प्रधानमंत्री मोदी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पैरालिंपिक देवेन्द्र झाझड़िया हुए रूबरू

बोले- 9 साल की उम्र में एक हाथ कट गया था, मां ने हौसला बढ़ाया तो यहां तक पहुंचा

जयपुर। फिट इंडिया मूवमेंट की प्रथम सालगिरह पर गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चूरू जिले के पैरालिंपिक देवेन्द्र झाझडिय़ा से रूबरू हुए। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देवेंद्र झाझडिय़ा की जिंदगी संघर्ष, मेहनत और कामयाबी पर चर्चा की। देवेंद्र झाझडिय़ा ने पीएम मोदी से संवाद के दौरान कहा कि मैरा मानना है कि जिंदगी में कभी हार नहीं मानना चाहिए। जब मैं 9 साल का था तो अपने गांव में ही पेड़ पर चढ़ रहा था। पेड़ से एक हाईटेंशन वायर जा रहा था।

मुझे उससे करंट लगा और मेरा बायां हाथ कोहनी से काटना पड़ा। उसके बाद से घर से बाहर निकलना मेरे लिए चुनौती बन गया था। ऐसे में मेरे मां जीवनी देवी ने मुझे नई जिंदगी दी। उन्होंने मुझे खेलने के लिए जबर्दस्ती बाहर भेजा। वो चाहतीं तो मुझे पढ़ाई करने के लिए भी कह सकती थीं। उस दिन मां ने मुझे घर से बाहर नहीं निकाला होता तो शायद मैं भी पैरालिंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने में सफल नहीं होता।

उन्होंने कहा कि जब शोल्डर में इंजरी हुई तो सोचा रिटायरमेंट ले लूं। जिसके बाद भी इससे लडऩे की सोची। अपने आप पर विश्वास किया। व्यायाम किया। आज भी हाथ की इंजरी पर एक घंटा देना पड़ता है। सोर्स नहीं होने पर साइकिल की ट्यूब के माध्यम से व्यायाम किया करते थे।

देवेंद्र पैरा ओलिंपिक में दो बार स्वर्ण जीतने वाले इकलौते भारतीय

देवेंद्र झाझडिय़ा पैरा ओलिंपिक से दो बार स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले इकलौते भारतीय खिलाड़ी हैं। खास बात यह है कि पैरा ओलिंपिक गेम्स में दूसरा स्वर्ण भी देवेंद्र झाझडिय़ा ने खुद का ही विश्व रिकॉर्ड तोडकर हासिल किया है।

लकड़ी के भाले से घर में ही करता था प्रैक्टिस

यह 1995 की बात है। जब देवेंद्र रतनपुरा के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। वहां कुछ बच्चे जैवलिन की प्रैक्टिस करते थे। उनमें कई स्टेट लेवल के प्लेयर भी थे, लेकिन अपने साथ नहीं खिलाते थे। वे उन्हें देखते रहते। फिर उन्होंने एक दिन घर में ही लकड़ी का भाला बनाया और प्रैक्टिस करने लगे। जिसके बाद डिस्ट्रिक्ट चैंपियन बने। वहीं से देवेंद्र के खेलों का सफर शुरू हुआ।

रियो मेडल के बाद मिली पहचान

2004 एथेंस पैरालिंपिक में गोल्ड जीतने के बाद देवेंद्र को ज्यादा पहचान नहीं मिली थी। उस समय सोशल मीडिया ज्यादा नहीं था। अब समय बदल गया है। अब केंद्र सरकार ओलिंपिक और पैरालिंपिक को बराबर मानती है। मीडिया में भी पैरालिंपिक में मेडल जीतने वाले सुर्खियां बनते हैं। 2016 में एक बार फिर देवेंद्र ने वल्र्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता। जिसके बाद उन्हें पहचान और सम्मान दोनों मिले।

यह भी पढ़ें-कर्ज से परेशान होकर 22 साल के युवक ने की आत्महत्या, सुसाइड नोट भी लिखा