
- देश भर से एक सौ से अधिक साहित्यकारों व कलाकारों ने भागीदारी निभाई –
- साहित्य उत्सव एक अमूर्त विरासत है जो लेखकों को सुविधा प्रदान करता है : प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री ममांग दई
- अरुणाचल प्रदेश के समृद्ध मौखिक साहित्य के संरक्षण और समृद्धि के लिए प्रलेखन की आवश्यकता : उप मुख्यमंत्री चौना मैन खम्पटी
- लोक साहित्य के काव्यात्मक रूप को बेहतर अभिव्यक्ति देने के लिए उसे गद्य में रूपांतरित किये जाने की जरूरत : उप मुख्यमंत्री चौना मैन
अरुणाचल प्रदेश सरकार के आई पीआर डिपार्टमेंट तथा अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसायटी (एपीएलएस ) के संयुक्त तत्वावधान में 03 नवम्बर से 05 नवम्बर 2022 तक नामसाई में राष्ट्रीय स्तर पर चौथा ‘त्रिदिवसीय अरुणाचल साहित्य महोत्सव सम्पन्न हुआ । अरुणाचल प्रदेश की ‘नाओ दिहिंग ‘ नदी के समीप स्थित नामसाई नगर के ‘ मल्टीपरपज कल्चरल हाॅल’ परिसर स्थित ऑडिटोरियम एक,दो और तीन में आयोजित इस चौथे साहित्य महोत्सव में देश भर से भारतीय भाषाओं के लगभग 100 से अधिक कवि – कथाकारों , नाट्य कर्मियों, साहित्य एवं कला समीक्षकों , बुद्धिजीवियों, कलाकारों तथा साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों और प्रकाशकों ने हिस्सेदारी निभाई ।
03 नवम्बर 22को मुख्य अतिथि अरुणाचल प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री श्री चौना मैन तथा अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसायटी के अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत साहित्यकार पद्मश्री वाई डी थोंग्ची एवं साहित्य अकादेमी से ही पुरस्कृत लेखिका पद्मश्री ममांग दई ने विशिष्ट साहित्यकार के रूप में दीप प्रज्ज्वलित कर नामसाई में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ‘अरुणाचल साहित्य महोत्सव’ का उद्घाटन किया।
मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चौना मैन ने राज्य के समृद्ध मौखिक साहित्य के संरक्षण और समृद्धि के लिए प्रलेखन की आवश्यकता पर जोर दिया । उन्होंने यह कहते हुए कि यद्यपि अरुणाचल प्रदेश के सुदूर-पूर्वी कोने मे स्थित होने के कारण शिक्षा के साथ साथ विकास की यात्रा विलम्ब से प्रारम्भ हुई , लेकिन हमारे प्रदेश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है । भाषा, साहित्य एवं सांस्कृति के उत्थान और समग्र विकास की दृष्टि से हर एक क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश अन्य राज्यों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार अरुणाचल साहित्य महोत्सव का चौथा संस्करण नामसाई में शुरू हुआ है।इस अवसर पर यह जानकारी देते हुए मुझे गहरा दुःख हो रहा है कि राज्य में जन जातियों का कोई लिखित इतिहास नहीं है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह कार्य भी शीघ्र ही पूर्णता प्राप्त करेगा। हमारी सरकार ने आर जी यू के इतिहास विभाग को खम्पटी जन जाति के इतिहास लिखने और राज्य के अनंग नायकों पर शोध करने का कार्य सौंप दिया है, जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था । उप मुख्यमंत्री चौना मैन ने कहा कि आम लोगों तक पहुंच बनाने के लिए स्थानीय