गृहस्थ भी हिंसा और परिग्रह को कम करने का करें प्रयास : महातपस्वी महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी
आचार्यश्री महाश्रमणजी

आदर्श विद्या मंदिर में आचार्यश्री के मंगलपाठ से ‘आचार्य महाश्रमण प्रकोष्ठÓ का हुआ लोकार्पण

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। छापर की धरा पर अपनी अमृतवाणी के द्वारा प्रतिदिन ज्ञानगंगा को प्रवाहित करने वाले, अणुव्रत अनुशास्ता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की अमृतवाणी से जन-जन लाभान्वित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम भी सम्पन्न हो चुके हैं। अभी कोई-कोई कार्यक्रम यथानुकूलता समायोजित हो रहे हैं। गुरुवार को प्रात:काल आचार्यश्री महाश्रमणजी छापर में ही स्थित आदर्श विद्या मंदिर के प्रांगण में पधारे। उक्त विद्या मंदिर में नवनिर्मित आठ कमरे जिन्हें आचार्य महाश्रमण प्रकोष्ठ नाम दिया, का लोकार्पण आचार्यश्री के मंगलपाठ से हुआ।

आचार्यश्री महाश्रमणजी
आचार्यश्री महाश्रमणजी

इस अवसर पर राज्यसभा के पूर्व सांसद डॉ. महेश शर्मा आदि भी उपस्थित थे। इस अवसर पर आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों व अन्य जनता को मंगल पाथेय प्रदान किया। राज्यसभा के पूर्व सांसद डॉ. महेश शर्मा तथा महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने भी अपने वक्तव्य दिए। तदुपरान्त आचार्यश्री कस्बे के अनेक श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए चतुर्मास प्रवास स्थल में पधारे।

आचार्यश्री ने मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि असुरकुमार देव आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं क्या? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि हां, नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवता चारों गति के लोग आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, वे इससे मुक्त नहीं होते। भोजन बनाने में, खेती करने में, वाहनों से यात्रा आदि करने में, अग्नि जलाने में अनेकानेक छोटे और सूक्ष्म जीवों की आरम्भजा हिंसा हो जाती है। हालांकि यह हिंसा अनिवार्य कोटि की हिंसा होती है, किन्तु यह हिंसा सभी गतियों के प्राणियों से होती है। यह हिंसा साधारण मनुष्य तो क्या साधुओं से भी हो जाती है।

जैसे साधु चल रहा है और वर्षा प्रारम्भ हो गई तो हिंसा हो गई। चलते समय पैर के नीचे कोई जीव, कीड़ा, मकोड़ा अथवा कोई भी सूक्ष्म जीव आ गया तो भी हिंसा हो जाती है। गृहस्थ जीवन में आदमी को मकान, दुकान, बर्तन, सामान, कपड़ा, गाड़ी, रूपया-पैसा आदि-आदि परिग्रहों का अर्जन करता और उनसे जुड़ हुआ भी होता है। गृहस्थ अपने जीवन में सोचे कि कब और कितने रूप में मैं आरम्भ और परिग्रह से स्वयं को मुक्त कर सकता हूं। जीवन में जितना संभव हो सके आदमी को आरम्भ और परिग्रह से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। परिग्रह भी हिंसा का कारण बनता है। इसलिए आदमी अपने जीवन में कुछ-कुछ संकल्प अपनाए और परिग्रहों का अल्पीकरण और अनावश्यक आरम्भजा से भी बचने का प्रयास करे। यथा वह ऐसा संकल्प करे कि मैं विशेष परिस्थिति के सिवाय कार आदि का एक महीने तक प्रयोग नहीं करूंगा। इस दौरान आदमी कार आदि चलाने में होने वाली आरम्भजा हिंसा से बच सकता है।

एक अवस्था के बाद आदमी को अपने परिग्रहों का अल्पीकरण करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, धन, मकान, दुकान आदि के मालिकाना से मुक्त हो साधना के पथ पर आगे बढऩे का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास के माध्यम से अनेक प्रसंगों का वर्णन किया।

यह भी पढ़ें : साम्प्रदायिक सौहार्द वर्तमान समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता : मुनि मोहजीत