सत्य नडेला खरीद सकते है टिक टॉक, जल्द हो सकती है डील

भारत टिक टॉक का सबसे बड़ा संभावित बाजार है, लेकिन हाल ही में चीन के साथ सीमा संघर्ष के बाद यहां इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था

नई दिल्ली। शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म टिक टॉक के बिकने की चर्चा है। माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला इसकी डील के करीब हैं। ऐसी चर्चा है कि टिक टॉक की कीमत 50 अरब डॉलर है, लेकिन सत्या नडेला इससे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि यह डील 50 अरब डॉलर से कम पर ही होने जैसी है। लिहाजा डील में अभी भी मोलभाव बाकी जरूर है, पर डील होना भी तय है। अगर यह हो जाती है तो पिछले दस सालों की यह सबसे बड़ी डील होगी। इस डील के जरिए माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला किंग मेकर बनेंगे।

सीईओ बनने के बाद से ही डील पर डील कर रहे हैं नडेला

2014 में सीईओ बनने के एक साल के भीतर ही उन्होंने स्वीडिश खेल कंपनी माइनक्राफ्ट खरीदी। बाद में उन्होंने प्रोफेशनल-नेटवर्क साइट लिंक्डइन कॉर्प की 24 बिलियन डॉलर की डील पक्की की। दरअसल अमेरिका में टिक टॉक को लेकर काफी दिक्कतें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पैदा कर दी हैं। ऐसे में टिक टॉक के सामने यही विकल्प है कि वह इस डील को लेकर आगे बड़े। टिक टॉक को सबसे ज्यादा आबादी वाले दूसरे नंबर के देश भारत ने बैन कर दिया है। विश्व में कुल 5-7 देशों ने इस तरह का कदम उठाया है। ये वे देश हैं जहां टिक टॉक का सबसे ज्यादा यूजर बेस है। इसलिए टिक टॉक के सामने दिक्कतें आ गई हैं।

डील होनी तय है

टिक टॉक की कीमतों को लेकर या डील को लेकर आगे क्या होगा यह तो समय बताएगा। इसकी पैरेंट कंपनी बाइटडांस के कुछ निवेशक हालांकि डील की उसी साइज को सही मान रहे हैं। वे मानते हैं कि 50 अरब डॉलर का वैल्यूएशन सही है। वैसे माइक्रोसॉफ्ट ने नडेला की लीडरशिप में कई डील की हैं और सब सफल रही हैं। इसलिए टिक टॉक की डील को लेकर कोई संदेह भी नहीं है। हो सकता है कि इसमें समय लगे, लेकिन बाजी नडेला के ही हाथ लगनेवाली है। पीसी ऑपरेटिंग सिस्टम से क्लाउड कंप्यूटिंग तक ले जाने वाले माइक्रोसॉफ्ट आर्किटेक्ट नडेला पहले से ही कुछ बड़े सौदों की देखरेख कर रहे हैं।

ट्रम्प प्रशासन ने बढ़ाई टिक टॉक की दिक्कतें

दरअसल जब से ट्रम्प ने सुझाव दिया कि वह टिक टॉक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा सकते हैं, तब से ही माइक्रोसॉफ्ट ने इस मामले में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है। हालांकि टिक टॉक को बाइटडांस से खरीद लेने या इसके अमेरिकी ऑपरेशन को कंट्रोल में लेने का विचार पेपर पर शुरुआत में काफी अच्छा दिख रहा था। लेकिन डेटा गोपनीयता और चीन के ओनरशिप स्ट्रक्चर ने अमेरिका की चिंताओं को दूर नहीं किया। यदि टिक टॉक का ऑपरेशन एक विश्वसनीय, सार्वजनिक रूप से लिस्टेड अमेरिकी कंपनी के हाथों में आ जाता है तो यह डेटा पारदर्शिता के मुद्दे को हल कर सकता है।

डेटा सुरक्षा को लेकर माइक्रोसॉफ्ट पर भी होगा दबाव

माइक्रोसॉफ्ट भी ऐसी सोचती होगी कि वह किस तरह से यूजर्स के डाटा को सुरक्षित रखेगी। कंपनी ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करेगी कि टिक टॉक के अमेरिकी यूजर्स के सभी निजी डेटा को सुरक्षित ट्रांसफर किया जाए और सेफ रखा जाए। वर्तमान में संग्रहित इस तरह के किसी भी डेटा को विदेशों में रखे सर्वर से हटा दिया जाएगा। डील से पहले माइक्रोसॉफ्ट को अमेरिकी प्रशासन को समझाने की जरूरत होगी। अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट और विदेशी निवेश पर समिति को दिए अपने बयान में बाइटडांस का उल्लेख करने से पहले कंपनी ने संकेत दिया कि वह कौन से पहलू पर ज्यादा जोर दे रही है।

चीनी कंपनियों को लेकर निगेटिव माहौल है अमेरिका में

कुछ अमेरिकी कानून निर्माता पहले से ही बोर्ड में हैं। सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने ट्विटर पर लिखा कि जीत-जीत। उनके साथी रिपब्लिकन जॉन कॉर्निन और अन्य लोग भी सपोर्ट करते नजर आए। डेमोक्रेट सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल उन लोगों में से हैं, जिन्होंने पाया कि इस तरह के लेन-देन को चीनी कंपनियों द्वारा कपटी जासूसी और निगरानी पर नकेल कसने की जरूरत से हमें विचलित नहीं होना चाहिए।