साहित्य संगम की काव्य गोष्ठी में छलके जीवन के विविध रंग

जोधपुर। पिछले करीब 30 वर्षों से जारी परम्परा का निर्वहन करते हुए शहर की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था ‘साहित्य संगम’ की ओर से सोमवार को सेठ श्री रघुनाथदास परिहार धर्मशाला के सभागार में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें शहर के प्रतिष्ठित रचनाकारों ने जीवन के विविध रंगों का विश्लेषण करते हुए सारगर्भित रचनाएं प्रस्तुत कीं।

वरिष्ठ साहित्यप्रेमी विजेन्द्रसिंह परिहार के सानिध्य में आयोजित गोष्ठी का आगाज गीतकार दिनेश सिंदल ने संस्था के संस्थापक स्मृति शेष मदन मोहन परिहार की काव्य रचना प्रस्तुत कर किया। सिंदल ने ‘गाड़ी का शीशा नीचे कर एक नजर भर देख इधर भी, पांव नहीं है बाबू मेरे और जुराबें बेच रही हूँ’ सुनाकर एक गरीब दिव्यांग महिला की व्यथा कथा बयान की।

गोष्ठी में नामवर शाइर हबीब कैफी ने ‘हम सिरहाने रखके हाथ-हाथ पर, थक गए तो सो गए फुटपाथ पर’, राजस्थानी साहित्यकार डॉ. आईदानसिंह भाटी ने ‘नमन करो उस लोकतंत्र को’, हिन्दी व राजस्थानी के साहित्यकार श्याम सुन्दर भारती ने ‘पुस्तक है मौन और अध्यापक शंकित है’, ख्यातिप्राप्त साहित्यकार मीठेश निर्मोही ने राजस्थानी कविता ‘लो सूंपूं हूं थ्हानै’ के माध्यम से सम के धोरों की अनुभूति को अभिव्यक्त किया। इसके अलावा प्रतिष्ठित रचनाकार डॉ. सत्यनारायण ने ‘घर पर’, डॉॅ. कौशलनाथ उपाध्याय ने ‘खोजना होगा हमें’, साहित्यकार पद्मजा शर्मा ने ‘विरोध’, सैयद मुनव्वर अली ने गजल एवं नवीन पंछी ने कविता सुनाकर वर्तमान परिवेश की विसंगतियों का चित्रण किया।

गोष्ठी में अशफाक अहमद, प्रमोद वैष्णव, एलसी रावतानी, रजा मोहम्मद खान, जितेन्द्र जालोरी एवं मण्डल प्रकाश व्यास इत्यादि रचनाकारों ने काव्य पाठ किया। इस अवसर पर आनन्दसिंह परिहार, नाट्यकर्मी रमेश भाटी एवं हरिश शिवनानी इत्यादि साहित्यप्रेमी मौजूद रहे। गोष्ठी के अंत में संस्था के अध्यक्ष इन्दीवर परिहार ने आगन्तुक कवियों के प्रति आभार ज्ञापित किया।

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