सुधीर सक्सेना मानवीय चेतना के कवि : तिवाड़ी

बीकानेर/ हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि सुधीर सक्सेना मानवीय चेतना के कवि हैं। उनके मन में जीव मात्र के प्रति प्रेम और करुणा है और वे किसी को दुःखी नहीं देख सकते। विषम स्थितियाँ उन्हें ईश्वर से प्रश्न करने को विवश करती रही है। इसी प्रश्नाकुलता में कवि की गहरी मानवीय आस्तिकता को हम देख सकते हैं।

साहित्य अकादमी से पुरस्कृत लब्धप्रतिष्ठ कवि-कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने सुधीर सक्सेना के कविता संग्रह ‘ईश्वर : हाँ, नहीं.. तो’ पर वरिष्ठ साहित्यकार बुलाकी शर्मा के सम्पादन में प्रकाशित विमर्श-पुस्तक तथा सुपरिचित कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया की राजस्थानी अनुवाद पुस्तक का लोकार्पण करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में ये उद्गार व्यक्त किए।

होटल जोशी में मुक्ति संस्था की ओर से आयोजित इस समारोह में मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि ईश्वर से प्रश्न करती ये कविताएं हिंदी के साथ अन्य भाषा के सुधि पाठकों को ही नहीं, साहित्य के आलोचकों को भी विमर्श के लिए विवश कर रही हैं। इस विमर्श पर बुलाकी शर्मा के सम्पादन में पुस्तक का आना और नीरज दइया द्वारा इसका राजस्थानी में अनुवाद किया जाना इसकी सार्थकता का प्रमाण है।

साहित्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि सुधीर सक्सेना ना अनीश्वरवादी हैं और ना ही नास्तिक। वे न बुकनिन की इस बात से सहमत हैं कि यदि सच में ईश्वर मौजूद है तो उसका अस्तित्व मिटा देना चाहिए, न ही वे नीत्से की तरह ईश्वर की मृत्यु की घोषणा करते हैं। वे आस्तिक हैं और ईश्वर को मानते हैं तभी तो उसे सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं।

कवि सुधीर सक्सेना ने कहा कि ईश्वर के अस्तित्व को सकारने के पक्ष में जितने तर्क हो सकते हैं, उससे कहीं अधिक उसे नकारने के पक्ष में भी हो सकते हैं। लेकिन हम तर्क के विपरीत भावनाओं में जीते हैं।

सत्य को ईश्वर मानकर ही हम सत्यशोधक और सत्याग्रही हो सकते हैं। ऐसे सत्याग्राही जिसके लिए असत्य, घृणा, वैमनस्य, हिंसा, वैर-विरोध कोई अर्थ नहीं रखते। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि मेरी इन कविताओं को समालोचकों ने गम्भीरता से लेते हुए इन पर विमर्श करना आवश्यक माना।

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