तीन दशक में बदली लोहागढ़ की आबोहवा

भरतपुर। राजस्थान के पूर्वी सिंहद्वार लोहागढ़ के नाम से विख्यात भरतपुर की आबोहवा पिछले तीन दशक में काफी कुछ बदल चुकी है। बदलाव के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। अध्ययन रिपोर्ट पर नजर डाले तो पता चलता है कि जिले का जलवायु तंत्र ही नहीं बदला, बल्कि यहां की बारिश के औसत दिनों में कमी आई है। सर्दी के न्यूनतम तापमान में भी बढ़ोतरी हुई है। बदलाव का असर यह रहा है कि केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान (घना पक्षी विहार) में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी गिरावट दर्ज हुई है।

इस दौर में पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और उसका असर देखने को मिल रहा है। पक्षियों की नगरी के रूप में बिख्यात भरतपुर भी इससे अछूता नहीं है। मौसम विभाग की मानें तो बीते तीन दशक में भरतपुर जिले में बरसात के औसत दिनों में गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही सर्दियों के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इसका सीधा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों पर देखने को मिला है।

राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (आरएसएनएच) के निदेशक एवं पर्यावरणविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा के निर्देशन में बीएससी स्टूडेंट हर्ष सिंघल ने ‘क्लाइमेट चेंज एंड द अविफौनल पैटर्न ऑफ द वेटलैंड्स इन एंड अराउंड केवलादेव नेशनल पार्क’ विषय पर अध्ययन किया। जैविक शोधार्थी हर्ष सिंघल ने विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो के रूप में इस पर स्टडी की है।

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