम-‘चार लाइण सुणारियो हूं..। यहां चार लाइन तो है मगर कविवर सुरेन्द्र शर्मा वाली नही बल्कि मामे वाली। अब मामे में भी लोचा। इतिहास में दो मामे बड़े कुख्यात रहे। उनके बारे में बताना इसलिए जरूरी नही कि सब जानते हैं। आज की बात करें तो हर घर में मामे मिल जाएंगे। घर-घर में मामे मिल जाणे हैं। आने वाले सालों में भले ही कुछ रिश्तों पर विराम लग जाए, अभी तो परभू की किरपा है। रिश्तों पर विराम कैसे। वो ऐसे कि आज कल लोगबाग हम दो-हमारा/ टेढा हमारी एक पे आ गए। किसी दंपती ने एक लुड़का पैदा कर के इतिश्री कर ली तो उसके बच्चे के चाचा-बड्डे के रिश्तों पर विराम। बुआ के पतियारे नही और एक लड़की के बाद कोई टोटके आजमा लिए तो मामा-मासी के टोटे।

अपन ठहरे उस जमाने के तब नानाणे में छह-आठ मामे और चार-छह मासियां हुआ करती थी-दादाणा भी भरापूरा। लोग बाग ‘सिगरी न्यौता देने से घबराते थे। इनके इतर जग्गू मामा-मुन्ना मामा-भगवान मामा। दाऊ मामा और भंवर मामा सरीखे भतेरे मामे। एमपी में शिवराज मामा और तरन्नुम के चक्कर में हमने ओबामा को भी मामा बना लिया। वो चार लाइने इसी मामा ने लिखी थी जिसने भारत में कोहराम मचा दिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने संस्मरणों को ‘ए प्रेमिस्ड लैंड पुस्तक में संजोया है। किताब में उन्होंने दुनिया भर के राजनीतिज्ञों पर बातचीत की है। उसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का जिक्र भी है। मामे ने राहुल को नर्वस और कम योग्यता वाला व्यक्ति बताया।

राहुल की तुलना ऐसे छात्र से की गई जिसने कोर्स वर्क तो कर लिया। जो अपने शिक्षक को प्रभावित करना चाहता है लेकिन उसमें निपुणता हासिल करने का जुनून नही है। मामे ने इतना भर लिखा कि भारत में कोहराम मच गया। भाजपा राजी हुई-कांग्रेस ने भुंडे दिए। हथाईबाजों के अपने चासे। वो कहते हैं हमें तो पहले से ही पता था ओबामा ने कौनसी नई बात की। किसी ने कहा-हम ने पप्पू नाम इसीलिए दिया।

किसी ने कहा-मामा कौण होता है-हमारे राहुल में नुस्ख निकालने वाला। वो अपने यहां के छोरों को देखे। किसी ने कहा-ओबामा को हमारे घर में ताकाझांकी करने की जरूरत नही है। ज्यादातर ने मामा ओबामा को ठेठ राजस्थानी भाषा में हड़काया-‘म्हें जाणा नै म्हारा टाबर जाणे..थें कुण होवो पंचायती करण वाला। और कोई चाहे तो ओबामा की खराखरी पे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है। हम प्रयास करेंगे कि आप की टिप्पणी ‘हथाई के जरिए उन तक पहुंच जाए। नही भी पहुंची तो कम से कम आप का भप्पारा तो बाहर आ ही जाएगा।