नौसेना की जरूरत बना तीसरा विमानवाहक

भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा है कि एशिया में वर्तमान सुरक्षा स्थिति को देखते हुए एक तीसरे विमानवाहक पोत की जरूरत है। इसकी जानकारी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी पहुंचा दी है। 

कैबिनेट मंजूरी समेत तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद एक विमानवाहक पोत को बनने में 18 वर्ष का समय लग जाता है। ऐसा आईएनएस विक्रांत के मामले देखा जा चुका है। वहीं, चीन द्वारा अब छठे विमानवाहक पोत को समुद्र में उतारने की तैयारी है, ऐसे में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों को अब भारतीय विमानवाहक पोत को लेकर कोई कदम उठाना होगा।

नौसेना दिवस के मौके पर नौसेना प्रमुख ने कहा था कि भारत अगर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है तो इसे खुद की सुरक्षा करने के अलावा अपनी सामरिक शक्ति का भी प्रदर्शन करना होगा।

भारतीय सैन्य हलकों में तीसरे विमानवाहक पोत को लेकर बहस शुरू हो गई है, क्योंकि नौसेना को यह बताना होगा कि लंबी दूरी के स्टैंड-ऑफ हथियारों के युग में यह पोत कितने समय तक टिक पाएगा। वास्तव में चीन के पास डीएफ-21 मिसाइल है, जिसकी रेंज 1700 किमी है। चीन में इसे ‘शिप किलर’ का नाम दिया गया है। 

भारतीय नौसेना का मानना है कि उसे शक्ति प्रदर्शन को लेकर भारतीय प्रायद्वीप तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि समुद्र में उसकी मौजूदगी लंबी दूरी तक होनी चाहिए। वहीं, वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि सरकार 10 बिलियन डॉलर (70 हजार करोड़ रुपये) के विमानवाहक पोत को मंजूरी दे पाएगी।  

नौसेना आईएनएस विक्रमादित्य में स्काई जंग एसटीओबीएआर (शॉर्ट टेक-ऑफ, बैरियर अरेस्ट रिकवरी सिस्टम) के विपरीत इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम के साथ 65,000 टन का विमानवाहक चाहती है।