भारतीय भाषाओं में राजस्थानी कविता का विशिष्ट स्थान – नंद भारद्वाज

बीकानेर/ प्रख्यात कवि-आलोचक नंद भारद्वाज ने कहा कि आज की राजस्थानी कविता किसी भी भारतीय भाषा से कमतर नहीं है, उसका भारतीय भाषाओं में विशिष्ट स्थान है।

अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज द्वारा आयोजित संवाद ‘भारतीय भाषाएं और राजस्थानी कविता’ पर कवि आलोचल डॉ. नीरज दइया ने लंबी चर्चा की जिसमें नंद भाद्वाज ने राजस्थानी कविता की परंपरा, विरासत, बदलाव और अब तक की यात्रा के विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए अपने लेखकीय जीवन के अनुभव भी साझा किए।

भारद्वाज ने कहा कि सरकारी कारणों से राजस्थानी को अब तक मान्यता नहीं दी गई है जिससे इसके विकास की गति में काफी अवरोध रहे हैं फिर भी यहां की जनता और जागरूक समाज लेखक इसके संवर्द्धन के लिए सतत प्रयासशील है। हिंदी का आदिकाल पूरा का पूरा राजस्थानी साहित्य पर टिका हुआ है। डॉ. नीरज दइया ने कहा कि राजस्थानी को हिंदी और अंग्रेजी के माध्यम से भारतीय और विश्व पटल रखने का काम बहुत कम हुआ है।

राजस्थानी को व्यापक फलक पर देखने समझने के लिए हमारा दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए। इस संवाद को अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज के फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज द्वारा आयोजित सजीव प्रसारण में साहित्कार देवकिशन राजपुरोहित, बुलाकी शर्मा, मधु आचार्य ‘आशावादी’, राजेंद्र जोशी, शिवदान सिंह जोलावास, ओम नागर, कुमार अजय, राजेंद्र शर्मा ‘मुसाफिर’, जितेंद्र निर्मोही, राज बिजारणिया, हिंगराज रतनू, नरेश मेहन, प्रशांत जैन, राजाराम स्वर्णकार, दिनेश पांचाल, संजू श्रीमाली, रमेश भोजक ‘समीर’, मुकेश दैया, राम रतन लाटियाल, डॉ. अनिता जैन, मुकेश पोपली, डॉ. नंदलाल वर्मा समेत करीब सौ लेखकों-दर्शकों ने विचार साझा किए और चार सौ से अधिक बार इसे देखा गया है।

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