चांदी की हांती

कहावत के महावत ने भले ही घड़ दिया कि-‘पल्लू में नहीं दाने.. अम्मा चली भुनाने..। भले ही लोग चने कूटते हों। भले ही लोगों का चने कूटने मे भी कई तकलीफों का सामना करना पड़ता हो, पर चांदी कूटने वालों की भी कमी नहीं। किसी के नसीब में चणे तो किसी के नसीब में घर बैठे चांदी। गनीमत रही कि चांदी ही कूटी, उनका बस चलता तो सोने से नीचे उतरने का नाम नही लेते। क्या पता वैसा हो भी गया होगा। हुआ है तो आज नही तो कल। कल नही तो परसों-नरसों। कभी ना कभी बाहर आ ही जाएगा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

चने और चांदी के बीच जमीन-आसमां जितना फरक है। जमीन और आसमां के बीच दूरी कितनी है इसका तो पता नहीं, हां करोड़ों-करोड़-खरबों-खरब मील का फासला जरूर है। ऐसा तो है नहीं कि थैली उठाई, बस में बैठे और आसमां पे चले गए। कोई टोरे मार कर दूरी बयान कर दे तो कह नहीं सकते वरना हम-आप को फासले का पूरा पता नहीं। कोई कह दे कि तीन अरब सात खरब, सत्तर करोड़, पैंतील लाख, साठ हजार-नौ सौ बीस किलोमीटर।

किसी को विश्वास ना हो तो नाप के देख ले। यह तो वही बात हुई कि आसमां पे इतने तारे। सिर पे इत्ते बाल। किसी को विश्वास ना हो तो गिन लें। किस को इतनी फुरसत जो गिणागीणी करे। देश-दुनिया के सारे बेरोजगारों को इस काम मे लगा दिया जाए तो भी गिणाई संभव नहीं। अंतरिक्ष सेंटर से जुड़े वैज्ञानिक जमीन-आसमां के बीच की दूरी बता दें तो कह नही सकते वरना अंदाजा लगाते रहो। फरक हर वस्तु में होता है। चने और चांदी की बात तो दूर भाई-भाई के स्वभाव में अंतर होता है। हाथ की अंगुलियां भी बराबर नही होती।


कई लोग सोच रहे होंगे कि जरदा-चूना में मशगूल रहने वाले आज चने-चांदी पे कैसे आ गए। तो भाईया ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। हथाईपंथी कहीं भी जा सकते हैं। उनकी चर्चा। उनके विचार। उनकी सोच। उनकी दूरंदेशी। उनकी दूर दृष्टि और उनके विचार-मंथन पर कोई पहरे नही बिठा सकता। हथाईबाज भारतीय संसद से लेकर मालबार हिल और चांदनी चौक से लेकर व्हाइट हाउस में घुस सकते हैं। फिजिकली रूप से ना सही मानसिक रूप से तो ऐसा हो ही सकता है। वो ऐसा ही करते रहे हैं। उनकी चर्चा हमेशा सार्थक और सटीक साबित होती रही है। चने और चांदी पे चर्चा भी उसी का एक पार्ट। उसी का एक हिस्सा। हिस्सा के माने हिस्सापांती नहीं। इस पर पत्रवाचन इस लिए जरूरी कि हिस्से के अपने हिस्से हैं। हिस्सा लेना के तार अपने हिस्से का सामान लेने से जुड़े हुए। आज कल खानदानी संपत्ति का बंटवारा होना आम हो गया है।


हमारे टेम में संयुक्त परिवार हुआ करते थे। काके-बड्डों का परिवार एक। घर में आठ-दस भाई। उनकी बिंदणिएं। उनके बच्चे। एक गुवाड़ी में पैतीस-चालीस सदस्य। पता ही नहीं चलता कि कौन भोमजी का डीकरा है और कौन ओमजी की डीकरी। अब वो बातें नही रही। साझे चूल्हें बुझ से गए। संयुक्त परिवार दरक गए। जहां है वो लोग खुशनसीब हैं। परिवार पड़े कहां है। घर मकान बन गए। लोगबाग मैं अर म्हारौ गीगलो में सिमट गए। घर में ईन्ड-मीन्ड तीन जणे। हम जीमणे जाते थे तो पूरे टोले को पता चल जाता था, आज किसी को भनक ही नहीं चलती कि शरमाजी जीमजुमा के आ गए और सो भी गए। भाई-भाई में बंटवारा हो गया। घरों में दीवारें खड़ी हो गई। ये हिस्सा इसका। वो उसका का। ये विस का। वो तिस का। घर-घर की यही कहानी।


एक हिस्से के तार भाग लेना से जुड़े हुए। प्रतियोगिता में हिस्सा लेना। सामाजिक-सियासी गतिविधियों में हिस्सा लेने। स्कूली-संस्थागत कार्यक्रमों में हिस्सा लेना। शारीरिक-बौद्धिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना। किसी के हिस्से में चूना। किसी के हिस्से में चणा और किसी के हिस्से में चांदी। इन्हें ईनाम ही समझ ल्यो। वहां चने नही थे और यहां चांदी बंट रही थी। यहां रोटियों की बाट जोही जा रही थी और वहां चांदी की हांती घर पहुंचाई जा रही थी। वाह री व्यवस्था..।


पिछले दिनों किसानों को कर्ज बांटने वाली राजस्थान राज्य सहकारी बैंक (अपेक्स) की वर्चुअल आमसभा हुई थी। इसमें बैंक के सदस्य वीसी के जरिए अपने-अपने जिलों शामिल हुए थे। सदस्यों में सात जिलों के कलक्टर और उनसे भी बड़े कुछ अफसर शामिल थे। आम सभा की औपचारिकता के बाद सभी को उपहार स्वरूप चांदी के सिक्के पहुंचाए गए। एक सिक्के का वजन ढाई सौ ग्राम याने कि पाव पर। किसी के दफ्तर में तो किसी के घर पर ‘कासा पहुंचाया गया। आम सभा में शामिल हुए इक्कीस लोग और सिक्के चालीस लोगों के यहां पहुंचाए गए। इसके माने चालीस किलो चांदी की ‘हांती बंटी। कोरोना काल में जहां आम आदमी पाई-टके की जुगत में खपा हुआ है। चने को तरस रहा है और वहां चांदी कूटीज रही है, वो भी घर बैठे। पैसा किसानों का और चांदी का कासा कलक्टरों को। वाह री व्यवस्था..। वाह रे चमचों..। वाह री चमचागिरी।