देश के इकलौते हाथी गांव की हालत बुरी, हाथियों के पेट पालने के लिए जेवर, मकान गिरवी रखकर लाखों का कर्जा ले रहे महावत

जयपुर। कोरोना के दौर में जयपुर के पास बसा देश का इकलौता हाथी गांव अब भी अनलॉक नहीं हो सका है। जयपुर में टूरिस्टों के बाकी ठिकाने चालू हो गए हैं, लेकिन हाथी की सवारी आठ महीने से बंद है। हाथी के खाने-पीने का एक दिन का खर्च करीब 2500 रुपए आता है, लेकिन कमाई फिलहाल जीरो है।

मालिक इन हाथियों का पेट पालने के लिए अब तक पुश्तैनी जेवर, मकान गिरवी रखकर लाखों रुपए का कर्ज ले चुके हैं। लेकिन, अब यह मुश्किल होता जा रहा है। राज्य सरकार और पर्यटन विभाग हाथी गांव के इन बाशिंदों की कोई मदद नहीं कर रहा है।

दैनिक भास्कर टीम हाथी गांव पहुंची तो इस पेशे से जुड़े परिवारों का दर्द फूट पड़ा। उनका कहना है कि आठ महीने से हाथियों को पालना मुश्किल होने से महावतों के परिवार अपने गांव लौटने लगे हैं। वे अन्य कामों में मजदूरी करने को विवश हो गए हैं ताकि परिवार को पाल सकें।

5 माह में 4 हाथियों की मौत, एक महावत ने की खुदकुशी

कोरोना काल में पिछले पांच महीने हाथी और महावतों पर कहर बनकर टूटे हैं। इस दौरान चार हाथियों की मौत हो गई। 4 सितंबर को ही गांव में 99 नम्बर की एक हथिनी रानी ने दम तोड़ दिया था। उसे करीब 10 साल पहले असम से जयपुर के हाथी गांव लाया गया था।

22 सितंबर की रात को हाथी गांव में 34 नंबर हथिनी चंचल के महावत राजपाल ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया। वह सुबह अपने कमरे में फंदे से झूलता हुआ मिला। करीब 30 साल के मृतक महावत राजपाल बिहार में चंपारण जिले का रहने वाला था। साथी महावतों के मुताबिक, राजपाल लंबे अरसे से आमेर में महावत था जिसे लॉकडाउन में आर्थिक संकट खड़ा हो गया। अवसाद में आकर उसने फंदा लगा लिया।

20 परिवार रोजगार तलाशने लौटे गांव

इस घटना के बाद करीब 20 महावतों के परिवार यहां से पलायन कर अपने गांव में रोजी-रोटी की तलाश में चले गए है। जो यहां बचे है, उनके राशन की व्यवस्था हाथी मालिक करते हैं। चार हाथियों की मौत और एक महावत की आत्महत्या ने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को झकझोर कर रख दिया है।

एक हाथी पर रोज 2500 खर्च, जैसे-तैसे करते हैं जुगाड़

हाथी गांव विकास समिति के अध्यक्ष बल्लू खान ने बताया कि एक हाथी पालने में रोजाना करीब ढाई से तीन हजार रुपए का खर्च आता है। इसमें वह करीब 250 किलो गन्ना, 40 किलो सूखी ज्वार, 15 किलो रंजका चारा शामिल है। आमेर महल में हाथी सवारी और शादियों, त्यौहार पर मेले शोभा यात्रा के आयोजन में ही हाथी की सवारी से उनकी आमदनी होती थी।

लेकिन, हमारी सभी आजीविका बंद हो गई। परिवार और हाथी का पेट भरना मुश्किल हो गया। लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। ऐसे भी मौके आए जब खुद भूखे रहे लेकिन हाथियों को पेट भरा। इसके पीछे वजह है कि हाथी इनके लिए जानवर नहीं, परिवार का हिस्सा है।

बल्लू के मुताबिक, लॉकडाउन की शुरुआत में हाथी कल्याण समिति द्वारा 600 रुपए रोजाना के हिसाब से प्रत्येक महावत को खर्चा दिया जा रहा है। लेकिन, शुरुआत के दो तीन महीने बाद यह भी बंद हो गया।

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