मोक्ष की ओर ले जा सकती है संयमयुक्त तपस्या : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री
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विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)।  संयमयुक्त तपस्या ही मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जा सकती है। यह बात आचार्य महाश्रमण ने कही। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का चतुर्मास चूरू जिले के छापर कस्बे में सानंद प्रवर्धमान है। भगवती सूत्र पर आधारित आचार्यश्री के प्रवचन से श्रद्धालुओं को नित नवीन प्रेरणा प्राप्त हो रही है। दूर-दूर से हजारों श्रद्धालुजन प्रतिदिन आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचकर आचार्यश्री के दर्शन, सेवा और मंगल प्रवचन का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के आधार मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा भगवान महावीर अपने विहरणकाल के दौरान एक बार कयंजला नगरी के सन्निकट पधारे और वहां स्थित छत्र पलाशक चैत्य में पधारकर अपने ठहरने योग्य स्थान की अनुमति मांगते हैं। तदुपरान्त भगवान महावीर अपने आपको संयम और तप से भावित होकर वहां विराजमान होते हैं।

साधु के जीवन व्यवहार भी संयम हो

 

आचार्यश्री
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आचार्य प्रवर ने कहा कि साधु परंपरा में एक सामान्य विधि है कि साधु को यदि कहीं ठहरना होता है तो अनुमति लेनी होती है। जो उस स्थान का मालिक, अथवा उस स्थान से संबद्ध व्यक्ति से आज्ञा लेने की सामान्य विधि है। भगवान महावीर की जीवनशैली से संयम और तप जुड़ा हुआ था। साधु के जीवन व्यवहार में भी संयम होना चाहिए।

साधु के चलने, बोलने, सोचने और खानपान में भी संयम होना अनिवार्य होता है। पग-पग पर और क्षण-क्षण में प्रत्येक क्रिया के साथ संयम जुड़ा हुआ होना चाहिए। इसके साथ यदि तप भी जुड़ जाए तो आत्मा मोक्ष की दिशा में गति कर सकती है। उपवास करना ही तप नहीं, साधु का बोलना भी तप है। अपने प्रवचन के द्वारा किसी को तत्वबोध करा देता है तो वह भी उसकी तपस्या होती है। साधु का चलना भी अपने आप में तपस्या है। वृद्ध साधु तो जितना संभव हो स्वाध्याय, ध्यान, जप अथवा दूसरों को प्रतिबोध देने का प्रयास करे।

धर्म मुख्य होता है

आचार्यश्री ने आगम में वर्णित भगवान महावीर के नगर के बाहरी भाग में प्रवास को संदर्भित करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी अहमदाबाद नगर के बाहर स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में अहमदाबाद प्रवास किया था। वहां भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी आए थे। आचार्य ने उन्हें प्रेरणा देते हुए कहा कि हमारे गुरुदेव ने बताया कि संप्रदाय गौण होता है और धर्म मुख्य होता है, वैसे ही मैं आपको एक बात बता रहा हूं कि पार्टी बाद में राष्ट्र प्रथम होता है। इस प्रकार साधु का धर्म होता है कि वह किसी व्यक्ति को अच्छा सम्बोध प्रदान करे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी श्रद्धालुओं को मोह, ममता, अहंकार को कम करने के लिए अभिप्रेरित किया।

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