यह स्तुति आप पर बरसाएगी भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा

भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। चैत्र माह के बाद अब वैशाख माह की शुरुआत हो चुकी है. मान्यता है कि वैशाख के महीने में भगवान विष्णु के माधव रूप की पूजा की जाती है। इस माह में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। श्री कृष्ण को मुरलीधर, माखनचोर, श्याम, गोपाल आदि 108 नामों से जाना जाता है। गीता के उपदेशों में भगवान स्री कृष्ण को जगतगुरु भी कहा गया है।

इतना ही नहीं, इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को भगवान को प्रसन्न करने के कई उपायों के बारे में भी बताया है। कहते हैं क सिर्फ भाव रखने से ही भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उपासना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही श्री राधा रानी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। अत: साधक बुधवार के दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा पाना चाहते हैं, तो पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें।

श्री राधा कृष्ण अष्टकम

भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण

चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं ।

हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं ॥

भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं ।

मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं ॥

सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं ।

वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं ॥

मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं ।

नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं ॥

प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं ।

सुरद्रुमप:अरकं, नमामि रधिकधिपं ॥

दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं ।

इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं ॥

मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं ।

धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं ॥

सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं ।

Ÿवकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं ॥

श्री राधा कृष्ण स्तोत्र

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।

सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृते: परम् ॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धा: सिद्धेश्वराश्च यम् ।

तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

य: सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं य: पठेत् प्रयत: शुचि: ।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशय: ॥

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