बोलियों के परम्परागत मौखिक समृद्ध साहित्य को लिपिबद्ध कर उसे हिन्दी या अंग्रेजी में अनुवाद सहित पुस्तक रूप में प्रकाशित करना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि खम्पटी साहित्य के काव्यात्मक रूप को बेहतर अभिव्यक्ति देने के लिए उसे गद्य में रूपांतरित किये जाने की बेहद जरूरत है । इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिकीकरण और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आगमन के साथ युवा पीढ़ी में पढ़ने और लिखने की आदतें दिन ब दिन कम होती जा रही हैं ,यह गंभीर और चिंताजन स्थिति है। मुख्य अतिथि चौना मैन ने साहित्यकारों से मातृभाषा को जीवित रखने के साथ साथ भाषा के सही सार को बनाए बनाये रखने के लिए तदनुसार भूमिका निभाने का आग्रह किया। उन्होंने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा साहित्य उत्सव युवाओं को देश भर के अनुभवी और प्रसिद्ध लेखकों, कवियों, कहानीकारों, प्रकाशकों और संपादकों साथ मंच साझा करने तथा बात – चीत करने का जरूरी अवसर देता है । उन्होंने आशा व्यक्त की कि वे इस तरह के अवसर का पूरा लाभ उठायेंगे तथा नये विचारों और कौशल के साथ आगे बढ़ेंगे
साहित्य महोत्सव के संरक्षक आई पी आर एवं पर्यटन मंत्री के सलाहकार लाइसम सिकई ने नवोदित एवं युवा पीढ़ी के रचनाकारों को पढ़ने एवं लिखने की आदत विकसित करने के लिये यह कहते हुए प्रेरित किया कि सृजन करने से पहले उन्हें श्रेष्ठ मनुष्य बनना चाहिए । इसके लिए उन्हें अधिक से अधिक श्रेष्ठ साहित्य पढ़ना चाहिए । इस तरह के साहित्य उत्सव अपनी रचनात्मक ऊर्जा से व्यक्तियों को संवेदनशील बनाते हैं । उनके सपनों और कल्पनाओं को साकार करने के लिए अवसर प्रदान करते हैं । युवा रचनाकारों को ऐसे आयोजनों से पूरा लाभ उठाना चाहिए । उन्होंने बाहर से आये प्रतिष्ठित साहित्यकारों से नवोदित एवं युवा लेखकों को साहित्य के माध्यम से पुलों को पाटने वाले विषयों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए, उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए शब्द – संस्कार के माध्यम से प्रेरित करने का आह्वान किया ।
अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसायटी के अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री वाई डी थोंग्ची ने अरुणाचल साहित्य महोत्सव की शुरुआत (2018) से लेकर अब तक की यात्रा का विशद विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने यह जानकारी कराई कि अरुणाचल प्रदेश कई जातियों, भाषा और बोलियों वाला राज्य है । मौखिक साहित्य से समृद्ध है ,लेकिन पहले से कोई लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं था। सम्पटी इसऔर मोनपा को छोड़कर अन्य बोलियों की लिपियां भी नहीं है।उन्होंने अपने वक्तव्य के माध्यम से जानकारी कराते हुए कहा कि 2006 में ए पी एल एस का गठन साहित्य के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, लेखकों के बेहतर प्रदर्शन के लिए, एक मंच प्रदान करने और राज्य भर में विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से नवोदित और युवा लेखकों की प्रतिभा को जगाने और निखारने के लिए किया गया था, जिसने बाद में साहित्य उत्सवों का मार्ग प्रशस्त किया । उन्होंने कहा कि यह चौथा संस्करण नामसाई में पहली बार ईटानगर से बाहर राज्य के पूर्वी हिस्से में साहित्य आंदोलन को बढ़ाने और विस्तार देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। इसके साथ ही बाहरी अतिथि साहित्यकारों को नामसाई के प्राकृतिक सौंदर्य से प्रत्यक्ष कराने का उद्देश्य भी रहा है।
