काश ! पायलेट सियासी जादूगर मुख्यमंत्री गहलोत से टकराव की बजाय लम्बी रेस की सीख लेते

ashok gehlot with sachin pilot
ashok gehlot with sachin pilot

-नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली। कहते हैं कि इतिहास अपने आपको दोहराता है और आज राजस्थान की राजनीति में इतिहास दोहराया जा रहा है।अस्सी से नब्बे के दशक में जब हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने आतंकवाद से ग्रसित पंजाब से राजस्थान में निर्वासित बूटासिंह और बलराम जाखड़ आदि बाहरी नेताओं द्वारा प्रदेश की राजनीति में दखलंदाजी का कड़ा विरोध किया था लेकिन उनके ऐसा करने पर नाराज कांग्रेस हाईकमान ने युवा केन्द्रीय राज्य मंत्री अशोक गहलोत को तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना कर भेजा था। सत्ता और संगठन में युवा और बुजुर्ग पीढ़ी का टकराव तब भी हुआ था। यह वहीं हरिदेव जोशी थे जिन्होंने एक बार आइरन लेडी मानी जानी वाली इन्दिरा गांधी जैसी प्रधानमंत्री के नुमाइंदे रामनिवास मिर्धा को मुख्यमंत्री के लिए लोकतांत्रिक ढंग से हुए विधायक दल के नेता के चुनाव में हराया था और दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल इलाक़े के यह दिग्गज नेता सर्वमान्य होकर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे। 

हरिदेव जोशी ने तब गहलोत को दिया था गूढ़ मंत्र

बताते है कि अशोक गहलोत के पी सी सी चीफ़ बनकर राजस्थान आने पर विचलित हुए इस कद्दावर नेता हरिदेव जोशी ने तब गहलोत को गूढ़ मंत्र देते हुए कहा था कि “अशोक तुम मेरे लिए अपने बेटे दिनेश जोशी जैसे ही हो, तुम्हारे केन्द्र से राजस्थान में आने पर मुझे कोई एतराज़ नहीं है लेकिन राजस्थान को अपनी राजनीति का चारागाह बनाने की चाह रखने वाले बाहरी नेताओं का मैं विरोध करता रहूंगा, चाहे मेरी सीएम  की कुर्सी ही क्यूं  न छीन जाये, लेकिन मेरी एक सलाह को कभी मत भूलना कि यदि आप राजनीति में लम्बी रेस का घोड़ा बनना चाहते हो या शुरुआत में ही इसे खत्म करना चाहते हो ? यदि नहीं तो अपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नही करना। कहते हैं गहलोत ने जोशी की इस सीख को रस्सी में कड़ी गांठ की तरह बांधा और कालान्तर में देखते ही देखते वे राजस्थान के कई जाने माने दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ते हुए उनसे बहुत आगे निकल गए और आज न केवल तीसरी बार देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं वरन उन्होंने केन्द्र की राजनीति में भी अपने कद से भी ऊंचा मुक़ाम बना लिया है।

सोनिया, राहुल, प्रियंका गांधी और कांग्रेस के विश्वासपात्र क़द्दावर नेता

आज उन्हें अपने नेता सोनिया गांधी, राहुल, प्रियंका गांधी और अन्य सभी का विश्वास हासिल है।दिसम्बर 2019 में  हुए राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों में सफलता मिलने के बाद जब कांग्रेस हाईकमान ने अपने क़द्दावर नेता और राष्ट्रीय महासचिव गहलोत को सचिन पर तरहीज देते हुए मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला लिया था तब भी महत्वाकांक्षी सचिन पायलेट को यह फ़ैसला नागवार गुजरा था । दिल्ली से शपथ लेने राजस्थान जा रहे गहलोत को एयरपोर्ट से वापस बुलाया  गया तथा कई दिनों के इस ड्रामे के बावजूद गहलोत ने बड़ा दिल रखते हुए सचिन को न केवल उप मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार किया वरन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पर भी क़ाबिज़ रखा। उसके बाद भी भारी मतभेदों के बावजूद वे उन्हें लम्बी दौड़ का योद्धा बनने की सीख भी देते रहे। कभी यह भी ज़ाहिर नही किया कि पायलेट राजस्थान मूल के नही हैं बल्कि बाहरी नेता है। लेकिन बताते है कि गहलोत की किसी भी सीख को अपने ज़ेहन में उतारे बिना पायलेट हमेशा टकराव की राजनीति ही करते रहे। बात बात पर दिल्ली पहुंच जाते । कई बार ऐसा कर उन्होंने केवल अपना ही नुक़सान किया है।

आने वाले वर्षों में गहलोत पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में भी मुख्य भूमिका निभा सकते है

सब जानते हैं कि गहलोत अपने जीवन के उत्तरार्ध में है और उनका क़द पार्टी में बहुत ऊंचा हो गया है। सबको पता है कि आने वाले वर्षों में वे प्रदेश के बजाय पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य भूमिका निभा सकते है । मुख्यमंत्री के रूप में भी राजस्थान में गहलोत खुद चाहेंगे तो सम्भवतः उनकी यह अन्तिम पारी होगी । सचिन पायलट यदि इन सभी स्थितियों को समझते हुए गांधीवादी नेता गहलोत से सीख लेते, राजनीति का सही पाठ पढ़ते और उनके साथ टकराव किए बिना विवेकपूर्ण और दूरदर्शी निर्णय लेते तो शायद आज जैसी स्थिति में नही होते, वरन उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित होकर अपने युवा होने का लाभ सुनहरे भविष्य में सहायक बना सकते थे  । वे और भी कई अवसरों का लाभ उठा कर राजनीति के शिखर पर पहुंच सकते थे लेकिन उन्होंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार अपने पूरे राजनीतिक भविष्य को ही दांव पर लगा दिया है। समय रहते गहलोत की संवेदनशीलता और समन्वय के सिद्धांत के पूरक बनें तो राजस्थान में कांग्रेस को मजबूती के साथ अपने सपने को साकार करने के लिये हरिदेव जोशी की सीख का लाभ उठा सकते हैं ।

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