जीवन में सद्गुण रूपी आभूषण को करें धारण : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
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गुरुओं की कल्याणीवाणी के संरक्षण का कार्य करती है अमृतवाणी

सुशीला सुराणा ने आचार्यश्री से 101 उपवास की तपस्या का लिया प्रत्याख्यान

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। सोमवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सुन्दर होना और सुन्दर दिखना दोनों में बहुत अंतर होता है। कोई परिधान से, आभूषण या मुखौटा लगाकर सुन्दर दिखने का प्रयास कर सकता है, लेकिन वह अंदर से कैसा होता है, यह उसकी वास्तविकता होती है। एक आदमी बिना किसी सज्जा के भी शारीरिक सुन्दरता के आधार पर सुन्दर हो सकता है। वस्त्र, आभूषण आदि आदमी की बाह्य सुन्दरता को बढ़ाने वाले हो सकते हैं, किन्तु अध्यात्म की दृष्टि में वास्तविक सुन्दरता तो आंतरिक सुन्दरता होती है। बाह्य आभूषण तो आध्यात्मिक दृष्टि से भार के समान होते हैं, आदमी को आंतरिक सद्गुणों के विकास का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री महाश्रमण
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आदमी को अपने भीतर सद्गुणभूषण के विकास के लिए बताया गया कि हाथ की किसी मामले में शोभा घड़ी से हो सकती है, किन्तु हाथ की सद्गुणभूषण तो दान करना है। हाथ की शोभा दान देने से बढ़ती है। साधु आए तो उसे श्रद्धा और भावना से दान देना चाहिए। दान की वृत्ति औदार्य का द्योतक है। सिर का आभूषण गुरु के चरणों में प्रणाम करना, साधु को वंदन करना होता है। मुंह का आभूषण सत्य भाषा होती है। आदमी ऐसा प्रयास करे कि मेरी वाणी में झूठ का प्रवेश न हो। आदमी सत्य को बोलने का प्रयास करना चाहिए। कान की शोभा कुण्डल से होती है, किन्तु वह शोभा तो बाह्य है, कान का सद्गुणभूषण तो आर्षवाणी का श्रवण, सुभाषित, प्रवचन व श्रुत तथा अच्छी बातों को सुनने में है। भजन सुनना, धार्मिक ज्ञान का श्रवण करना अथवा किसी अच्छे ज्ञानी व्यक्ति की बातों को सुनना भी कान का आभूषण होता है। हृदय का आभूषण सरलता, ऋजुता, पवित्रता और विचारों की शुद्धता है। शरीर की सक्षमता और स्वस्थता शरीर का आभूषण होता है।

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शरीर स्वस्थ हो, शक्तिशाली हो तो इसके माध्यम से आदमी किसी की सेवा व सहयोग करने का प्रयास करे। इस प्रकार आदमी को जितना संभव हो अपने जीवन में सद्गुण रूपी आभूषणों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। यह आभूषण आदमी के जीवन को कल्याणकारी भी बना सकते हैं। आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास का सरसशैली में संगान व आख्यान प्रदान किया। श्रीमती सुशीला सुराणा ने आचार्यश्री से 101 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम में अमृतवाणी के वार्षिक अधिवेशन के संदर्भ में अमृतवाणी के अध्यक्ष श्री प्रकाश बैद तथा महामंत्री श्री अशोक पारख ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने अमृतवाणी को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि वाणी का अपना सामथ्र्य होता है, वाणी से किसी दु:खी को सुखी भी बनाया जा सकता है तो किसी को दु:खी भी बनाया जा सकता है।

आध्यात्मिक, कल्याणकारी, गुरुओं की वाणी तो लोगों का कल्याण करने वाली होती है। गुरुदेव तुलसी के समय से अमृतवाणी गुरुओं की वाणी के संरक्षण का कार्य कर रही है। आज भी गुरुओं की वाणी को सुना जा सकता है। अमृतवाणी खूब धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य करती रहे। संजय-वनिता भानावत, श्री पंकज धारीवाल व श्रीमती मिनाक्षी भूतोडिय़ा ने अपने-अपने गीतों की प्रस्तुति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में बायतू मर्यादा महोत्सव के गीत को प्रस्तुत किया गया।

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