शुद्ध फरजी

इसे कहते हैं शुद्ध फरजी। इसे कहते हैं हंडरेड परसेंट फरजी। हमारी इच्छा है कि इसके लिए इनाम की घोषणा कर देनी चाहिए। जो इस फरजीपणे में शुद्धता साबित कर दें, उसे इनाम। तब तक-‘फरजी से फरजी मिले.. कर-कर लंबे हाथ.. का वाचन। एक फरजी समझ में आता है। दो फरजी पचा लिए। यहां तो पूरी की पूरी जेठ काची है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
शुद्ध फरजी पर हैरत-अचंभा करने की जरूरत नही है, मगर हो रहा है। खास कर पुरानी पीढी के लोगों को। उस समय के वरिष्ठजनों को जिनने ना कभी-फरजीपना किया, ना कभी देखा। उनके जमाने में हर बात खरा-खरी हुआ करती थी। हर काम सॉलिड हुआ करता था। खाद्य सामग्री शुद्ध और महापौष्टिक मिला करती थी। आज भी पुराने प्रतिष्ठानों में, खासकर तेल की घाणियों पर बोर्ड टंगे दिख जाते हैं। अव्वल तो बदलते जमाने में तेल निकालने वाली घाणिएं रही ही नहीं, होगी भी तो उनकी संख्या अंगुलियों पे गिने जितनी। आप अपने खुद के शहर को ले लीजिए। आप जोधपुर के हों-जैपर के हों-कोटा के हों-अजमेर के हों या झालावाड, सीकर या बाड़मेर अथवा जैसलमेर के। पूरे शहर में घूम कर गिन के बता दो कि आप के यहां कितनी घाणिएं हैं। एक शहर में दरजन-दो दरजन मिल जाए वही बहुत। आज की पीढी तो घाणियों के बारे में जानती भी नही होगी-चाहो तो पूछ के देख ल्यो, सच्चाई का सामना खुद-ब-खुद हो जाएगा।
एक जमाने में इन का जोरदार बोलबाला हुआ करता था। हर गांव और शहरों के हर दूसरे-तीसरे-चौथे मौहल्ले में घाणिएं मिल जाया करती थी। घाणी में जुता बैल सुबह से शाम तक तेल निकालता रहता। तेली घाणी में तिल उड़ेलता और बैल परिक्रमा कर तिलों में से तेल निकालता। वह तेल एक दम शुद्ध-और पौष्टिक। कई लोग घाणी- में खड़े होकर तेल निकलता देखते और जरूरत के अनुसार खरीद के ले जाते। समय ने पसवाड़ा फेरा तो घाणी से बैल जुदा हो गया। घाणी का आधुनिकीकरण हो गया। घाणिएं बिजली से जुड़ गई। धीरे-धीरे उनकी संख्या भी सिमट गई। जो हैं-जहां हैं-उन पर टंगे बोर्ड पर आज भी यह लिखाई नजर आती है-‘हमारे तेल में जो मिलावट सिद्ध कर दे, उसे 11 सौ रूपए का ईनाम दिया जाएगा।
हथाईबाजों का ईनाम इस परंपरा के विपरित। तेली चचा मिलावट साबित करने वाले को पुरस्कृत कर रहे हैं और हथाईबाज फरजीपने में शुद्धता साबित करने वालों को। दोनों एक-दूसरे से विपरित। एक तीर-दूसरा मीर। एक पूरब-दूसरा दक्षिण। इस के अपने कारण। इनकी अपनी वजह। आज फरजी और फरजीवानों का दौर ठाठे मार रहा है। जहां देखो वहां फरजी। एक ढूंढो-ढाई हजार मिल जाएंगे। अब तो उन्हें ढंूढने की भी जरूरत नहीं। जहां नजर डालों वहां इन्ही का राज। फुरसत मिले तो अपने भीतर झांकने की कोशिश करना, हो सकता है कोई फरजीसिंघ-फरजीखान वहीं बिराजा मिल जाए।
हमें किसी को फरजी बताने का शौक नहीं, ना हम किसी को नकली-डुप्लीकेट या फरजी बताने के पक्षधर। खुद प्रशासन-शासन शुद्ध के लिए युद्ध करते रहे हैं। ये कैसी विडंबना है कि हमें शुद्ध के लिए युद्ध लडऩा पड़ रहा है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि ‘नकली चेहरा सामने आए-असली सूरत छुपी रहे। ‘अगर एक-एक फरजीखान को गिनाने बैठ गए तो झांझरका हो जाएगा। सारे फरजीसिंघों की विगत बांच-ली तो सारा शैड्यूल बिगड़ जाएगा मगर मोटामोटी फरजियों की हाजरी लेनी जरूरी।
अपने यहां फरजी डॉक्टर पाए जाते हैं। फरजी पुलिस यहां। फरजी परीक्षार्थी यहां। अपने यहां नकली खाद्य-पदार्थों की भरमार। नकलीपेय। नकली मसाले। मिलावटी घी-तेल। नकली नोट। चाय की पत्ती में मिलावट। मिर्च-हल्दी-धनिया मिलावटी। काली मिर्च में मिलावट। हमारे मौहल्ले का दूधिया क्षेत्र में पचास किलो दूध देता है। इस गली से उस गली तक बंधी है। गाएं कुल 30-35 किलो दूध देती है। आवक 35 और जावक 50 आंकड़ा पेचीदा। पूछा तो नल और नीर देवता का जैकारा सुनाई दिया।
पर हथाईबाज जिस फरजी का बखान कर रहे हैं वो वाकई में शुद्ध फरजी है। इतना फरजी कि पुलिस भी डाफाचूक हो गई। ऐसा होता नही है। पुलिस अगर ठान ने तो मुरदों से राज उगलवा सकती है। जहां खाकी वरदी सम्प्रदाय और फरजीसिंघों का गठजोड़ हो, वहां कुछ नही कहा जा सकता। वहां फरजी भी चौबीस कैरेट शुद्ध साबित हो जाते है।
जोधपुर जिले के डांगियावास थाना परिसर में एक ट्रक पिछले डेढ माह से खड़ा है। उसमें गेहूं की तीन सौ बोरिएं लदी है। बोरियों के बीच 628 किलो डोडा पोस्त छुपा कर रखा गया था। पुलिस ने डोडा जब्त कर ट्रक सीज कर लिया। ट्रक पर हक जताने अब तक कोई नही आया। ट्रक में लदे गेहूं की बिल्टी फरजी। गेंहू भेजने वाला फरजी। कहा भेजना है उसका पतियारा नहीं। छीपा बड़ोद की जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी की बिल्टी काटी गई वो कंपनी भी फरजी। याने सब कुछ फरजी। उसके बावजूद ट्रक ठाठ से चल रहा था। ऐसे में हथाईबाजों ने ‘शुद्ध फरजीÓ का हैडिंग टांग दिया तो कौन सा गलत है।