राष्ट्र प्रेम की जांच !

जांच तो सुनी, पर ऐसी नही सुनी। आप ने भी सुना होगा, पर ऐसी जांच शायद पहले कभी नही हुई। नहीं हुई तो सुनने में भी नही आई। अगर धमक भी होती तो सुनाई देती। ऐसा-वैसा कुछ हुआ ही नही तो सांच को आंच नहीं। जो पहले कभी नही हुआ वह आजाद भारत में होता दिख रहा है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
मालिक सब को हाजा-ताजा रखें। सब स्वस्थ रहें-मस्त रहे-व्यस्त रहें। अपन ने ऐसे आशीर्वाद दिए भी हैं और ग्रहण भी किए है। आशीर्वाद देना भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।

हम वरिष्ठों के चरण स्पर्श करते हैं। पगै लागणा करते है। जैरामजी की करते हैं। दुआ-सलाम करते हैं तो अगली पार्टी बदले में आशीर्वाद देती है। अगली पार्टी के माने भाजपा-बसपा-सपा या कांग्रेस-टीएमसी नही, वरन वो शख्स जिनके हम चरण छूते हैं। हम जिनके चरण स्पर्श करते हैं तो जाहिर हैं वे बड़े-बुजुर्ग होंगे। परिवार के बडेरे होंगे। टोले-मौहल्ले या जात-बिरादरी के वरिष्ठ होंगे। हमारे इस आदरभाव के बदले वो हमें आशीर्वाद देते हैं। बड़ों-बुजुर्गों का आशीर्वाद जिंदगी के हर मोड़ पर हमारी रक्षा करता है। हमारे काम आता है। सफलता में साथ देता है। कई दफे वरिष्ठजन पूछ लेते हैं-‘भरत किकर है भाई। भरत हंस के जवाब देता है-ठीक हूं सा.. आप रो आशीर्वाद है।

हमने भी सब को स्वस्थ और मस्त रहने का आशीर्वाद दिया, इसका मतलब यह नही कि वो हंडरेड परसेंट फलीभूत हो ही जाएगा। महज आशीर्वाद से सब -कुछ चंगा हो जाए तो अस्पताल-की जरूरत ही कहां। कोई डॉक्टरी की पढाई क्यूं करता। क्यूं कोई मेडिकल में दाखिले के लिए लाखों का डोनेशन देता। दुआ यह भी-‘खुदा महफूज रखे सदा इन तीन बलाओं से.. वकीलों से, हकीमों से, हसीनों की निगाहों से..। इस के बावजूद प्राणी कहीं ना कहीं ‘भचीड़ खा ही जाता है। एक बार भचीड खाते ही सब कुछ अस्त-व्यस्त। सब डिस्टर्ब हो जाते हैं। हारी-बीमारी को ही ले ले लीजिए। बीमार होता है एक जना और पूरा परिवार डिस्टर्ब हो जाता है। जांच का एक पायदान यहीं से शुरू होता है।

हमने पहले सब को हाजा-ताजा और ‘सर्वे भवंतु सुखेन का आशीर्वाद दिया था। इसके बावजूद किसी को अस्पताल जाना पड़ जाए तो धरते ‘इ जांच का सामना। डागदर बाबू बात करते-करते आप की आंखें-सीना-पेट-हाथ-मुंह-जीभ जांचजुचू कर दुनिया भर की जांच पहले लिखेंगे। खून की जांच। यूरिन की जांच। कफ की जांच। एक्स-रे। सिटी स्केन। एमआरआई। निजी अस्पताल में जाने वाले ही जाते हैं। आम आदमी सरकारी अस्पतालों की शरण में। एक जांच केंद्र इधर-दूसरा उधर। एक दवाई काउंटर नंबर चार पर मिलेगी-दूसरी तेरह पर। यहां से एनओसी कटेगी। वहां से जांच रिपोर्ट मिलेगी। रोगी के साथ आए परिजन ‘बांगे हो जाते हैं।

थाने-चौकियां भी जांच की नींव पर खड़ी नजर आती है। केस दर्ज होने के बाद आईओ नियुक्त किया जाता है जो मामले की जांच करता है। मौका मुआयना। पंचनामा। गवाहों के बयान। मेडिकल रिपोर्ट। शासन-प्रशासन तो जांच से छिलमछिल। ऐसा कोई विभाग-महकमा नही जो जांचों से अछूते हो। कही अफसर के खिलाफ जांच तो कहीं करमचारी के खिलाफ। कही जांच कमेटी तो कही जांच आयोग। हैरत तब होती है जब किसी विद्यार्थी की हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे उसके उग्र साथियों पर पुलिस लाठी चार्ज कर देती है। गोली चला देती है। उसकी भी जांच बिठा दी जाती है।

पर हथाईबाज जिस जांच की बात कर रहे हैं वो अब तक की जांचों से अलहदा। जो जांच अब तक किसी ने नही करवाई, वो महाराष्ट्र सरकार करवाने का दम भर रही है। भले ही देश उस जांच को शरमनाक कहे। धिक्कारे। लानत डाले पर वोटों की राजनीति के आगे सब कुछ बौना।

हुआ यूं कि अपने यहां चल रहे कथित किसान आंदोलन पर कुछ विदेशी-नचनियों-कुदनियों ने टिप्पणी कर दी। अव्वल तो उनको हमारे अंदरूनी मामले में टांग अडाने का कोई अधिकार नही। पंचायती कर ही ली तो हमारी हस्तियों ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया। इनमें लता मंगेशकर-सचिन तेंदुलकर-अक्षय कुमार और विवेक कोहली जैसी अन्य हस्तियां शामिल हैं। शायद इन का जवाब महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ नेतों को रास नही आया और उन्होंने इन हस्तियों के ट्विट की जांच की मांग कर दी। सरकार ने भी आश्वासन दे दिया कि मामले की जांच करवाई जाएगी।

हथाईबाजों को महाराष्ट्र सरकार का यह कदम कत्तई नही सुहा रहा। विदेशी हमारे खिलाफ कुछ भी लिखे-बोलें और हम जवाब दे दे तो जांच। यह उचित नही है। हमारी हस्तियों ने राष्ट्र प्रेम का जो जज्बा दिखाया उसे सेल्यूट। राष्ट्र प्रेम की जांच करवाना धिक्कारणीय है। लो हम भी लिख रहे हैं कि किसी विदेशी को हमारे आंतरिक मामले में टांग अड़ाने का अधिकार नही है। तुम तुम्हारा घर संभालो। हम हमारा घर संभालने में सक्षम है। किसी को इसकी भी जांच करवानी है तो शौक से करवा ले। जय भारत-जय हिंद।