
हम खूब-हमारे दो की घोषणा होते ही नक्शा सामने आ गया था। पूतों के पांव उसी बखत पालने में दिख गए थे, पर पालना इतना डोल जाएगा, इसका एहसास कुछ लोगों को ही था। हम-आप उनमें से। हम तो तभी जान गए थे कि हर घर से पार्षद निकलेगा। हर घर से भले ही ना निकला हों, गली-गली से तो जरूर निकल गया। कुनबा भी इतना बड़ा कि कौरव होते तो लाक्षागृह में छुप जाते।
शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। हम खूब-हमारे दो का किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी विभाग से कोई अल्ला-पल्ला नही है। एक जमाने में जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिहाज से परिवार कल्याण वालों ने ‘हम दो-हमारे दो का नारा दिया था। हम जनसंख्या बढाने के पक्ष में नहीं। ना हम यह चाहते हैं कि एक घर में दस-बारह बच्चों की फौज हो। इस पर एक लतीफा याद आ गया।
एक बार एक भाई साहब मांगीलाल जी का पता पूछते-पूछते एक गुवाड़ी में पहुंच गए। वहां आठ-दस बच्चे ‘काणी गुप्पी खेल रहे थे। भाई साहब ने एक बच्चे से पूछा तो जवाब मिला-‘मकान तो सामने वाला है मगर पापा घर में नही है। इस पर आगंतुक समझ गया कि वो मांगी सर का पुत्तर है। वह बच्चे के पास गए और सवाल दाग दिए-‘कहां गए.. कुछ कह के गए क्या.. वापस कब तक आएंगे.. अकेले गए या किसी के साथ गए..। इस पर दूसरे बच्चे ने जवाब दिया कि ‘कुछ कह के नही गए.. कहा भी होगा तो मम्मी को कहा होगा..।
आगंतुक ने उस बच्चे की ओर घांटकी घुमाई और पूछा-‘तुम कौन हो बेटे। बच्चे ने कहा-‘मैं भी मांगीलाल जी का पुत्तर हूं। तभी तीसरा बच्चा भी चहक उठा-‘मैं भी। चौथे-पांचवें-छठे ने भी हाथ खड़ा कर दिया। वहां खेल रही चार लड़कियां भी पीछे कब रहने वाली। वो भी बोल उठीं-‘हम उनकी पुत्तरियां हैं। पलटन देखकर आंगतुक हैरत में पड़ गया। झेंप मिटाने के लिए पूछ लिया-‘तुम्हारे पापा करते क्या हैं।
‘यही तो करते हैं। एक बच्चे ने जवाब दिया। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने परिवार कल्याण कार्यक्रम शुरू करके ‘हम दो-हमारे दो का जुमला उछाला। लोगों को छोटे परिवार का महत्व समझाया। दो बच्चे होंगे तो उनकी परवरिश अच्छी तरह होगी। खाने को अच्छा मिलेगा। बच्चे स्वस्थ रहेंगे। उन्हें बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। परिवार छोटा होगा तो सुखी होगा।
शासन-प्रशासन ने भतेरे टोटके बताए। उसके बाद परिवार और कुतर दिया। हम दो हमारा एक या हमारी एक पे आ गए। देखो रे भाई, हम को किसी के व्यक्तिगत जीवन में ताकाझांकी करने की आदत नहीं है, ना हमने हमारे निजी जीवन में किसी की दखलंदाजी बर्दाश्त की। आप एक बच्चा पैदा करो या दो। आप जाणो और आपके काम मगर दोनों जुमलों पर अपन को जोरदार विरोध। किसी ने उन पर गौर किया या नही किया मगर हमने विरोध दर्ज जरूर करवाया। हमारा एतराज एक-दो पर नहीं था वरन परिवार के अन्य सदस्यों की ओर ध्यान दिलवाना था, जिन की वजह से तुम एक से दो हुए। उन लोगों की याद दिलाना था जिनने तुम्हें चार मिनखों के बीच खड़ा होने लायक बनाया।
हम दो-हमारे दो तो आई-बाबा कहां जाएंगे। हम दो हमारा एक या हमारी एक तो अन्य भाई-बहन कहां जाएंगे। मां-बाप ने तुम्हें इस वास्ते पैदा किया कि मैं और म्हारो गीगलो तक सीमित हो के रह जाओ। पर हथाईबाज जिन दो की बात कर रहे हैं वहां हिसाब से तो 160 होने चाहिएं मगर इनसे भी कई गुणा ज्यादा हो रहे हैं। अस्सी इधर-अस्सी उधर बाकी के आमजी-भामजी। इस की आशंका पहले ही हो गई थी, अब वो साक्षात नजर आ रही है। हम ने सोचा था कि एक वार्ड से एक होगा। अधिकृत रूप से तो एक ही है मगर नशा पूरे परिवार को। हर गली से पार्षद निकला जैसी स्थिति।
आपणे जोधपुर में नगर निगम के दो फाड़ हुए तभी हथाईबाजों ने कह दिया था कि यह अच्छा नही है। शहर इतना लंबा-चौड़ा नहीं हुआ जो दो निगम बना दो। पसराव के हिसाब से वार्ड बढा देते। साठ के सत्तर-अस्सी वार्ड कर देते पर सरकार को पता नही क्या सूझी कि दो निगम बना के 80-80 वार्ड गठित कर दिए। वार्ड भी बिलास्त भर के। नतीजा यह निकला कि हर गली-गुवाड़ी में पार्षद बन गए।
चुनाव तो भतेरों ने लड़ा पर चुणीजणा एक को ही था, सो एक वार्ड से एक ही चुणीजा। अब हालात ये कि इस गली में इस वार्ड का पार्षद-उस गली में उस वार्ड की महिला पार्षद। ऐसे-ऐसे पार्षद चुणीज के आए जो नगर निगम की कार्यशैली का ककहरा भी नही जानते। कई लोगों ने तो निगम की इमारत पहली बार देखी। उनको खुद को पता नही कि उन्हें क्या करना है। वो तो वो, उनके पति से लगाकर देवर-जेठ-भाई-भांजे और भतीजे भी खुद को पार्षद से कम नही समझ रहे। पहले पार्षद पति होते थे, अब तो पार्षद देवर भी अधिकारियों को फोन खड़ाखड़ा रिए हैं। इसमें दोष किस का। हमी ने तो चुना। चाहे कौम-कुनबे के फेर में चुना या जाति-मजहब के फेर में। वो जैसे भी हैं-पचाना तो पड़ेगा। मालिक शहर का भला करे।