नई पीढ़ी की सोच और कार्य करने के तरीकों का सम्मान करने की आवश्यकता : परीक्षित

डूंगरपुर। सहस्त्र औदिच्य ब्राह्मण समाज बांसवाड़ा की और से त्रिपुरा सुंदरी मंदिर परिसर सभागार में मंगलवार को श्रीमान-श्रीमती सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में पेरेंटिंग कोच परीक्षित जोबनपुत्र ने वैवाहिक जीवन में मधुरता एवं परवरिश की कला पर वार्ता दी। उन्होंने कहा कि समाज व परिवार की श्रेष्ठता की ओर ले जाना चाहते हैं तो पैर खींचने की नहीं हाथ बढ़ाने की कोशिश करें तो हम अमेरिका से भी आगे होंगे।

मक्खी गंदगी पर बैठती है और भिनभिनाती है, जबकि मधुमक्खी फूलों पर बैठती है और शहद बनाती है। इसलिए हमें लोगों की कमियों, खामियों पर ध्यान देने की बजाय उनकी अच्छाइयों और क्षमताओं की चर्चा करनी चाहिए, तभी जाकर संबंध सामान्य बनेंगे। घर को स्वर्ग बनाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिस घर की एक महिला को दूसरी महिला साथ देगी तो स्थितियां बहुत जल्दी सामान्य हो जाएंगी। आईएएस बनना आसान है लेकिन सास-बहू के झगड़े सुलझाना मुश्किल काम है।

बच्चों की कमियों को सुधार करने के बजाए उनकी खूबियों को बढ़ाने पर काम करना चाहिए, यदि बच्चों का साथ देंगे उनका उत्साहवर्धन करेंगे और उनको समझने का प्रयास करेंगे तो उनका सर्वांगीण विकास होगा और वह निरंतर आगे बढऩे को प्रेरित होंगे। उन्होंने टी फेक्टर की चर्चा होते हुए कहा कि टॉलरेंस क्षमता नई पीढ़ी में कम होती जा रही है इसलिए बहुत ही मनोवैज्ञानिक तरीके से डील करना चाहिए। उन्होंने आह्वान किया कि जो बच्चा लीक से हटकर कार्य करना चाहे तो उसका सपोर्ट करें। सकारात्मक सोच के साथ बच्चों को आगे बढ़ाने में परिवार को मदद करनी चाहिए।

अच्छे संस्कार के आधार पर ही हम मजबूत राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं। नई पीढ़ी की सोच एवं कार्य करने के तरीके का सम्मान करने की आवश्यकता है तभी जाकर पुरानी पीढ़ी के साथ उलझन कम से कम होंगी। सुखद वैवाहिक जीवन के संबंध में कहा कि जब हम एक दूसरे को सुनते नहीं है तो खिंचाव बढ़ता है। प्यार का वातावरण हमेशा बना रहना चाहिए। अध्यक्ष रमेशचंद्र पंड्या ने विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के समय की यह सबसे बड़ी जरूरत है कि परिवारों में सामंजस्य रहें एवं बच्चों को संस्कारवान बनाया जाए। डॉ दिनेश चंद्र भट्ट ने अतिथियों का स्वागत किया।

जयप्रकाश पंड्या ने आभार जताया। पहले सत्र में जमनालाल भट्ट, बालकृष्ण त्रिवेदी, जमनालाल जोशी, हरीश कौशिक, पूर्णाशंकर शुक्ला, दिनेश मेहता मंचासीन रहे। वक्ता धार्मिक त्रिवेदी ने मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण प्रभाव एवं उपाय की जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि जो मनोवैज्ञानिक डिसऑर्डर है उसको पहचाना जा सकता है एवं समय रहते काउंसलिंग के माध्यम से इलाज भी हो सकता है। त्रिवेदी ने डिप्रेशन एंजाइटी, ओसीडी, स्लीप डिसऑर्डर, एडिक्शन आदि के बारे में सदस्यों को सावचेत किया और कहा कि जिस तरह बेटा-बेटी एक समान हैं।

वैसे ही तन और मन को भी एक जैसा महत्व देना चाहिए। लोग शरीर की समस्याओं को लेकर के तो जागरूक होते हैं लेकिन मानसिक समस्याओं को लेकर बहुत ध्यान नहीं देते हैं। उन्होंने बिना निर्णय लिए ध्यान पूर्वक सुनने जिज्ञासा के आधार पर सवाल करने और शांत मन के साथ विचार करने का सूत्र दिया। यदि किसी सदस्य में गुस्सा, तनाव, अकेलापन, उदासी, निराशा और हताशा के कोई लक्षण हैं तो उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए और मनोचिकित्सक से बात करनी चाहिए।

उन्होंने अपने काउंसलिंग फील्ड के अनुभव के आधार पर कहा कि जिस तरह शरीर का ऑपरेशन होता है वैसे गुस्से का भी ऑपरेशन किया जा सकता है। एक ही विचार को बार-बार दोहराना किसी भी काम में मजा नहीं आना, किसी प्रेरणा की कमी और सामाजिक गतिविधियों से दूर रहने की स्थितियां यदि बनती है तो उसे संभल जाना चाहिए। दूसरे सत्र में करुणा पंड्या कलावती शुक्ला, प्रतिभा पंड्या, नीता भट्ट, जिज्ञासा भट्ट, बृजबाला भट्ट उषा जोशी आदि महिलाएं मंचासीन रही।

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