शहरी मांगीलाल भी तैयार

चाहतेे श्रेय लेने वालों की कतार में लग सकते थे, अभी भी लग सकते हैं। लग इसलिए नही रहे कि हमने हमारा काम बखूबी किया। हमने अपना फर्ज पूरी ईमानदारी के साथ निभाया। हमने हमारी ड्यूटी निभाई इसमें कैसा श्रेय लेना। हमें तो इस बात की खुशी है कि ‘बेळासर हमारे यहां भी बैंड बज जाएगी। अभी गांवों में मांगीलालों की भरमार और कोई लोचा नहीं हुआ और अब मांगीलाल शहरों की ओर कार्यक्रम शुरू होने वाला है। भाई लोगों ने मौसमी वरदी भी निकाल ली है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


पिछले लंबे समय से श्रेय लेने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। जिसे देखो वो श्रेय लेने की हौड़ में। भले ही किया-धरा कुछ नहीं हो, मगर लावे लूटने में सब से आगे। आप एक बात बताइए, कोई अपना काम करे। कोई अपनी ड्यूटी करें इसका मतलब ये तो नही कि वो किसी को निहाल कर रहा हो। पुलिस पांडु ने चोरटों की गैंग पकड़ ली तो कौन सा नया तीर मारा। डॉक्टर ने ऑपरेशन किया तो कौन से आसमान से तारे तोड़ दिए। चोर को पकडऩा पुलिस का काम है। मरीज का इलाज कर उसे ठीक करना डॉक्टर्स का पेशा है। इसमें किस बात का विज्ञापन और किस बात का इतराना। कल को डाकिए कह देंगे-हम फलां स्थान पर चिट्ठी पहुंचाई। कल को दूधिए इतर जाएंगे कि हमने फलां मंतरी के यहां दूध दिया। कल को सोनार पट्ठे पे हाथ मार के कहेंगे-हमने अंगूठी बनाई। अरे भाई सुथार अगर किवाड़-खिड़कियां नही बनाएगा और लोहरा छेणी-हथोड़ा-फावड़े नही बनाएगा तो कौन बनाएगा। बनाएगा तो किस पे एहसान करेगा।


कुछ अखबारों और खबरिया चैनल्स मे भी श्रेय लेने की परंपरा पसर रही है। किसी अखबार अथवा चैनल ने कोई मुद्दा उठा दिया और उसके बारे में संबंधित अधिकारी से बातचीत तो वो यही कहेगा कि मामले को देखूंगा या कि इसकी जांच की जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, चाहे वो कित्ता ही बड़ा आदमी क्यूं ना हो। ऐसा कहना एक हिसाब से नेता-अफसर का तकिया कलाम है। ऐसे रट्टे मारना उनके कार्य-कलापों का अंग है मगर अखबर ‘खबर का असर का राग मारना शुरू कर देते है। चैनल्स पर तो दिन भर रट्टा चलता रहता है। कोई यह नही कहता कि उनकी 999 खबरें बेअसर साबित हुई। एक बार कार्रवाई का आश्वासन मिल गया तो-खबर का असर। वाह ! भई वाह।


हथाईबाज चाहते तो इस तंत्र में शामिल हो सकते थे पर नही हुए। जो उनका काम था, किया, उसे क्यूं गिनाना। कंदोई ने भोजन बनाया तो किस पे एहसान किया। हम ने भी वही किया जो हमारा काम था उस पर यदि कोई तुक्का तीर में बदल गया तो काहे कोइ तराना। इन दिनों गांवाई सरकार चुनने का दौर चल रहा है। विगत दिनों राज्य की कई ग्राम पंचायतों के चुनाव टाल दिए गए थे। वहां इन दिनों वोट पड़ रहे है। पहले दौर के लिए वोट पड़ गए। पंच और सरपंच चुणीज गए आने वाले दिनों में बाकी की ग्राम पंचायतें भी वापस अस्तित्व में आ जाएगी।


सरकार कोरोना के कहर के बावजूद शेष बची ग्राम पंचायतों में तो चुनाव करवा रही है। मगर जोधपुर, जयपुर और कोटा नगर निगम चुनाव कोरोना की आड़ में लटका दिए। पिछले दिनों ‘पुखिया बना पुखराजजी शीर्षक से छपी हथाई में हथाईपंथियों ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था। कहा था-क्या गांवों में कोरोना का प्रवेश वर्जित है, जो वहां तो चुनाव हो रहे हैं और इन तीनों निगमों को अपनी सरकार से दूर रखा जा रहा है।

लगता है कि आदरजोग कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और राज्य सरकार की तीनों शहरों के नगर निगमों के चुनाव मार्च 2021 तक करवाने की दरख्वास्त को नामंजूर कर दिया। उच्च न्यायालय ने चुनाव 31 अक्टूबर तक करवाने के निर्देश दिए हैं। हथाईबाज चाहते तो इसे-हथाई का असर कह सकते हैं, पर कह इस लिए नही रहे कि उन्होंने अपना काम किया। काम पर क्यूं इतराना। बल्कि वो इस बात से खुश है कि गांवों के साथ ये शहर भी निपट जाएंगे। सब कुछ ठीकठाक रहा तो निगमों के चुनावों की तारीख भी शीघ्र घोषित हो जाएगी। उसके बाद वोटों के मांगणियारों का रूख शहरों की ओर। गांवों के मांगीलाल निपटे और शहरी मांगीलाल शुरू।
हथाईबाज देख रहे हैं कि आदरजोग हाईकोर्ट का फैसला आते ही मांगीलाल सक्रिय हो गए हैं। आगे-आगे देखिए, होता है क्या।