इस अवसर पर अपने आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार पद्म श्री ममांग दई ने आने वाले लेखकों से दुनिया का पता लगाने और लेखन के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करने का आह्वान किया ।उन्होंने कहा कि लेखन भावनाओं की ईमानदारी के साथ भाषा और कल्पना के बारे में है। मणिपुरी से अंग्रेजी में अनूदित ‘ मेरी मां ‘ शीर्षक कविता का पाठ करते हुए ममंग दई ने कहा कि साहित्य उत्सव एक अमूर्त विरासत है जो लेखकों को सुविधा प्रदान करता है। उनके बीच रचनात्मकता के स्तर को बढ़ाने के लिए कल्पना को बढ़ावा देता है ।इसके अलावा हमारे विचारों को मिलन स्तर प्रदान करता है।
उद्घाटन समारोह में क्षेत्र के स्थानीय विधायक चाड जिग्नू नामचूम, जुम्मम देते देवारी,दसंग्लू पुल भी मंच पर उपस्थित रहे। उन्होंने भी साहित्य महोत्सव की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं । इस अवसर पर साहित्य महोत्सव के आयोजक और आई पी आर के निदेशक ऑन्योक पर्टिन ने अपने स्वागत भाषण में साहित्य महोत्सव की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए देश के विभिन्न प्रांतों से आए साहित्यकारों , बुद्धिजीवियों, संपादक- प्रकाशकों तथा कलाकारों का स्वागत किया। उद्घाटन समारोह में नामसाई के उपायुक्त सी आर खाम्पा तथा पुलिस अधीक्षक डी थुंगोन भी अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित रहे।
इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि उप मुख्यमुख्यमंत्री श्री चौना मैन ,मुख्य संरक्षक तथा जन सम्पर्क मंत्री लाईसाम सिमाई के सलाहकार सहित मंच पर उपस्थित अतिथियों ने हिन्दी कविता की महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर डाॅ.जमुना बीनी रचित हिन्दी कविता संग्रह ‘जब आदिवासी गाता है’ का डाॅ.संतोष कुमार सोनकर द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद ‘ वेन एन आदिवासी सिंग्स’ (When an Adivasi Sings ) पुस्तक का लोकार्पण किया । इस अवसर पर कवयित्री एवं अनुवादक दोनों ही मंच पर उपस्थित थे। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि और अरुणाचल के उप मुख्यमंत्री श्री चौना मैन ने कृतिकार एवं अनुवादक को बधाई दी और कहा कि हमें अभिमान है कि डाॅ.जमुना बीनी जैसी सुप्रतिष्ठ साहित्यकार हमारे प्रदेश में हैं। इस अवसर पर उन्होंने उम्मीद जताई कि डाॅ. बीनी भविष्य में भी इसी तरह साहित्य की श्रेष्ठ सृजना कर अरुणाचल प्रदेश का गौरव बढ़ाती रहेंगी । इस अवसर पर एस यू एस और ताई खम्पटी के शिक्षकों द्वारा समूह गीत, तथा ताई खम्पटी कलाकारों द्वारा मयूर नृत्य प्रस्तुत कर उपस्थित दर्शकों को रोमांचित कर दिया। समारोह का संचालन एंकर, गायक एवं परफाॅर्मर मैडम येल्लू ने किया। समारोह के समापन पर अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसायटी के महासचिव मुकुल पाठक ने धन्यवाद ज्ञापित किया । साहित्य महोत्सव के उद्घाटन समारोह में स्थानीय साहित्यकारों व साहित्य प्रेमी नागरिकों के अतिरिक्त और देश भर से आये भारतीय भाषाओं के कवि – कथाकार, नाट्य कर्मी, लेखक, समीक्षक, बुद्धिजीवी एवं सांस्कृतिक धर्मी भारी संख्या में उपस्थित थे।
