कर्म वेदन बिना मुक्ति नहीं : आचार्य महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)/भारत देश में सबसे गर्म स्थान के रूप में विख्यात राजस्थान का चूरू जिला वर्तमान में आध्यात्मिक ज्ञान से अपनी तपन बुझा रहा है, क्योंकि इस जिले के छापर नामक कस्बे में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपना चतुर्मास कर रहे हैं। उनके श्रीमुख से नियमित प्रस्फुटित होने वाली ज्ञानगंगा की धारा मानों मानवीय मूल्यों के अभाव में बंजर हुए हृदय को अभिसिंचन प्रदान कर मानवता को जागृत करने का प्रयास कर रहे हैं।

नित्य की भांति मंगलवार को आचार्यश्री ने चतुर्मास प्रवास स्थल के प्रवचन पंडाल में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न पूछा गया है कि नरक, तीर्यंच, मनुष्य और देव गतियों में रहने वाला जीव कर्म का वेदन किए बिना मुक्ति को प्राप्त हो सकता है क्या? इसका उत्तर दिया गया कि किए हुए कर्मों का वेदन किया जीव को मुक्ति नहीं मिल सकती। जीव कर्म करते हैं तो उन्हें कर्म का बंध भी होता है। जीव दस गुणस्थानों तक जो कर्मों का बंध करता है, वह लम्बेकाल तक टिकने वाला होता है। वह कर्म सघन भी हो सकता है और हल्का भी हो सकता है, किन्तु बिना कर्मों के वेदन के मुक्ति संभव नहीं।

कर्म के भी दो भाग बताए गए हैं- प्रदेश कर्म और अनुभाग कर्म। इनमें प्रदेश कर्मों को भोग तो भोगना होता है, किन्तु अनुभाग कर्म में किसी का वेदन करना होता है और किसी का वेदन नहीं करना होता है। आदमी को अपने कर्मों को अ’छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हिंसा और परिग्रह आदमी को नरक गति की ओर ले जाने वाले होते हैं। झूठ और कपट से आदमी तीर्यंच गति का बंध कर लेता है। इसलिए आदमी को त्याग, तपस्यायुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में जितना त्याग बढ़ेगा, साधना होगी, आगे की गति अच्छी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के गायन और आख्यान के क्रम में आचार्य डालगणी के आचार्यकाल में जगह-जगह हुए चतुर्मास, उनमें मुनि कालू द्वारा दोपहर का व्याख्यान और उनके संस्कृत भाषा, आगम कंठस्थीकरण आदि का आख्यान, तदुपरान्त आचार्य डालगणी के स्वास्थ्य की कमी और लाडनूं लगातार तीन चतुर्मास, संत, साध्वी और श्रावक समाज द्वारा तेरापंथ के अगले भविष्य के लिए प्रार्थना और आचार्य डालगणीजी द्वारा एक श्रावक से चिंतन के प्रसंगों का वर्णन किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में महावीर के साधना सूत्र विषयक त्रिदिवसीय उपासक सेमिनार का आयोजन भी हुआ। इस संदर्भ में उपासक श्रेणी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। उपासक शिविर के संयोजक श्री जयंतीलाल सुराणा ने अवगति प्रस्तुत की। प्रतिभागी उपासक व उपासिकाओं ने समूह स्वर में गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि उपासक श्रेणी में ज्ञान का विकास होता रहे। ज्ञान के साथ-साथ बोलने की अ’छी शैली, अनुभव, प्रबुद्धता, चिंतनशीलता का भी विकास हो। शिविर, सेमिनार आदि ट्रेनिंग अ’छी होती है तो कार्य भी अ’छा हो सकता है। उपासक श्रेणी खूब विकास करती रहे। कार्यक्रम में दिया बरमेचा ने स्वलिखित पुस्तक ‘द जैन एक्सपेरिमेंटÓ अपने परिजनों व जैन विश्वभारती के पदाधिकारियों के साथ आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित की। तदुपरान्त इस पुस्तक के संदर्भ में आचार्यश्री के समक्ष अवगति प्रस्तुत की। आचार्यश्री ने पुस्तक लेखन के संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

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