जयपुर। उच्च शिक्षा राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा कि राजस्थानी भाषा के पुरातन साहित्य को पुनः प्रकाश में लाने का काम करने वाले साहित्यकार बधाई के पात्र है, इससे हमारी मातृभाषा और समृद्ध हो सकेगी। भाटी ने रविवार को बीकानेर के रानी बाजार इंडस्टि्रयल एरिया स्थित सीता कुंज में डॉ. मंजुला बारैठ द्वारा संपादित पुस्तक उम्मेद ग्रंथावली के लोकार्पण समारोह में यह बात कही।
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उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए राज्य सरकार कृत संकल्पित है और इसी क्रम में राज्य सरकार ने विधानसभा में संकल्प पारित करवाकर आगे की प्रक्रिया पूरी करने के लिए केंद्र सरकार के पास भिजवाया है।
मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए कृत संकल्पित
उन्होंने बताया कि इस वर्ष विश्व मातृभाषा दिवस को राज्य में राजस्थानी भाषा दिवस के रूप में मनाए जाने का नवाचार किया गया, जिससे युवा पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से नजदीकी से परिचित होने का अवसर भी मिल सका है।
भाटी ने कहा कि डॉ. मंजुला बारैठ द्वारा उम्मेद ग्रंथावली के रूप में उम्मेद राम जी की रचनाओं का संकलन राजस्थानी भाषा में शोध के लिए भी उपयोगी साबित होगा।
उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार उच्च शिक्षा क्षेत्र में संसाधन विकसित करने की दिशा में प्रयासरत है और इसी क्रम में देशनोक में राजकीय महाविद्यालय इसी सत्र से प्रारंभ हो जाएगा। साथ ही इस बजट में 35 नए राजकीय विद्यालय स्वीकृत किए गए हैं।
कार्यक्रम में पूर्व गृह राज्यमंत्री वीरेंद्र बेनीवाल ने कहा कि प्रेरक व्यक्ति का जीवन यदि सही शब्दों में पिरोया हो तो आने वाली पीढ़ियों के लिए वह एक मार्गदर्शन के रूप में काम कर सकता है।इस अवसर पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अर्जुन देव चारण ने कहा कि ज्ञान परंपरा भारत की समृद्ध विरासत रही है और नई पीढ़ी को अपनी इस ज्ञान परंपरा को सहेजने और संभालने की आवश्यकता है।
चारण ने कहा कि उम्मेद राम जी की रचनाओं का संकलन कर वर्तमान पीढ़ी के समक्ष लाने से इस पीढ़ी को ज्ञान का नया दृष्टिकोण मिलेगा, उन्हें ऎसी उम्मीद है। उच्च शिक्षा सहायक निदेशक राकेश हर्ष ने कहा कि लुप्तप्राय साहित्य को समाज के सामने लाना एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए लेखक बधाई की पात्र हैं।
साहित्यकार मधु आचार्य ने कहा कि चारण साहित्य का राजस्थानी साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है। डॉ. मंजुला बारेठ ने इस पुस्तक के जरिए उस परंपरा को सामने लाने का काम किया है जो आज भी जीवंत है ।