कविता और कहानी के सत्र :
उद्घाटन समारोह के दूसरे दिन 04 नवम्बर को साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत राजस्थानी और हिन्दी के जाने- माने साहित्यकार मीठेश निर्मोही के अध्यक्षता में
नगर के ‘ मल्टीपरपज कल्चरल हाॅल’ में आयोजित प्रथम सत्र में विभिन्न प्रदेशों से आये भारतीय भाषाओं के लगभग बीस युवा एवं वरिष्ठ कवियों – हिरजिर इंग्तीकतारों, कविता कर्मकर, मिस्ना चनू, एन.शर्मा पराजुली, बंटी ताओ, देवेन्द्र के. देवेश, डाॅ. राजेश रथावा, मिनीमोन लालू ,प्रिया शुक्ला, बेथेम मारै ,चाऊ ताथासेंग मौंगकंग आदि ने हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद सहित अपनी मातृभाषा में रचित प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया । अपने जीवन के व्यापक अनुभवों, स्वप्नों एवं आकांक्षाओं, समय के संघर्षों ,आंचलिक परिवेश की विसंगतियों और प्राकृतिक सौंदर्य को अभिव्यक्त करतीं उनकी कविताएं श्रोताओं को चिंतन – मनन और भाव विभोर करने में सफल रहीं। इस सत्र के अध्यक्ष मीठेश निर्मोही ने भी राजस्थानी और हिंदी में कविता पाठ कर राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया । उन्होंने साहित्य महोत्सव के अन्य सत्रों में भी हिस्सेदारी निभाई।
प्रथम सत्र के अतिरिक्त कविता पर केन्द्रित तीन अन्य सत्र क्रमशः डाॅ.रति सक्सेना, बिकास राय देब बर्मन तथा धनंजय चौहान की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए जिनमें तीस से अधिक वरिष्ठ एवं युवा कवियों ने काव्य पाठ किया । डाॅ. रति सक्सेना की अध्यक्षता में आयोजित सत्र में शमेनाज़ बानो, मिनीप्रिया, संतोष पटेल, रूमी लश्कर बोरा,एलेनसों चाई, सोनम सोशिया आदि की कविताओं ने सबका मन मोह लिया।वहीं बिकास राय देब की अध्यक्षता में आयोजित कविता सत्र में अरुण कुमार , रमेश प्रजापति , किंशुक गुप्ता, मोरोमी, खोली लौंग एवं लक्ष्मी कांत मुकुल की कविताओं ने बहुत अधिक प्रभावित किया।
इसी तरह डाॅ.संतोष कुमार भदौरिया,रवि सिंह एवं संतोष पटेल की अध्यक्षता में आयोजित कहानी केन्द्रित तीन सत्रों में दयाराम वर्मा, तेली मेचा,डाॅ.गंगाराम शर्मा, जनार्दन गोंड, केसेलो त्यांग, वेल सिंह हंस,सुशीला पुरी,चातुंग लोवंग, लोपामुद्रा सोनोवाल,डाॅ.गुमलात चंग मैओ, स्नेहलता नेगी,गनखू सुमनिया सहित पचीस से अधिक कथाकारों ने कहानियां पढ़कर साहित्य महोत्सव को और अधिक गरिमामय और सार्थक बनाया ।
बाल साहित्य पर चर्चा
