अब की बार…!

सरकार भले ही कुछ भी कहे। सरकार भले ही कुछ भी करने के प्रयास करे। सरकार भले ही मंसूबे बनाए। सरकार भले ही मंसूबे बना कर उसे धरती पे उतारने की कोशिश करे। कहने वाले उसे ‘एक और बेगारÓ कहने से बाज नहीं आएंगे। हथाईबाज भी ऐसे ‘किए-धरेÓ पे एतराज जता चुके हैं। हम बच्चों को स्वस्थ रखने के पक्ष में। हम बच्चों को तंदुरूस्त रखने के पक्ष में हम भी चाहते हैं कि बच्चे स्वस्थ रहें..मस्त रहें.. इसका मतलब ये नहीं कि सरकारी स्कूलों को ढाबा बना दिया जाए। शिक्षक वर्ग तो पहले से ही दुखी है, उस दर्द को कम करने की बजाय ढाबों की शाखाएं खोलने की तैयारियां हो रही हैं। ऐसा हो गया तो-‘अब की बार..।Ó शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
ऊपर का पेरा पढ कर कई बातें दिमाग में घूम रही होंगी। असमंजस की घटा छा रही होंगी। ऊहापोह की बारिश हो रही होंगी। वो इन के सामने देखें-ये इनके सामने। ना इन की समझ में आए, ना उन की समझ में। ये इनसे ना पूछ सकें..वो इनसे इन्क्वायरी ना कर सकें। इन के चेहरे पे सवाल..उनके चेहरे पे प्रश्नवाचक चिन्ह। बात ही कुछ ऐसी। पेरेग्राफ में जिन का समावेश किया गया है-उनमें ना कोई ताला..ना कोई मेल..। ना कोई तार..ना कोई तम्य। ऐसे में सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। सवाल पर अपने सवाल है। कई सवाल स्वाभाविक होते हैं..कई जान बूझ कर खड़े कर दिए जाते हैं। कई सवाल वाजिब..। कई गैरवाजिब..। कई के जवाब मिल जाते हैं..कई के नहीं मिलते। कई सवाल सुलझ जाते हैं..कई अनसुलझे। कई लोगों को सवाल खडे करने में मजा आता है। उनमें ना तो ‘सÓ ना ‘वाÓ और ना ‘लाÓ इसके बावजूद सवालों की वॉल तैयार। एक जमाने में इस ममाले में आधी आबादी ज्यादा बदनाम थी। उन्हें यहां-वहां ताकाझांकी करने का जोरदार चस्का था। अब उनमें अपने आप को मूंछों वाला मरद समझने वालों का नाम भी जुड़ गया। कई मानखों ने पंचायती करने में आधी आबादी को भी पीछे छोड़ दिया।
मगर पेरेग्राफ में वाकई में ऐसा कुछ है जो कई की समझ से बाहर। कई लोग गौर करने में व्यस्त। कई लोगों को यहां-वहां ताकझांक करने की आदत नहीं। उनके लिए पेरा हो, पेरेग्राफ हो या पूरी विगत..कुछ फरक पडऩे वाला नहीं । मगर असमंजस तो उनके दिमाग में भी। असमंजसपंथी के अपने कारण। ऊहोपोह की अपनी वजह। सरकारें क्या करती हैं..क्या कहती हैं। इस के बारे में कोई कुछ शर्तिया तौर पे नहीं कर सकता। सरकार नेतों से बनती है और नेतों पर किसी को भरोसा नहीं। किसे पता था कि सरकार ‘चालानÓ के नाम पर लोगों का कचूमर निकाल देगी। किसे पता था कि चाराने-आठाने ज्यादा करते करते डीजल-पेटरोल के दाम अस्सी रूपए के ‘ऐेड़ेनेड़ेÓ पहुंच जाएंगे। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने क्लू पकडऩे के बाद अंदाज लगा लिया कि आगे क्या होणा है। कई का मन स्कूली ढाबों को लेकर आड़ातिरछा। उन्होंने पंडितजी के ढाबे के बारे में सुना। शरमाजी के ढाबे से लेकर भाईजी के ढाबे में रोटी भी खाई। सुनने वालों ने चौधरी के ढाबे के बारे में सुना। काके दे ढाबे के बारे में सुना। पटेलजी के ढाबे बारे में सुना। स्कूली ढाबों के बारे में पढ-सुन समझ गए सो समझ गए नहीं समझने वालों को समझाने के लिए हम हैं ना..।
हथाईबाज पहले ही साफ कर चुके हैं कि देश का भविष्य स्वस्थ..मस्त और तंदुरूस्त होना चाहिए। देश का भविष्य मजबूत होना चाहिए। हथाईबाज स्पष्ट कर चुके हैं कि बच्चे स्वस्थ रहने चाहिए। अच्छा भोजन मिले तो बच्चे तंदुरूस्त रहेंगे। बच्चे स्वस्थ होंगे तो देश भी स्वस्थ और मजबूत होगा। हथाईबाज इन सब के पक्षधर रहे हैं मगर इसके लिए स्कूलों को ढाबा बनाने के खिलाफ। बच्चे स्कूल जाते हैं ज्ञान अर्जित करने के लिए। बच्चे स्कूल जाते हैं पढाई करने के लिए। बच्चे स्कूल जाते हैं भविष्य सुधारने के लिए पर वहां पढाई कम ढाबागिरी ज्यादा हो रही है। अब की बार..भी उसी का एक किरदार।
कोई इसे सियासी नारा ना समझे। केंद्र में मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू हो गई। इसलिए शीर्षक वहां लागू नहीं होता। हरियाणे और महाराष्ट्र में चुनावी धमक शुरू हुई है। अभी से घोषणा कर देना जल्दबाजी होगी। मोदीजी ने अमेरिका में नारा उछाला अब की बार ट्रम्प की सरकार..। इसका फैसला वहां की जनता करेगी। हमारी ‘सब की बारÓ के तार एक और बेगारी से जुड़े हुए।
सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन दिया जा रहा है। पिछले लंबे समय से रोटी-बाटी प्रथा चल रही है। कई स्कूलों में बच्चे रोटी खाने के लिए ही आते हैं। रोटी खाई और वो जा..। मिड डे मील के कारण शिक्षकों का मूल काम अस्त हो रहा है। पढाई कम बिखेरा-समेटा ज्यादा। पहले रोटी-बाटी ल्यो। फिर जिमाओ। फिर बरतन-भांडे-साफ करवाओ। घंटे-दो-तीन घंटे इसी में खफ जाते हैं। अब दूधपान भी शुरू हो गया। इसकी व्यवस्था करना भी दुश्वार। पहले दूधगिरी फिर रोटी-बाटी। शाला का आधा समय खान-पान में गया। सुना है कि केंद्र का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब सरकारी स्कूलों में-‘नाश्ताÓ प्रथा शुरू करने की योजना बना रहा है।
बिचारे शिक्षक दूध से ऊपर नहीं उठ रहे। बिचारे माटसाब रोटी-बाटी से ऊपर नहीं आ रहे तिस पे एक और पंगे की तैयारी। हथाईबाजों ने उस पर-‘अब की बार..एब और बेगार..Ó का ठप्पा ठोक दिया ठीक किया ना?