दुनिया का एक निराला त्यौहार है मर्यादा महोत्सव

जीवन का पड़ाव चाहे संसार हो या संन्यास, सीमा, संयम एवं मर्यादा जरूरी है। मर्यादा जीवन का पर्याय है। धरती, अंबर, समन्दर, सूरज, चांद-सितारें, व्यक्ति, धर्म एवं समाज सब अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं। जब भी उनकी मर्यादा एवं सीमा टूटती है, प्रकृति प्रलय एवं समाज अराजकता में परिवर्तित हो जाता है। इसी मर्यादा की सीख देने वाले धर्म, धर्मगुरु एवं धर्म-संगठन जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर अनेक धर्म संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो। बिना मर्यादा, संयम और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं चुक जाती हैं। मर्यादा धर्म संगठनों का त्राण है, प्राण है, जीवन रस है। अंधियारी निशा में उज्ज्वल दीपशिखा है। समंदर के अथाह प्रवाह में बहते जहाज के लिए रोशनी की मीनार है।

तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन समाज की दुर्दशा एवं अनुशासनहीनता को देखते हुए मर्यादाओं का निर्माण किया। न केवल साधुओं के लिये बल्कि श्रावकों-श्रद्धालुओं के लिये भी नियम बनायें। सम्यक् श्रद्धा और आचार शुद्धि को मद्देनजर रखते हुए उन्होंने मर्यादा की लक्ष्मण रेखा बनाई। आचारनिष्ठा, विचार शुद्धि, संगठन की सुघड़ता एवं सुव्यवस्था ही उनका प्रमुख ध्येय था। धर्म-संगठन की सुदृढ़ता व चिरजीविता का रहस्य है इसकी मर्यादाएं। मर्यादाओं की सुदृढ़ प्राचीर में संघ की इमारत अपनी सुरक्षा व खूबसूरती को कायम रखे हुए है। तेरापंथ की मर्यादाओं के सन्दर्भ में कहा जाता है कि वह बिखराव को समेटती है, उच्छृंखलता को अंकुश देती है, समय का प्रबन्धन करती है, शक्तियों का सही दिशा में नियोजन करती है, जीवन को आत्मानुशासन से संवारती है।

तेरापंथ धर्मसंघ की एकता, संगठन, अनुशासन और मर्यादा का प्रतीक है-मर्यादा महोत्सव। पर्वों, उत्सवों एवं त्यौहारों की दुनिया में यह एक निराला त्यौहार है। विश्व भर में अनेक उत्सव, पर्व या कार्यक्रम मनाए जाते हैं। जन्म दिवस और निर्वाण दिवस के आयोजन होते हैं। पर मर्यादा महोत्सव मनाने की परंपरा तेरापंथ की अपनी मौलिकता है, विशेषता है। संघ की वैधानिक, संगठनात्मक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का केंद्र है-मर्यादा महोत्सव। साधु-साध्वियों एवं समण-समणियों की सारणा-वारणा, सार-संभाल का समय है-यह महोत्सव। चातुर्मास की नियुक्ति व पूर्व वर्ष के सिंहावलोकन का काल है-इस उत्सव का समय। मर्यादा की धाराओं की पुर्नउच्चारण व पुनार्भिव्यक्ति का माध्यम है-मर्यादा महोत्सव।