साहित्य महोत्सव में कविता और कहानी केन्द्रित इन सत्रों के अतिरिक्त एक अन्य सत्र में लेखक – प्रकाशक पद्मश्री गीता धर्मराज से ध्रुव हजारिका की बातचीत सार्थक रही । इसी तरह प्रख्यात साहित्यकार दिविक रमेश की अध्यक्षता में आयोजित ‘बच्चों के लिए लेखन खुशियां तथा कठिनाइयां’ विषयक सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार दिविक रमेश, गीता धर्मराजन, देवेन्द्र मेवाड़ी तथा बच्चों में पुस्तक संस्कृति को बढ़ाने में समर्पित सत्य नारायण उर्फ़ अंकल मूसा के मध्य हुए संवाद में कई सार्थक बातें उभरकर आईं । प्रख्यात कवि ,संपादक और अनुवादक दिविक रमेश ने बाल साहित्य के कथ्य में हो रहे विश्व-व्यापी बदलाव को रेखांकित किया । विज्ञान से जुड़े बाल कथा साहित्य के रचयिता देवेन्द्र मेवाड़ी तथा कथा की निदेशक पद्मश्री गीता धर्मराज ने भी बड़े ही आत्मीयता भरे माहौल में बाल साहित्य के कथ्य में हो रहे परिवर्तन को लेकर सूक्ष्मता और गंभीरता से अपनी बातों को विस्तार दिया ।
पुस्तकों पर चर्चा
साहित्य महोत्सव के दौरान चार नवम्बर को सम्पन्न हुए दूसरे सत्र में पद्मश्री ममांग दई की पुस्तक ‘लेजेण्ड ऑफ पेनसाम’ (Legends of pensam ) पर विस्तार से चर्चा हुई । डाॅ.पोरी हिलोई डोरी एवं ज्योतिर्मय प्रोधानी ने ममंग दई की आलोच्य कृति की विशिष्टताओं को रेखांकित किया और उसे एक महत्वपूर्ण कृति बताया । पांच नवम्बर के दूसरे सत्र में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत कवि पद्मश्री वाई.डी.थोंग्ची रचित समग्र साहित्य पर चर्चा हुई। डाॅ.जूरी दत्ता एवं डा. रतनात्मा दास विक्रम ने पद्मश्री थोंग्ची रचित साहित्य पर आलोचनात्मक विवेचना करते हुए उन्हें भारतीय वांग्मय का बड़ा सृजक बताया ।
पांच नवम्बर को ही सम्पन्न हुए तीसरे सत्र में डाॅ.जमुना बीनी के चर्चित कहानी संग्रह ‘अयाचित अतिथि और अन्य कहानियां’ पर विस्तार से चर्चा हुई । जमुना बीनी रचित आलोच्य कथा कृति पर डाॅ. अनीता भारती, डाॅ. सुनीता तथा प्रोफेसर कुमार नीलाभ द्वारा की गई समीक्षात्मक टिप्पणियों पर जम कर चर्चा हुई । चर्चा में हिस्सेदार रहे रचनाकारों में से कुछ ने इन कहानियों को सफल एवं सहज सम्प्रेषणीय, तो कुछ ने समाज के कड़वे सच को उजागर करने में सक्षम कहानियां बताया , तो कुछ ने जीवन संघर्षों को वाणी देने वाली कहानियां कहा ,तो कुछ ने गहन जीवनानुभवों की कहानियां बताये हुए डाॅ. जमुना बीनी की इस कथा कृति को श्रेष्ठ माना । अंत में साहित्यकार मीठेश निर्मोही ने कहा कि इस कहानी-संग्रह और उस पर की गई समीक्षात्मक टिप्पणियों पर इतनी गंभीरता से चर्चा हो गई है, अत : स्वतः ही सिद्ध हो गया है कि हिन्दी का यह एक महत्वपूर्ण कहानी संग्रह है । कथाकार डाॅ. जमुना बीनी को बहुत-बहुत बधाई ।
अन्य महत्त्वपूर्ण सत्र :
साहित्य महोत्सव में डाॅ.संतोष पटेल की अध्यक्षता में आयोजित ‘क्राॅसिंग बाउंड्रीज थ्रू : अनुवाद ‘
विषयक सत्र में डाॅ. संतोष कुमार सोनकर तथा ज्योतिर्मय प्रोधानी ने मौलिक एवं महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत कर सत्र को जानदार बनाया। इसी तरह 4नवम्बर को डाॅ.वांग्लिट मोंग्चां की अध्यक्षता में आयोजित सत्र ‘ अरुणाचल भाषा के संरक्षण के लिये पर्यावरण’
में डाॅ. आरती पाठक ,सेंग्कुम मोसांग तथा डाॅ.कुसुम माधुरी टोपो के मध्य हुए विचार – विमर्श में एकमत से बात उभरकर आई कि यह मसला अरुणाचल प्रदेश वासियों की अस्मिता से जुड़ा हुआ है।विश्व में कालजयी साहित्य की सृष्टि शब्दों के माध्यम से ही हुई है। शब्द ही भाषा के एक मात्र घटक है।भाषा नहीं होगी तो शब्द भी नहीं होंगे । ऐसे में साहित्य सृजना भी नहीं होगी।भाषा हर किसी साहित्य कृति की जड़ होती है। भूमंडलीकरण के इस दौर में आंचलिक भाषाओं की जड़ों को काटा जा रहा है। यह दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है। हर हाल में इन जड़ों को बचाया जाना चाहिए ।अरुणाचल सरकार द्वारा भी अपनी प्रदेशिक भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए योजनाबद्ध तरीके से आवश्यक कदम उठायेजाने चाहिए
