राजस्थान के सपूत बनायेंगे जयपुर में विश्वस्तर की सुविधाओं युक्त वृद्ध माता-पिता के लिये ‘अपना घर’

प्रवासी राजस्थानी: दुबई में बसे अजमेर के प्रवीण मेहता राजस्थान सरकार के प्रोत्साहन से कार्यरत योजना को पहनायेंगे अमलीजामा

राजेन्द्र सिंह गहलोत

हम अपने माता-पिता के पैर नहीं दबा सकते तो दबवा तो सकते हैं, उनको विश्व स्तर की सुविधायें और छुट्टियों में अपना प्यार भरा स्पर्श उपलब्ध तो करवा सकते हैं, प्रवासी राजस्थानियों के इस दर्द को कोरोनाकाल में और भी ज्यादा महसूस किया जा सकता है क्योंकि कई परिवार ऐसे हैं जिनके बच्चें तो विदेशों में हैं और माता-पिता भारत में है और अगर वे लोग कोरोना संक्रमित हो जाते हैं तो उनको सम्भालने वाला कोई नहीं, माता-पिता यहाँ बेबस और बच्चे विदेश में बेबस, यह बेबसी देखकर मुझे १९७०-८० के दशक की बात याद आ गई, जब परिवार संयुक्त थे, लोग फ्लैटों में नहीं, मकानों में रहते थे, जिन्हें घर कहा जाता था क्योंकि वहाँ रहते थे दादा-दादी और उनके बच्चे यानि पापा-मंमी, चाचा-चाची, ताऊजी-ताईजी, अविवाहित बुआजी, फिर पापा-मंमी के बच्चे यानि हम भाई-बहन, चाचा-चाची के बच्चे, ताऊजी-ताईजी के बच्चे, इस तरह कम से कम करीब 20-25 लोगों का परिवार तो हो ही जाता था। एक ही रसोई होती जहाँ सबका भोजन बनता, आदमी काम पर चले जाते, पीछे से औरतों की हँसी-ठिठोली और बच्चों का खेलकूद, शोरगुल।

विदेश जाना मजबूरी, लेकिन मां-बाप की रहती है चिंता

वो वक्त और था जब घर कच्चे लेकिन लोग सच्चे हुआ करते थे, गरीबी थी लेकिन ईमानदारी थी, संतोष था। धीरे-धीरे वक्त ने करवट ली भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ी तो आमदनी कम पडऩे लगी, रोजगार के लिये पलायन शुरू हुआ, गाँव से शहर, शहर से प्रदेश, प्रदेश से देश, देश से विदेश। बच्चे भी क्या करते उनकी शिक्षा के अनुरूप भारत में रोजगार नहीं, रोजगार था भी तो विदेश जितनी आय नहीं, विदेश जाना मजबूरी हो गई, दिल बच्चों का भी टूटता है माता-पिता को छोड़कर विदेश जाकर बसने में, क्योंकि चिंता यह कि माता-पिता पीछे छूट जाते हैं तो वहाँ उनकी सेवा कौन करे ? माता-पिता बच्चों को इसके लिये दोष दें तो बच्चे भी क्या करें, वह बहुत कोशिश करते हैं माता-पिता से फेसबुक से, वीडियो कॉलिंग से, व्हाट्सएप से, फोन से जुड़े रहने की, लेकिन तकनीक और मशीनें कभी भी आदमी की जगह नहीं ले सकती, वृद्ध माता-पिता को सांत्वना नहीं देती तकनीक की आभाषीय दुनिया या जिसे कहें वर्चुअल वर्ल्ड, क्योंकि उन्हें इस उम्र में असल देखभाल की जरूरत होती है, उन्हें चाहिये प्यार भरा अपनों का स्पर्श, कोई हो जो सामने बैठकर उनकी बातें सुनें और वह अपने सुनहरे अतीत में खो जायें, कोई हो सामने जो तुरंत उसी समय उनकी देखभाल को मौजूद हो।

