क्या चीन, भारत पर करेगा साइबर हमला, 7 साल पहले कहा था-साइबर स्पसे अब जंग का नया मैदान

नई दिल्ली। 23 मई 2017 को सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर असम के तेजपुर एयरबेस से सुखोई-30 फाइटर जेट ने उड़ान भरी। थोड़ी ही देर बाद 11 बजकर 10 मिनट पर इससे संपर्क टूट गया। इस जेट में स्क्वॉड्रन लीडर डी पंकज और फ्लाइट लेफ्टिनेंट एस अचुदेव थे। तीन दिन तक चले सर्च ऑपरेशन के बाद इस जेट का मलबा 26 मई को तेजपुर एयरबेस से 60 किमी दूर घने जंगल में मिला। इस क्रैश में दोनों पायलट्स की मौत हो गई थी। इस घटना का जिक्र इसलिए क्योंकि भारतीय सेना के इन्फॉर्मेशन सिस्टम के पूर्व डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच ने एक लेख में लिखा था कि फाइटर जेट के क्रैश होने की वजह तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि चीन का साइबर अटैक था।
साइबर वॉर को लेकर चीन का रवैया हमेशा आक्रामक रहा है। 2009 में अमेरिकी पॉलिसी थिंक टैंक रेंड की एक स्टडी आई थी। इस स्टडी में चीन के एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा गया था कि 20वीं सदी में जैसे परमाणु युद्ध था, वैसे ही 21वीं सदी में साइबर युद्ध है। कहने का मतलब ये था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए साइबर युद्ध अब बेहद जरूरी हो गया है।

15-16 जून को लद्दाख में गलवान घाटी के पास भारत-चीन की सेना के बीच हिंसक झडप भी हुई थी। उसके बाद ही भारत पर चीनी हैकर्स की ओर से साइबर अटैक होने का अंदेशा था और इसके लिए एडवाइजरी भी जारी हुई थी। हिंसक झडप के बाद चीनी हैकर्स ने 5 दिन तक 40 हजार 300 से ज्यादा बार साइबर हमले किए थे।

अमेरिका की देखा-देखी चीन ने भी शुरू किया साइबर वॉर

चीन में साइबर वॉर के लिए बाकायदा हैकर्स गु्रप हैं और माना जाता है कि दुनिया की सबसे बडी हैकर आर्मी चीन के पास है। जिसमें 3 लाख से ज्यादा हैकर्स काम करते हैं। इनमें से 93 प्रतिशत हैकर गु्रप्स को वहां की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और चीनी विदेश मंत्रालय से फंडिंग भी होती है।

चीन ने इन सबकी शुरुआत अमेरिका को देखकर की थी। दरअसल, 90 के दशक में इराक के खिलाफ अमेरिका ने युद्ध छेड़ दिया था। मकसद था कुवैत को इराक के कब्जे से छुड़ाना। इस लड़ाई में अमेरिका का साथ ब्रिटेन, फ्रांस, सऊदी अरब और कुवैत समेत 34 देशों ने दिया था। इस लड़ाई को गल्फ वॉर या खाड़ी युद्ध कहते हैं।
इस युद्ध में अमेरिकी सेना ने तकनीक का सहारा लिया था। उस समय इसे साइबर वॉरफेयर नहीं, बल्कि इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर कहते थे। यानी तकनीक के जरिए दूसरे देश के इन्फॉर्मेशन सिस्टम में सेंध लगाना और उससे सारा डेटा निकालना। इस तकनीक से अमेरिका और उसके समर्थित देशों को काफी मदद मिली थी और आखिर में जीत भी इन्हीं की हुई।
खाड़ी युद्ध में तकनीक का इस तरह इस्तेमाल देखने के बाद ही चीन को भी महसूस हुआ कि कैसे नई तकनीक, खासतौर से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक युद्ध से बचने में बहुत जरूरी भूमिका निभा सकती है। गल्फ वॉर के दो साल बाद 1993 में चीनी सेना ने अपनी स्ट्रैटेजिक गाइडलाइन में तय किया कि कैसे किसी युद्ध को जीतने के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी मददगार साबित हो सकती है।