हम को कम-उन्हें ज्यादा करने की जरूरत

मानसून में ही ऐसा होता है.. ऐसा नही है। ऐसा अरसों से हो रहा है। ऐसा बरसों से चला आ रहा है। जहां तक हमारा खयाल है। ऐसा अरसों-बरसों तक चलता रहेगा। ऐसे को वैसे में बदलने के लिए खपना पड़ता है। जुतना पड़ता है। समय देना पड़ता है। सच तो यह है कि हम ने ऐसा नही किया। किया होता तो हम कम और वो ज्यादा होते। अभी भी देरी नही हुई है। हमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रण-प्राण से जुटना होगा, वरना हर साल ऐसे उपक्रम चलते रहेंगे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

ऐसे-वैसे की जोड़ी आम है। इनके आगे जैसे और तैसे चस्पा कर दिए जाएं तो राशन कार्ड में सदस्यों की संख्या बढ सकती है। कोई चाहे तो इसमें ‘पैसे भी जोड़ सकते है। कोई यह ना समझे कि हम तुक्केबाजी को प्रोत्साहन दे रहे है। जैसे को तैसा मिला, बड़ा मजा आया..। ना ये तर्ज-ना पैरोडी वरन एक ऐसी सच्चाई है जिस पर कभी आंच नही आ सकती। सच पर वैसे भी आंच नही आती। सांच को आंच नही। सच को छुपाया जा सकता है-दबाया नहीं जा सकता। हां, इसे सियासत में घसीटा जाए तो कहावत के अर्थ-मायने बदल सकते हैं। दूसरी बात ये कि सियासत में सच और सच्चाई तो दूर, इनका तड़का भी दिखाई नहीं देता। सच और सियासत के बीच अवैध रिश्ता भी नहीं। जहां सच है, वहां सियासत नहीं और जहां सियासत है, वहां सच नही। दोनों एक साथ चलें और चलते रहें ऐसा ना तो कल हुआ, ना आज हो रहा है, भविष्य में ऐसा हो जाए। इसकी भी गुंजाइश नहीं। घूम-फिर कर बात वापस ऐसा-वैसा पर आ गई। यूं कहें कि लेकर आ गए तो भी गलत नहीं।

वैसे तो ऐसा-तैसा-वैसा-जैसा और जितने ‘सा-से-सी हैं उनमें से हरेक ने समय-समय पर प्रसिद्धि पाई है। इन सब के बिना सब कुछ सूना तो नहीं, काफी कुछ सूना है। जैसे-कुत्ते के काटने पर चौदह इंजेक्शन लगते हैं, तो शेर के काटने पे कितने लगते होंगे। इस सवाल का जवाब वही दे सकता है-जिस के साथ शेरसिंघ जी ने भाईचारा दिखाया हो। भूखे शेरजी सद्भावना दिखाएंगे, ऐसा होना संभव नही है। जिज्ञासा शांत करने के लिए वन विभाग के करमचारियों-अफसरों से पूछ कर देख ल्यो। वन विभाग तो क्या-टू-थ्री-फोर विभाग के कारिंदे भी इस बारे में सटीक जानकारी नही दे सकते। इससे ज्यादा जानकारी तो हम-आप के पास मिल जाएगी कि ऐसा-वैसा-तैसा-जैसा को किस-किस ने और कब-कब महिमामंडित किया। जरूरत तो इसकी भी नहीं। कारण ये कि जहां-जिस की जरूरत पड़ती है, उसकी अहमियत वहीं नजर आती है।

देखने वाले देख रहे हैं कि इनका जलवा साहित्य से लेकर सिनेमा तक नजर आता है। रील में देखें तो इनकी भरमार और रियल में देखें तो इनका जलवा। एक फिलिम आई थी-उसका नाम था-‘भाई हो तो ऐसा। यार, भाई तो भाई होता है-इसमें कैसा ऐसा और कैसा वैसा। पत्ते खोलें तो पता चलेगा कि एक भाई, भाई पे जान देने वाला और एक भाई, भाई के साथ गद्दारी करने वाला। राम ने रावण पर इसलिए जीत दर्ज की कि उनके साथ लखन-जैसा भाई था और रावण इसलिए मरा कि उसके साथ विभिषण जैसा भाई था। हमारे समय के लोगों ने ‘सिलसिला फिलिम का नाम तो सुन रखा होगा। कई ने देखी भी होगी। उसमें ऐसा-वैसा का जोरदार बखान किया गया है।

चलते गाने में इन का महिमामंडन। तुम होती तो ऐसा होता-तुम होती तो वैसा होता। हैरत की बात ये कि जो होता उसका खुलासा नही किया गया। एक कहावत अपने यहां आम है-बुआजी के मूंछे होती तो कैसा होता-जवाब मिलता ऐसा होता तो बुआजी फूफो सा कहलाते। पर हथाईबाज जिन ऐसे-वैसे-जैसे या तैसे की बात कर रहे है उन प्रचलन शताब्दियों से जारी है। हो सकता है युगों-युगों से ऐसा चल रहा है। यदि उनमें एकाध भी खरा उतर जाता तो देश हराहट्ट नजर आता। हराहट्ट पे कई लोगों को अचकच हो रही होगी। तो सुनिए-जब लालचुट्ट हो सकता है। जब पीलापट्ट हो सकता है। जब कालाकिट्ट हो सकता है। जब धोलाधच्च हो सकता है तो हरे ने क्या बिगाड़ा। हथाईबाजों ने उसे हराहट्ट बना दिया।


देश और राज्य में पौधरोपण होते रहे है। संस्थाएं-क्लब और संगठन हर साल पौधे रोपते हैं। ऐसा करना अच्छी बात है। हरियाली मन को हरसाती है। हरियाली से पर्यावरण शुद्ध रहता है, मगर अफसोसनाक बात ये कि ज्यादातर लोग पौधे रोप कर भूल जाते हैं। पौधे रोपने का उपक्रम सालों से चल रहा है। हर साल अभियान चलते हैं। आए साल करोड़ों पौधे रोपे जाते हैं और देखभाल के अभाव में जल जाते हैं। कहीं पानी नहीं। कहीं परवरिश का अभाव। कहीं पशुओं का आतंक। सरकारें करोड़ों रूपए फूंकती है।

मगर पौधो की उचित देखभाल नही होती। कहीं पौधों-मिट्टी के नाम पे वन-टू-का फोर होता रहा है। पौधों के नाम पे महोत्सव होते है। चाटण-भाषण होते है। दो-चार दिन बाद पौधे पशु चर जाते है। यदि आज तक रोपे गए पौधों की उचित देखभाल होती तो देश की जनसंख्या से कई गुणा ज्यादा पेड़ों की संख्या होती। हर आदमी के खाते में दस पेड आते। चारों ओर हरियाली होती। ऐसा इसलिए नही हुआ कि पौधे लगाए और भूल गए या कि हरियाली के नाम पे जीम गए। देश को हराहट्ट बनाना है तो आज तक जो होता रहा। उसे तिलांजलि देनी होगी। वरना जैसा चलता आया है वैसा ही चलता रहेगा।