साहित्य महोत्सव के दौरान रीकेन नगोमले की अध्यक्षता में आयोजित
थियेटर एज एन आर्ट फोरम ऑफ लिटरेचर ‘
विषयक सत्र में अभिलाष पिल्लई और विभा रानी के वक्तव्य नाट्यकर्म एवं कला में रुचि रखने वाले आम श्रोताओं, रंगकर्मियों, कलाकारों व शोधार्थियों के लिए बड़े ही उपयोगी रहे । इसी तरह साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत कथाकार जयन्त माधव बरा की ओर से
‘उपन्यास लेखन’ एवं तेनजिन त्सुनड्यू की ओर से ‘कविता सृजन ‘ पर आयोजित कार्यशालाएं बड़ी ही उपयोगी रहीं । परिसंवाद में हिस्सेदारी निभा रहे नवोदित एवं युवा रचनाकारों में आत्मविश्वास और उत्साह देखते ही बनता था ।नवोदित और युवा पीढ़ी के रचनाकारों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से ये दोनों ही सत्र अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुए।
समारोह का एक और महत्वपूर्ण सत्र
‘ रेनबोकाॅन्क्लेव/ क्वीर कविता ‘
ट्रांसजेण्डर को केन्द्र में रखकर आयोजित किया गया । धनंजय चौहान की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में एक ओर इस समुदाय से जुड़े प्रतिनिधि कवियों ने अपने कठोर जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों – परस्पर क्लेशों, अपमान और अस्वीकृति के संदर्भ में मार्मिक कविताएं प्रस्तुत कीं । वहीं दूसरी ओर विभिन्न वक्ताओं ने उनके सामाजिक जीवन की विसंगतियों तथा जीवन संघर्षों पर गंभीरता से विचार किया । धनंजय चौहान,कल्कि सुब्रह्मण्यम,विशाल पिंजानी,अब्दुल रहीम, युद्ध प्रताप सिंह, पायल रंधावा, नीरज मोहन, अल्गू जेगन एम, शांता खुराल,कुमम डेविडसन सिंह, वांग्गो सोशिया, पवन धानी ने अपनी अपनी रचनात्मकता से इस सत्र को सार्थक बनाया।
साहित्य महोत्सव के ‘सांस्कृतिक मंच’ पर एंकर ,गायक एवं परफाॅर्मर मैडम येल्लू , कविता कर्मकर, एम.लालू सिलोंग तथा हीरा मीना के गाये गीत एवं देश के भिन्न भिन्न भागों से आए रचनाकारों व कलाकारों की ओर से दी गईं संगीतात्मक एवं सामूहिक नृत्य प्रस्तुतियां भी खूब प्रशंसित रहीं । इस समारोह को सफल बनाने में आईपीआर के सावांग और उनकी टीम की भूमिका की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
समारोह के अंतिम दिवस साहित्यकारों की ओर से महान संगीतकार स्मृति शेष भूपेन हजारिका को उनकी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
रचनात्मक उपलब्धियों के रहते पूर्वोत्तर में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित यह त्रिदिवसीय साहित्य महोत्सव ‘ लंबे समय तक साहित्यिक बिरादरी की स्मृतियों में रहेगा । इस शानदार और सार्थक आयोजन के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार के आई पीआर डिपार्टमेंट तथा अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसायटी (एपीएलएस ) को बहुत-बहुत बधाई ।