वृद्धाश्रम नहीं, ‘अपना घर’ जिसे बच्चे खरीदकर माता-पिता को गिफ्ट कर सकें

आज भारत में करीब 3 करोड़ प्रवासी भारतीय यानि एनआरआई हैं, जो विदेशों में रहते हैं और यह समस्या उन सबके साथ है, प्रवासी राजस्थानी प्रवीण मेहता जो अजमेर के रहने वाले हैं और आईसीडब्लूए और सीए की पढ़ाई करके दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में कार्यरत हैं, ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जाना कि वृद्ध माता-पिता का अकेले रहना उचित नहीं हैं, क्योंकि उन्हें एकाकीपन काटता है, अगर वो समुदाय में रहें तो उनके जैसे ही बहुत सारे लोग उनके साथ होंगे जिन्हें वो बात कर सकते हैं, दुख-सुख बांट सकते हैं तो चीजें अच्छी होंगी, जिस तरह स्कूल होते हैं, कॉलेज होते हैं, यूनिवर्सिटी होती हैं जिनमें फीस जमा कराकर हम अपने बच्चों को वहाँ पढऩे भेजते हैं तो उनको बेहतरीन अध्यापक शिक्षा प्रदान करते हैं, वहाँ वो कक्षा में पढ़ते भी हैं, खेल के मैदान में खेलते भी हैं, जहाँ उनके लिये लायब्रेरी भी होती है, कैन्टीन भी होती है, इन संस्थाओं में बच्चे समुदाय में कम्यूनिटी में रहना सीखते हैं तो क्यों नहीं इस तरह के कम्यून भारत में भी हों जहाँ प्रवासी भारतीयों के माता-पिता रह सकें जहाँ विश्व स्तर की सुख सुविधायें हों जहाँ वो ससम्मान अपने घर में अपने जीवन का आनंद ले सकें। प्रवीण मेहता ने बताया कि उनका अपना घर इस तरह का हो जैसा अमेरिका में है, कनाड़ा में है, लेकिन वहाँ बच्चे माता-पिता को छोड़कर चले जाते हैं तो फिर वापस नहीं आते, इसलिये संस्कार भारतीय हों और सुविधायें पाश्चात्य हों यानि आधुनिक, विश्व स्तर की, जहाँ बच्चे विदशों से अपने माता-पिता से मिलने अपना घर में आ सके, उनके साथ 2-3 महिनें रह सकें और वह वृद्धाश्रम नहीं हो जैसे आश्रम अमूमन होते हैं वह शर्म की बात है, बल्कि वह अपना घर हो, जिसे उनके बच्चे खरीदकर अपने माता-पिता को गिफ्ट कर सकें।

राजस्थान सरकार की नीति के अनुरूप हम इसे उद्योग मान रहे हैं : धीरज श्रीवास्तव

इसके लिये राजस्थान सरकार ने प्रवासी भारतीयों के लिये वरिष्ठ नागरिकों के सामूहिक आवास को उद्योग का दर्जा देते हुए विशेष सुविधाओं की घोषणा के साथ अच्छी नीति बनाई है जिसके संबंध में हमें राजस्थान फाउंडेशन के कमिश्रर धीरज श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्थान सरकार की नीति के अनुरूप हम इसे उद्योग मान रहे हैं। प्रवीण मेहता को राजस्थान सरकार के सहयोग से यह प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये, उनका सपना साकार करने के लिये मैं तो राजस्थान की इस माटी के लाल से बस इतना ही कहूँगा पधारो म्हारे देस।

अपना घर : एक नजर

प्रवीण मेहता ने बताया कि हमारे सपने को साकार करने के लिये राजस्थान सरकार के प्रोत्साहन से कार्यरत यह योजना कोरोनाकाल के बाद 2 साल के अंदर साकार हो जायेगी जब राजस्थान की राजधानी जयपुर में एयरपोर्ट से 6 किलोमीटर दूर, जगतपुरा के पास ढाई एकड़ की जमीन में 65 करोड़ का प्रोजेक्ट बनकर तैयार होगा, जिसमें 120 घरों में से 90 घर 2 बैडरू म फ्लैट होंगे, जिनकी अनुमानित कीमत 48 लाख रूपये के करीब होगी, 30 घर 3 बैडरूम विला होंगे जिनकी अनुमानित कीमत 70 से 80 लाख रूपये होगी, वहाँ 24 घंटे रहने वाले 30-35 कर्मचारियों के लिये सर्वेंट क्वार्टर अलग से होंगे, 24 कमरों का गेस्ट हाऊस भी बनायेंगे जिनमें परिवारवालें, या मिलने वाले आयें तो निश्चित किराया देकर रह सकते हैं, वहाँ रेस्टोरेंट भी होगा, बडा हॉल होगा जहाँ ध्यान, योगा आदि गतिविधियां संचालित की जायेगी, लायब्रेरी, लिफ्ट, रैम्प, पार्किंग, किचन सब होंगे, और यह जरूरी नहीं कि एनआरआई ही ये घर खरीद सकें बल्कि भारत में भी जो बच्चे दूसरे शहरों में रहते हैं वे भी अपने माता पिता के लिये ये घर खरीदकर भेंट कर सकते हैं, क्योंकि हम इसे चैरिटी की तरह नहीं, व्यवसाय की तरह चलायेंगे।

सारे एनआरआई समर्थ हैं जो यह घर खरीदकर अपने माता पिता को दे सकते हैं तो चैरिटी किस बात की, चैरिटी उनके और उनके माता पिता की गरिमा के विरूद्ध है, क्योंकि चैरिटी के नाम पर भारत में जो वृद्धाश्रम चलाये जाते हैं उनकी हालत देखकर वो किसी को भी शर्मसार कर सकते हैं। हम इसे एक स्टार होटल की तरह चलायेंगे, जिससे सबका आत्मसम्मान बना करे, हम राजस्थान के सपूत सबको ये आदर्श प्रस्तुत करेंगे कि माता-पिता की सेवा अगर खुद नहीं की जा सकती तो ससम्मान करवाई तो जा सकती है, क्योंकि कुछ साल बाद जब हम खुद इस अवस्था में आयेंगे तो ये घर हमारे भी रहने के काम आयेंगे। इनमें मेरे मित्र डॉक्टर रोमित पुरोहित जो दुबई में ही डॉक्टर हैं और जोधपुर के हैं, उनके निर्देशन में एक अस्पताल होगा, जिसमें सारी सुविधायें होगी, जहाँ एलोपैथी, आयुर्वेद दोनो पद्धतियों से इलाज होगा, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, एम्बुलेंस और सब सुविधाएं हमारी होगी।