खाद्य सयंम की प्राणशक्ति है अनासक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
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महातपस्वी महाश्रमण के मंगल सन्निधि में महापर्व पर्युषण का मंगल शुभारम्भ

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर में तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन धर्म में अध्यात्म की साधना का महापर्व पर्युषण का भव्य और आध्यात्मिक रूप में शुभारम्भ हुआ। चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनमेदिनी व मंच पर उपस्थित चारित्रात्माओं के मध्य पट्ट पर विराजित युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से मंगल महामंत्रोच्चार के साथ आध्यात्म की साधना के महापर्व पर्युषण का शुभारम्भ हुआ। संवत्सरी और क्षमापना दिवस सहित कुल नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को मानाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पूज्य सन्निधि में उपस्थित हो चुके थे। पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बना हुआ था। आध्यात्मिक साधना के महापर्व को अध्यात्मवेत्ता व महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मनाने को हर श्रद्धालु उत्सुक दिखाई दे रहा था। प्रात: नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए और मंगल महा मंत्रोच्चार किया। तदुपरान्त मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया। साध्वी मुकुलयशाजी ने ‘खाद्य संयम दिवसÓ के संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने ‘पर्युषण महापर्वÓ व ‘खाद्य संयम दिवसÓ के महत्त्व को व्याख्यायित किया।

वर्ष के दो विभाग होते हैं

आचार्यश्री महाश्रमण
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तदुपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि वर्ष के दो विभाग होते हैं-चतुर्मासकाल और शेषकाल। चतुर्मासकाल धर्म-आराधना के लिए विशेष होता है। यों तो आदमी प्रतिदिन धर्माराधना करता है, किन्तु सामूहिक और समयानुकूल धर्माराधना का यह विशेष अवसर होता है। कितनी-कितनी तपस्याएं होती हैं। इन चार महीनों में भी श्रावण और भाद्रव तो धर्माराधना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं और उनमें भी भाद्रव महीना तो जैन परंपरा के लिए मानों शिमौर महीना होता है। इसी महीने में पर्युषण महापर्व का प्रारम्भ होता है। आज यहां ही नहीं, देश भर में जगह-जगह साधु-साध्वियों, समणियों द्वारा पर्युषण की आराधना आरम्भ हो गई होगी। आज से पर्वाधिराज पर्युषण का शुभारम्भ हुआ है। इस समय के कार्यक्रम सुव्यवस्थित और अध्यात्म से ओत-प्रोत होते हैं। इस आराधना में चारित्रात्माओं का ही नहीं, श्रावक-श्राविकाओं का भी विशेष सहभाग होता है।

धर्माराधना का पुष्ट कार्य है आत्मवाद

आचार्यश्री महाश्रमण
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धर्माराधना का पुष्ट कार्य है आत्मवाद। शाश्वत आत्मवाद पर ही अध्यात्मवाद टिका हुआ है। आज का दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोज्य है। उपवास करना तो अच्छी बात होती है किन्तु भोजन करने के दौरान भी संयम रखने का प्रयास होना चाहिए। दो प्रकार के भोजन होते हैं- साधनानुुकूल भोजन और स्वास्थ्यानुकूल भोजन। भोजन ऐसा हो जो कार्य में बाधा नहीं, सहायक बने। अपने-अपने शरीर के अनुसार भोजन करने का प्रयास हो। आदमी को हितकर भोजन पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। खाने में जल्दीबाजी न हो और चबा-चबाकर भोजन हो तो भोजन का संयम हो सकता है। भोजन के अर्जन और विसर्जन का समय निर्धारित हो तो स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है। खाद्य संयम की प्राणशक्ति है अनासक्ति। अनासक्ति के साथ और स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन हो तो अच्छा रह सकता है। आचार्यश्री ने बालमुनियों को उत्प्रेरित करते हुए उनसे भोजन के संदर्भ में अनेक प्रश्न किए और उन्हें उचित समाधान भी प्रदान किए। पर्युषण महापर्व की आराधना के अवसर पर सूर्योदय से लेकर देर रात तक चरणबद्ध रूप में विभिन्न आध्यात्मिक आयोजन होंगे।

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