पेली बिच्चे ठीक है

शीर्षक में राजस्थानी भी हैं, और हिन्दी भी। पहले के दो हर्फ राजस्थानी में और पीछे के दो हिन्दी में। राजस्थानी हमारी मातृ भाषा और हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा। ठीक है.. में तो कोई लोचा नहीं। भगवान सब को ठीकठाक रखे। ‘पेली बिच्चे में हम-आप को कोई परेशानी नहीं। उन लोगों को इस का अर्थ बताना जरूरी जो खुद की समृद्ध-समर्थ जुबान होते हुए भी दूसरी भाषाओं के पीछे डोल रहे हैं। जैसे हम गर्व से कहते हैं ‘जय-जय राजस्थान-जय-जय राजस्थानी उसी प्रकार नई नस्ल को भी अपनी भाषा के सम्मान और प्रचार-प्रसर के लिए आगे आना चाहिए। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

शुरूआत पीछे से करते हैं। इसको लेकर दो धाराएं फूटती नजर आती है। कई लोगों का कहना है कि शुरूआत परंपरागत तरीके से की जाए तो मुनासिब रहेगा। मिसाल के तौर पर ‘बाराखड़ी को ले लीजिए। हमारी वर्णमाला ‘अ से शुरू होती है और ‘ज्ञ पर जाकर विराम लेती है। विद्वानों का कहना है कि ‘अ से वर्णमाला की शुरूआत होना या करना कोई संयोग नही हैं। सोच-समझ-विचार-विमर्श करने के बाद इस का लोकार्पण किया गया है। ‘अ से अज्ञानता या अपढ से शुरू हुई वर्णमाल ‘ज्ञ से ज्ञान या ज्ञानी पर जाकर विराम लेती है। ज्ञान लेने की भी कोई आयु सीमा निर्धारित नही है। कोई अपने आप को ज्ञान से परिपूर्ण या ज्ञानसागर मान ले तो उसमें बड़ा अज्ञानी कोई नहीं। मानखा जितना सीखे उतना कम है।

उसे ता-जिंदगी शिष्य बन के रहना चाहिए। हमारे आई बाबा कहते थे-‘बचपना और जिज्ञासा की मत छोडऩा ‘जिंदगी के इस पड़ाव में भी उनकी यह सीख हम से लिपटी हुई है। कई लोगों का विचार इससे अलग। वो कहते हैं अंत ही शुरूआत है। बिस्मिल्लाह होगा तभी वो अंत होगा- अंत होगा तभी तो शुरूआत होगी। इसके बावजूद अगर किसी को कुछ वहम-शक हो, तो वह अपनी सहूलियत के हिसाब से शुरूआत करने के लिए स्वतंत्र है। बाराखड़ी में तो अंत से शुरूआत होने का सवाल ही खड़ा नही होता। दीगर मसलों-मुद्दों पर ‘जेड़ौ देखौ बायरो-वैडी लीजौ ओट..। यही सोच कर हम पीछे से शुरू करते हैं। याने कि ‘ठीक से। ऐसा यहीं किया जा रहा है। रियाल लाइफ में हम परंपराओं पर चलने वाले। विश्वासी मगर अंधविश्वासी नहीं। संस्कृति के पहरूए मगर लकीर फकीर नहीं।

‘ठीक है एक ऐसा जुमला है जो आखे देश में रोजाना करोड़ों-करोड़ों दफे फुदकता है। एक मानखा एक दिन में पांच दफे इसका प्रयोग करें तो 135 करोड़ लोगों का हिसाब-किताब कितना होगा। करके देख लो। हमें गणित में दसवीं में पांच नंबर का ग्रेस मिला था। हम हिसाब-किताब करने बैठ गए तो आठोअट्ठी-पैंसठ होणा तय समझो। तिरेसेठ भी हो सकते हैं। लिहाजा जोड़-गणित का जिम्मा आपका। अपन सब ठीक हैं और ठीक रहें यही कामना नीली छतरी वाले से करते हैं।

किसी के हाल-चाल पूछो तो जवाब मिलेगा ‘ठीक है। पता है कि भाई की अंदरूनी या बाहरी हालत ठीक नही है मगर वो अपनी जुबान से कभी नहीं उगलेगा। ज्यादा से ज्यादा कह देगा-‘चल रही है भाई। कुछ लोग रोना रोणे बैठ जाते हैं। पण ज्यादातर लोग ‘ठीक है के पाळे में। अस्पताल में भर्ती या घर में पड़े किसी बीमार परिजन से पूछो तो वही कहेगा जिसे हैडिंग बना के लटकाया गया है। ठीक है में तो कोई हैरानी-परेशानी नहीं। नई नस्ल को ‘पेली बिच्चे का अर्थ बताना जरूरी। इस के माने ‘पहले से। इसके माने आधी राजस्थानी और आधी हिन्दी में लिखे शीर्षक का अर्थ हुआ-‘पहले से ठीक है। इसके तार लॉकडाउन से राहत, जनता और आम दुकानदारों से जुड़े हुए।

सरकार ने लॉकडाउन से आम लोगों को बड़ी राहत दी है। पहले यह राहत सुबह 6 से 11 बजे तक थी उसे बढ़ा कर 4 बजे तक कर दिया गया है। वीकेंड कफ्र्यू की मियाद भी कम कर दी गई है। हथाईबाजों ने इसके लिए जोरदार पैरवी की थी। छूट के पहले के समय को लेकर शासन-प्रशासन को खूब आडे-हाथों लिया था। लगातार तीन दिन हथाई पेली। असर यह हुआ कि सरकार को छूट का समय बढाना पड़ गया। सरकार का यह कदम ठीकठाक है। कई काम धंधे शाम 6-7 बजे के बाद से शुरू होते हैं। कई लोग नाईट लाइफ का आनंद लूटते है।

उन्हें फिलहाल इंतजार करना पडेगा। आम दुकानदार से पूछो तो वह पूर्णतया संतुष्ट तो नहीं मगर मुस्करा के कहेगा ‘पेली बिच्चे ठीक है। हथाईबाज चाहते है कि और ज्यादा ठीक हो। इसके लिए हम सब के संयम-धैर्य बरतना पड़ेगा। छूट बढाने का मतलब ये नही कि खाल से बाहर आ जाओ। हमें सरकारी गाइडलाइन की पालना करनी पड़ेगी। हमें अनुशासन में रहना होगा। आज दस घंटे की छूट मिली। कल इसमें इजाफा भी हो सकता है। हमें ‘पेली बिच्चे ठीक है को और ‘ज्यादा ठीक बनाना है। ऐसा नहीं हुआ तो घरबंदी होते देर नहीं लगेगी।

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