मर्यादा-महोत्सव दुनिया का अनूठा उत्सव है। तेरापंथ की गतिविधियों का नाभि केंद्र है। मर्यादा महोत्सव का केन्द्रीय विराट आयोजन संघ के अधिशास्ता की पावन सन्निधि में समायोजित होता है। इस वर्ष आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में यह महोत्सव बीदासर (राजस्थान) में 5, 6 एवं 7 फरवरी आयोजित हुआ, इसकी पृष्ठभूमि चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही शुरू हो जाती है। प्रस्तुत वर्ष का मर्यादा महोत्सव कहां मनाना है यह घोषणा आचार्य प्रवर द्वारा काफी समय पहले ही हो जाती है। देश-विदेश में विहार और धर्म प्रचार करने वाले सैंकड़ों साधु-साध्वियां और समण-समणियां महोत्सव स्थल पर गुरु सन्निधि में पदयात्रा करते हुए पहुंच जाते हैं। गुरु दर्शन करते ही अग्रगण्य साधु-साध्वियां स्वयं के पद को और स्वयं को विलीन कर विराटता का अनुभव करते हैं।
मर्यादा महोत्सव तेरापंथ का महाकुंभ मेला है। इसका आयोजन तीन दिवसीय होता है और इस अवधि में शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रेरणा-प्रोत्साहन, अतीत की उपलब्धियों का विहंगावलोकन, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण आदि अनेक रचनात्मक प्रवृत्तियां चलती हैं। सब साधु-साध्वियां अपने वार्षिक कार्यक्रमों और उपलब्धियों का लिखित और मौखिक विवरण प्रतिवेदित करते हैं। श्रेष्ठ कार्यों के लिए गुरु द्वारा विशेष प्रोत्साहन मिलता है। कहीं किसी का प्रमाद, मर्यादा के अतिक्रमण का प्रसंग उपस्थित होता है तो उसका उचित प्रतिकार होता है। संघ की यह स्पष्ट नीति है कि किसी की कोई गलती हो जाए तो उसको न छुपाओ, न फैलाओ, किन्तु उसका सम्यक् परिमार्जन करो, प्रतिकार करो।

प्रकृति का कण-कण हमें मर्यादा की बात सिखा रहा है। अपेक्षा है, मानव अनुशासन और मर्यादा को अपनाकर जीवन को संवारे। मर्यादा-महोत्सव का यह पावन अवसर सबको यही संदेश देता है कि मर्यादा से ही समस्याओं का निपटारा संभव है। पथभ्रान्त पथिक को मर्यादा ही सच्चा पथदर्शन बनेगी। युग की उफनती समस्याओं की नदी मर्यादा की मजबूत नाव से ही पार की जा सकेगी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की इस भूमि पर मर्यादा को स्थापित करने और उसे गौरवान्वित करने की इस विलक्षण एवं अनूठी घटना से हम सभी प्रेरित हो, विनाश का ग्रास बनती इस ऊर्वरा भारत-भू को विकास के शिखर पर चढ़ाएं।
आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपनी प्रखर आध्यात्मिक प्रतिभा से समूचे राष्ट्र को प्रेरित किया है और उन्हीं की ऊर्जा से तेरापंथ धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव जन-जन की आस्था का केन्द्र भी बना है, एक प्रेरणा बना है। यह महोत्सव मात्र मेला ही नहीं है, सैकड़ों प्रबुद्ध साधु-साध्वियों का मिलन संघीय इतिहास में श्री स्वस्ति का उद्घोषक बनता है। वह मात्र आयोजनात्मक ही नहीं, वह संघ के फलक पर सृजनशीलता के नये अभिलेख अंकित करता है। महोत्सव के समय ऐसा लगता है मानो नव निर्माण के कलश छलक रहे हैं, उद्यम के असंख्य दीप एक साथ प्रज्वलित हो रहे हैं। हर मन उत्साह से भरा हुआ, हर आंख अग्रिम वर्ष की कल्पनाशीलता पर टिकी हुई और हर चरण स्फूर्ति से भरा हुआ प्रतीत होता है। यह महापर्व पारस्परिक संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करता है। उनमें अंतरंगता लाता है। अनेकता में एकता का बोध कराता है। मर्यादा महोत्सव संघीय चेतना का अदृश्य वाहक है। इसमें वैयक्तिक और संघीय गति, प्रगति एवं शक्ति निहित है। स्वयं को समग्र के प्रति समर्पित करने का अनूठा महोत्सव है यह। इसका संदेश है स्वयं को अनुशासित करो, प्रकाशित करो और दूसरों को प्रेरणा दो। अपेक्षा है एक धर्मसंघ में मनाया जाने वाला यह अनूठा पर्व, समग्र मानवता का उत्सव बने।

