वो घड़ी आ गई.. आ गई..

यह घडी रील वाली नही, जिसमें कहा गया था-‘जिस का मुझे था इंतजार.. जिसके लिए दिल था बेकरार.. वो घड़ी आ गई.. आ गई..। बल्कि यह घड़ी रियल वाली। कहा इसमें वही गया जो रील में कहा गया था मगर रील लाईफ में और रियल लाईफ में खासा फरक है। दोनों के बीच पिछले लंबे समय से शीत युद्ध चल रहा है, जो कभी-कभार गरम भी हो जाता है-तो कभी स्टार वार में बदल जाता है। कुल जमा घड़ी-घंटे-दिन-महिने सब आ जाणे हैं। इंतजार की घडिय़ां समाप्त हुई। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

फिलिम वालों और समाज वालों के बीच टंटा पिछले लंबे समय से चल रहा है। सिविल सोसायटी का आरोप है कि फिलिम वाले हमारे बच्चों को बिगाड़ रहे हैं। डिजिटल युग में फिलिमवालों का प्रभाव कम हुआ तो यह आरोप सीरियल बनने वालों पर लगना शुरू हो गया। कुछ चैनल्स पे इतने घटिया और वाहियात कार्यक्रम आते है जिन्हें परिवार के साथ बैठकर देखा नही जा सकता।

इतने घटिया और छोटे कपड़े। इतने घटिया बोल। इतने घटिया संवाद। पता नहीं ऐसे कार्यक्रमों को प्रसारण की मंजूरी मिल कैसे जाते है। हमारा बस चले तो इन अधनंगों को उस घर में जाकर कूटे जिसे वो ‘बिग बॉस का बताते है। उधर फिलिम वालों का अपना तर्क। कहते हैं जो समाज में होता है, वही फिल्मों में परोसा जाता है। मसाला भुरका कर। अब उनसे पूछो ‘सरकाय लियो खटिया, जाड़ा लगे.. किस राज्य अथवा समाज का लोकगीत है। या कि ‘तुझ को मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं किस स्कूल की प्रार्थना है। कुल जमा दोनों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा है और चल रहा है। कल क्या होगा, किसी को कुछ पता नहीं। लगता तो यही हैं कि आगे भी यह झगड़ा चलता रहेगा।

हथाईबाज जिस घड़ी के समाप्त होने का जिक्र कर रहे हैं वो रील लाईफ से जुड़ी हो या नहीं, कम से कम इंतजार तो मिलता-जुलता। किसी का इंतजार लंबा चलता है-किसी का थोड़े समय के लिए। कुछ भाग्यशाली ऐसे, जिन्हें इंतजार करने की तनिक भी जरूरत नहीं वरन लोग आगे आकर उनकी बाट जोहते हैं। मिसाल के तौर पे बाबा को ही ले लिजिए। वो तो असमंजस में। कभी हां.. कभी ना.. कभी कहते है तैयार हूं.. कभी कहते हैं मुझे नही बनना, मगर चंगु-मंगु हैं कि मानते नही।

वो भाग रहे है-ये पकड़ रहे है। वो कहते हैं मुझे नहीं बना अध्यक्ष। ये कह रहे है-कैसे नहीं बनोगे। तुम्हारे अलावा और ऐसा कोई योग्य नहीं जो पार्टी को चला सके। देखना यह है कि बनने या ना बनने की घड़ी कब आती है। इंतजार खल्लास होता है या लंबा खिंचता है। इसकी पलट में कई लोगों को इंतजार करना पड़ता है। किसी को इसका तो किसी को उस का इंतजार। हर मानखे को इंतजार। किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है..। शाइर-कवियों का कहना है कि जो मजा इंतजार में है, वो इकरार में कहां। कहीं से-‘इंतहा हो गई.. इंतजार की.. आई ना कुछ खबर.. मेरे यार की.. के सुर सुनाई देते हैं।

रील की दुनिया से बाहर मगर दुनिया से जुड़ी कायनात में भी इंतजार की घडिय़ों की टिक.. टिक..सुनाई देती है। अब तो खैर फिल्मी पोस्टर्स का चलन-प्रचलन थम सा गया, वरना एक जमाने नई फिलिम रीलिज होने से पहले उनके पोस्टर्स से शहर अटा नजर आता था। बीच में फिल्मी सीन और ऊपर नीचे विगत। लिखा होता मिनर्वा में तारीख.. से आ रहा है-मिस्टर नटवरलाल। पहले तारीख से और उसके बाद इंतजार की घडिय़ां समाप्त हुई, फिर तारीख के आगे छोड़ी खाली जगह भर दी जाती अर्थात तारीख 26 से या तारीख 20 से। पर यहां रियल दुनिया की बात। पहले इंतजार था। लोग बाट जोह रहे थे। सरकार भी। पेंट-बेल्ट बांधने की तैयारी में। चारों ओर फां फूं..।

जैसा माहौल। अपने यहां.. वैसा दूसरे देशों में। आखिर हमारे ज्ञानियो..विज्ञानियो.. ने वो कर के दिखा दिया जिसकी देश के साथ पूरी दुनिया को उम्मीद थी। इंतजार की घडिय़ा समाप्त हो रही है। पहले कब से के सुर फूट रहे थे-अब तारीख भी घोषित हो गई। हथाईबाजों का इशारा वैक्सीनेशन की शुरूआत की ओर। देश भर में 16 जनवरी से टीकाकरण शुरू होना है।

कोरोना ने वर्ष 2020 का कचूमर निकाल दिया। घरबंदी-कफ्र्यू-रात्रि कफ्र्यू-अफरा तफरी और बैचेनी के आलम में पूरा साल गुजरा। काम-धंधे ठप। शिक्षा व्यवस्था चौपट। कोरोना के कहर ने दीवारें खड़ी कर दी। पड़ोसी तो दूर घर-परिवार के सदस्य एक-दूसरे से दूर हो गए।

कई हस्तियां हमेशा के लिए बिछुड़ गई। राम.. राम.. करके समय गुजरा। अब नया अंगरेजी साल एक उम्मीद लेकर आया है। कई लोग इस पर भी सूगली सियासत कर रहे हैं, पर अपन को उनकी ओर ध्यान नही देना है। प्रार्थना करो कि अभियान सफल हो। सुनहरे दिन वापस आएं। अंधेरा छटे। धुंधलका दूर हो। जिसे टीका लगवाना है-बेखौफ हो के लगवाएं। जिसे नही लगवाना है-ना लगवाएं मगर अफवाहपंथी से दूर रहें। इसी आस-उम्मीद के साथ-जय भारत।