चेतना को झंकृत कर अध्यात्म मुखी बनाता है पर्युषण : जिनबाला

पर्युषण महापर्व
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सरदारशहर। साध्वी जिनबाला आदि ठाणा-4 के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का मेघराज तातेड भवन के बाहरी प्रांगण में प्रारंभ हुआ। ‘खाद्य संयम दिवसÓ के रूप में मनाया जाने वाले प्रथम दिवस का मंगलाचरण तेरापंथ समाज सरदारपुरा के वरिष्ठ श्रावकों द्वारा प्रभु पाश्र्व को समर्पित गीत के संगान से किया।

पर्युषण महापर्व
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साध्वी जिनबाला प्रवचन देते हुए कहा कि पर्युषण पर्व का आज से प्रारंभ हो रहा है। एक घटना की स्मृति आ रही है जहां सुनने को मिलता है कि एक दो मास के शिशु ने पर्युषण प्रारंभ हो गया, यह सुनकर तेले (तीन दिन का उपवास) का तप किया।

आत्मा के निकट रहने का प्रयत्न करें

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यह पर्युषण पर्व व्यक्ति की चेतना को झंकृत कर उपयोग अध्यात्म मुखी बनने वाला होता है। पर्यूषण में ‘परिसमन्तात् वसनम् इति पर्युषणÓ इस व्युत्पति के आधार पर हम अपनी आत्मा के निकट रहने का प्रयत्न करें। आज खाद्य संयम का दिवस रसनेन्द्रिय पर विजय की प्रेरणा देने वाले है। स्वास्थ्य को गौण कर स्वाद के लिये खाना अज्ञानता है। प्रसिद्ध सूक्ति है ‘जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मनÓ – सात्विक आहार के बिना धर्म के भाव नही हो सकते। हमें कषाय मिश्रित आहार से भी बचना चाहिये। क्रोध में खाना खिलाना दोनों अहितकर है। आज का दिन द्रव्यों की सीमा की चेतना को जाग्रत कर जीवन में संयम की प्रेरणा देता है। साध्वी करूणा प्रभा जी ने भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डालते हुये भगवान महावीर के 27 भवों का वर्णन प्रारंभ किया।

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कल्पसूत्र में व्याख्यातित भवों का विवेचन करते हुये नयसार और मरीचि के भव का वर्णन किया। साध्वी श्री ने सम्यक्त्व क्या होता है और समवसरण की रचना कैसी होती है इसको विस्तार से बताया। साध्वी भव्य प्रभा ने प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया। साध्वी महकप्रभा ने खाद्य संयम विषय पर गीतिका की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन सभा उपाध्यक्ष विनय तातेड़ ने किया।

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