ज्ञान में लगने से शुभ योग में बीत जाता है समय : महाश्रमण

भीलवाड़ा। आचार्यश्री महाश्रमण का चातुर्मास निरंतर प्रवर्धमान है। उनकी सन्निधि पाकर हर श्रद्धालु प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है। तेरापंथनगर श्रद्धा, आस्था व भक्ति के रंगों से सुशोभित हो रहा है। गुरुवर की अनुत्तर साधना हर व्यक्ति के जीवन का पथ दर्शन कर रही है। आचार्यश्री ने जैनागम आधारित प्रवचन में गुरुवार को मंगल देशना देते हुए कहा कि साधु जीवन में रत्नत्रयी की आराधना में जो बाधक तत्त्व होते हैं, उन्हें उपघात कहते हैं।

इसके कुछ प्रकार होते है। जैसे- उदगम, उत्पात, एषणा, परिक्रम, परिहरण, अप्रीति, संरक्षण, अपरिग्रह आदि। भिक्षा संबंधी एषणा समिति की पालना में साधु असावधान रहता है तो उससे चारित्र में क्षति होती है।

ज्ञान, दर्शन, चारित्र के प्रति प्रमाद रखता हो या शंका, आकांक्षा रखता हो, समितियों की पालना में अजागरूक रहता हो उससे भी संयम जीवन में उपघात हो जाता है। संयम जीवन में इन उपघातों से बचने के लिए इनकी विशुद्धि जरूरी है। इनसे बचाव करके इनकी विशुद्धि की जा सकती है। रक्षिता नौलखा ने आठ के तप में नौ का और शुभलाल कावडिय़ा ने मासखमण 30 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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