मर्यादा महोत्सव इस सोच और संकल्प के साथ आयोजित होता है कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। बीते वर्ष की कमियों पर नजर रखते हुए उन्हें दोहराने की भूल न करने का संकल्प लेना है। हमें यह संकल्प करना और शपथ लेनी है कि आने वाले वर्ष में हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो हमारे उद्देश्यों, उम्मीदों, उमंगों और आदर्शों पर प्रश्नचिह्न टांग दे। अपनी उपलब्धियों का अंकन एवं कमियों की समीक्षा कर इस अवसर पर हर व्यक्ति अपनी विवेक चेतना को जगाता है और अपने भाग्य की रेखाओं में संयम और मर्यादा के रंग भरता है, सामंजस्य एवं सहिष्णुता को जीवन के व्यवहार में उतारने का अभ्यास करता है। केवल अपनी भावनाओं को ऊंचा स्थान दे, वह स्वार्थी होता है। स्वार्थी होने की कीमत चुकानी ही पड़ती है। दूसरों की भावना के प्रति उदार बनें। उदार होने का मतलब है आप किसी के कहे बिना भी उनकी भावनाओं को समझें। उसके बारे में सोचें, विचारें। इससे आपके जीने का अंदाज बदल जायेगा। यही जीने की आदर्श शैली का प्रशिक्षण मर्यादा महोत्सव का हार्द है।

सहिष्णुता यानि सहनशीलता। दूसरे के अस्तित्त्व को स्वीकारना, सबके साथ रहने की योग्यता एवं दूसरे के विचार सुनना- यही शांतिप्रिय एवं सभ्य समाज रचना का आधारसूत्र है और यही आधारसूत्र को मर्यादा महोत्सव का संकल्पसूत्र है। परिवार, गांव, समाज जैसी संस्थाएं टूट रही हैं। रिश्ते समाप्त हो रहे हैं। आत्मीयता समाप्त हो रही है। तथाकथित विकास के रास्ते पर जो हम चल रहे हैं वह केवल बाहरी/भौतिक है, जो सहिष्णुता के आसपास पनपने वाले सभी गुणों से हमें बहुत दूर ले जा रहा है। आधुनिक संचार माध्यमों के कारण जहां दुनिया छोटी होती जा रही है, वहीं मनुष्य ने अपने चारों तरफ अहम् की दीवारें बना ली हैं, जिसमें सहिष्णुता के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों में फैलता वैचारिक एवं अनैतिक प्रदूषण, आर्थिक अपराधीकरण, रीति-रिवाजों में अपसंस्कृति का अनुसरण, धार्मिक संस्कारों से कटती युवापीढ़ी का रवैया, समाज-राष्ट्र में बढ़ता सत्ता, प्रतिष्ठा और धन का अन्धाधुन्ध आकर्षण जैसे जीवन-सन्दर्भों के साथ किसी भी कीमत पर समझौता न कर हम समझ के साथ भारतीय संस्कृति को बहुमान दें। तभी मर्यादा महोत्सव संघ की बुनियाद पर समाज एवं राष्ट्र को नई प्रतिष्ठा एवं नई दिशा दे सकेगा।

मर्यादा महोत्सव धर्म का एक आदर्श स्वरूप है जो अच्छाइयों के प्रति आस्था और बुराइयों के प्रति संघर्ष करने का साहस देता है। इस महोत्सव का निहितार्थ है कि मर्यादाओं को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। मर्यादाएं तो सांस की भांति जीवन के साथ-साथ चलती हैं। मर्यादा का मतलब वह आस्था है जो जीवन के ऊंचे आदर्श, शुद्ध नीतियों और किये गये वायदों के प्रति जागरूक रखती है। इन्हीं मर्यादाओं को मर्यादा महोत्सव का उपहार मानें और उसे अपने जीवन के साथ जोड़ लें। यह धर्म भी सफलता का एक मंत्र है।