खुल जाए बंद स्कूल का ताला

यह तो सवाल के साथ-साथ पहेली भी हो गई। इसमें कहावत का ‘छमका मार द्यो तो भी चलेगा। सवाल और पहेली बाद में हल करेंगे पहले बात कहावत की, जिसे-‘आम के आम-गुठली के दाम के रूप में देखा जा सकता है। इस को उलटा करें तो ना आम और ना गुठली। हां, एक गाने के सुर जरूर गूंजते सुनाई देंगे। उसमें भी बदलाव ‘खुल जाए बंद स्कूल का ताला। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

पहली कहावत किस ने घड़ी। किस प्रसंग पे घड़ी। कहावत का महावत एक था या दो-चारेक ने मिल के घड़ी। उसका लोकार्पण किस के हाथों हुआ। इसके बारे में किसी के पास कोई अधिकृत जानकारी नहीं। गुगल बाबा भी इस मुद्दे पे अगलें-बगलें झांकते नजर आएंगे। हमें पता है कि उनका जवाब भी ‘नो कमेंट्स के रूप में मिलना है तो उन्हें खामखा परेशा क्यूं करें। हमें शक है कि इन दिनों सबसे ज्यादा परेशान बाबा गुगल ही होंगे। लोग बात-बात में उनको तंग करते है। आलू क्या भाव है। मिर्ची क्या भाव है। तोरे-टींडे सड़े हुए क्यूं हैं।

ग्वारफली पकी हुई कैसे है। लसण की चटणी कैसे बनती है। पति की तनखा कितनी है। पत्नी मायके का कह कर कहां गई थी। बिल्ली का बच्चा और कुकरिए में से ज्यादा दूध कौन पीता है। बिचारे बाबा अंडक-बंडक सवालों के जवाब देते-देते थक जाते होंगे। हम उन्हें और परेशान करें, ठीक नहीं लगता। पूछ भी लें कि कहावत का इतिहास बताइए। इस बारे सर्च भी करें तो बाबा पहले चाय और सिर दर्द ठीक होने की गोली मांगेंगे फिर ओढ के सो जाएंगे। लिहाजा आम और गुठली का चैप्टर फिलहाल बंद।

हथाईबाज सवालों पर भी कई बार चर्चा कर चुके हैं। एक हिसाब से देखा जाए तो घट्टी घूमती-घूमती वापस अपने-अपने स्टेशनों पर रूक जाए तो गलत नही है। हमें नही पता कि दुनिया तिकोणी है या चौकोणी। भाईसेण कहते हैं-गोल है, तो हमने भी मान लिया। इसके माने बात-मसला-मुद्दा-चर्चा घूम फिर कर वापस वही आणे है। हमारे टेम के बुस्केट और पेंट-पतलून में थोड़ा, चेंज कर के बाजार में उतार दिया।

हो गई नही फैशन। गहनों-गांठों के साथ भी यही हो रहा है। नई चीज बनाने में खासी मेहनत-लागत लगती है-लिहाजा पुरानी पे थोड़ी चुपड़ा-चुपड़ी की और मामला नक्की। पोती सरारा-कुरता ले के घर गई तो दादी ने देख कर कह दिया-‘हमारे बखत भी ऐसे कपड़े खूब चलते थे। हां, इतना जरूर है कि कहावत सही टेम पे कही जाए तो चूंटिए का काम करती है। ऐसा तंज-ऐसा तीर कि अगली पार्टी छटपटा के रह जाती है। आवै नहीं क के का पूण और बात करते हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर की। उनके लिए ‘अधजल गगरी छ लकत जाए काफी है।

कहावत से गाने और गाने से ताले पे आना, कई लोगों को अचकचा सकता है। कहावत से पर्यायवाची शब्द पे आते तो चलता। कहावत से आडियो-ओखाणो पे आते तो अचकच नही होती। कहावत से कहानी पे आना भी नहीं अखरता। माना कि गानों में तुक्कों के रूप में कहावतें परोस दी जाती है। गीतों में पहेलियों और सवालों का ‘तड़का भी लगाया जाता है। स्कूल के ताले पे लोग क्या से क्या समझ बैठे होंगे। कहां से कहां चले गए होंगे। वहां खुल जाए बंद अकल का ताला और यहां बंद स्कूल का।

‘खाइके पान बनारस वाले गाने को जैसे आप ने सुना, वैसे हम ने भी सुना। चला तब खूब चला-शादी ब्याह के दौरान आज भी चलता है। भाईलोग जम के ठुमके लगाते हैं। गाने को गाने के हिसाब से लेने-सुनने में कोई ‘मेणी नही। गंभीरता से गौर करें तो कम से कम हमें तो एतराज। बनारस का पान खाने या खिलाने से बंद अकल का ताला खुलता होता तो देश में एक भी येड़ा नही होता। एक भी पागलखाना नही होता। एक भी विमंदित घर नही होता। कोई भी मंद बुद्धि का नहीं होता। बनारस के पान के बीड़े सात समंदर पार भेजे जाते। लो भाइयों, आपके वहां जो येड़े हैं उन सब को खिला के बंद अकल के ताले खोल दो। पर गाना तो गाना है। गाने में ताले-लाले-जाले-प्याले-काले-पीले-धोले सब का उपयोग किया जा सकता है। पान के साथ खान-जान-जहान-मान भी घुसेड़े जा सकते हैं।

हथाईबाजों ने ‘अकल की बजाय स्कूल का जिक्र किया तो लगा कि कोरोनाकाल के कारण पिछले साल-सवा साल से बंद पड़ी-स्कूलों की बात चल रही होगी। स्कूलों में स्टाफ तो जा रिया-आ रिया है। बच्चे नही आ रहे। सोचा कि उनका जिक्र हो रहा होगा। हम तो भगवान से प्रार्थना करते हैं कि सब-सब पहले जैसा हो ताकि स्कूलों में रौनक लौटे पर यहां जिस स्कूल की बात की जा रही है उस पर उनके जनम से ही ताला लटका है।

सीकर जिले के नेछवा स्थित कोठ्यारी स्कूल में वर्ष 2007 में राजस्थान का पहला स्पोर्ट्स स्कूल खोला था। कुछ दिन तक तो खेल-खिलाडिय़ों की धमचक रही। उसके बाद उसपे ताला ठुक गया। बारह-तेरह साल से स्पोर्टस स्कूल ताले में कैद है। आरोप है कि सियासी दांवपेज के चलते वहां ताले ठुके हुए हैं। उसे खोलने के लिए या तो ताले को बनारसी पान सुंघाया जाए या फिर हल्की-गंदी और सूगली राजनीति छोड़कर खेल और खिलाडिय़ों के हितों पे ध्यान दिया जाए। हथाईबाज भी तो यही कह रहे हैं-‘खुल जाए बंद स्कूल का ताला।

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