गर्व से कहो-हम कुचमादी हैं…

ना कोई शक,ना कोई शुबा। ना कोई शंका, ना कोई आशंका। सब कुछ आईने की तरह साफ है। भाईसेण आईने को गंदा बताने का प्रयास करें तो भी चलने वाला नहीं। कांच एक दम साफ झक्क। तकनीकी खराबी होने का भी सवाल नहीं, ना कोई उस पर मानवीय भूल होने का टेग टांग सकता है। लिहाजा वही है जो दिख रहा है। बस, नारा लगना बाकी रह गया। हाल-हूलिया यही रहा तो नारा भी लग जाणा है-‘गर्व से कहो-हम कुचमादी हैं..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


ऊपर के पेरेग्राफ में हमने शक-शंका और आशंका की बात कह के सफाई नही दी, ना ऐसा आह्वान किया कि कोई शक जाहिर ना करे। सफाई देने का प्रश्न इसलिए नही उठता कि इसकी जरूरत कम से कम हमें अभी तक तो नहीं पड़ी। आगे की आगे देखी लगेगी। आह्वान कर भी लें तो कौन सा लोग मानने वाले हैं। इन दिनों कोरोना काल चल रहा है। कोरोना से क्या-क्या हो रहा है-कोरोना क्या-क्या करवा रहा है, किसी से कुछ छुपा नहीं है। देश में हजार-पांच सौ संक्रमित के मिल जाने के बाद हम करीब ढाई महिने घरों में बंद रहे। आज वो आंकड़ा लाखों में पहुंच गया और हम बेपरवाह बने हुए हैं। शासन-प्रशासन चीख रहे है। चिल्ला रहे हैं। कही जागरूकता रथ तो कहीं जागरूकता रैली। कहीं कोरोना रंगोली तो कहीं नाटकों के जरिए संदेश। नित नए आह्वान किए जा रहे हैं।

आह्वान दोहराए जा रहे हैं। देह दूरी रखो-मगर हम है कि चिपके जा रहे हैं। एक-दूसरे के अंदर घुसे जा रहे हैं। परीक्षा और मतदान केंद्र के अंदर तो गाइड लाइन की पालना मगर बाहर अडूड़ाहट जिंदाबाद। शासन-मास्क लगाने का संदेश दे रहा है। नो मास्क- नो एंट्री-अभियान चल रहे हैं, मगर हम हेलमेट की तरह मास्क को भी बोझ समझ रहे हैं। अरे भाई, प्रशासन को आप की परवाह है। आप की जान की परवाह है तभी तो बार-बार झकझौर रहा है, मगर हम है कि बेपरवाह बने हुए हैं। लोगों को ना तो एक अंतराल के बाद हाथ धोने की फुरसत ना सेनेटाइज के उपयोग की फिकर। हां, बातों में चिंता ऐसी झलकाते हैं कि पूछो मति। कुल जमा बात ये कि जब भाईसेण शासन-प्रशासन की नही सुन रहे तो इन की उनकी कौन सुनेगा। रही बात हथाईबाजों की, तो वो सचेत भी हैं और जागरूक भी। प्रशासन चाहे तो नगर निगम अथवा पुलिस की टीम भेज कर ताईद करवा सकता है। कोई उसपे भी कांच का मैला होने की बात कह दे, तो बात कुछ और है।


ऐसे भतेरे लोग हैं जिन की नजर में हमेशा खोट ही रहती है। नजर खोटी-नजरिया खोटा। आचार-विचार सब खोटे। सत्यवादी राजा हरिशचंद्र के आखिरी वंशज तो वही है। बाकी के सारे झूठानंदजी के चेले-चपाटे। यह सच्चाई नही फरेब है। सच्चाई यह कि नकारात्मकता भी एक प्रकार की बीमारी है। एक प्रकार का रोग है। एक प्रकार की कुचमादी है। बीमारी-बड़ी बात और कुदमादी आम। ऐसे कई लोग हैं जिन को नकारात्मकता को खाने-पीने की लत लगी हुई है। वो नकारात्मकता पहनते है। ओढते है। लपेटते हैं। वो नकारात्मकता मे सने रहते है हैं जबकि कुचमादी मौसमी। जब जी उचका, कर दी। जैसे वहां की गई। उनकी तो कुचमादी हुई और उनका हाथ सीने पे आ गया।


कुचमादी-शरारत का दूसरा रूप। इसे शरारत का पर्याय मानें तो भी गलत नही। देश-दुनिया में ऐसा कोई मानखा नहीं जिसने कभी कोई शरारत ना की हो। हमारा बचपन तो कुचमादियों से लद-कद रहा। अब तो बचपने की उमर घट गई वरना हम ने आठवीं ‘सी तक शरारतें की। कॉलेजी शिक्षा के दौरान भी शरारते ‘पिंड में आ जाया करती थीं। मौका मिलने पर आज भी नहीं चूकते पर वो बाते नही रही जो उस बखत हुआ करती थी। चंपालाल काकोसा को चंपू कह के चिढाना। कल्लो आंटी के घर के बाहर लगी घंटी बजा के भाग जाना। गली-गुवाड़ी में पड़ी साइकिलों के चक्कों के वाल्व ढीले कर देना। यहां कचरा ना डालें मे से ‘ना कुचर देना। यह सब शरारतें उर्फ कुबद उर्फ कुचमादियों की श्रेणी में आते हैं यह बात दीगर है कि अब उनका रूप सिणगार बदल गया है, पर कुचमादिएं तो कुचमादिएं ही हैं। कुंआरे को बाप बना देना भी उसी खांचे में।


भारतीय वायुसेना ने एयरफोर्स ग्रुप एक्स भर्ती के लिए पिछले दिनों आवेदन मांगे थे। छंटनी के बाद सूची तैयार की गई तो उसमे जोरदार शरारतें नजर आई। ठीक वैसे जैसे किसी ने गाय का आधार कार्ड बनवा लिया। ठीक वैसे, जैसे किसी ने अभिताभ बच्चन के नाम से ऋण आवेदन भर दिया। यहां आवेदक का नाम-गुड मॉर्निंग और पिता का नाम राहुल गांधी। जब कि आखी दुनिया जानती है कि पचास साल के राहुल अभी अविवाहित हैं। आवेदक का नाम-पापा की परी और पिता का नाम नरेन्द्र मोदी। यह तो मिसाल भर है, वरना शरारतअलियों ने धोनी और कुछ अन्य हस्तियों को भी नहीं छोड़ा।
ये तकनीकी खामियां नही शुद्ध शरारत है। कुबद है। सौ फीसदी कुचमादियां है। तभी तो नारा लगाया-‘गर्व से कहो-हम कुचमादी हैं।Ó