सुधि पाठकों को याद होगा। हमने पिछले दिनों ‘बिना विचारे जो बोले, वो राहुल कहलाए शीर्षक से छपी हथाई में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के अंडक-बंडक बयानों की चर्चा की थी। हांलांकि कांग्रेसी चंगु-मंगु उन्हें फिर से अध्यक्षी देने पर उतारू हैं। फिलहाल वा पूर्व हंै इसलिए वही लिखा जो वह हैं। फिर थोप दिए गए तो अध्यक्ष लिख देंगे। देर-सवेरे थुपने तो हैं हीं। वो कब..क्या बोल जाएं..कोई कुछ नहीं कह सकते। खुद उनको पता नहीं रहता कि उन्हें उगलना क्या था-बोल क्या दिया। वो भाषण देने के लिए माईक थामते हैं तो हर कांग्रेसी का हाथ छाती पे रहता है-बाबा बहक ना जाएं। दो-चार दिन तो ठीक। उसके बाद फिर बहकन। उन की नई बहकन में-चड्डी वाले जुड गया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
वाला की दुनिया खासी लंबी-चौड़ी है। वाला की अपनी कायनात है। दोनों में खास फरक नहीं। वाला एक वचन और वालों द्वि वचन अथवा बहुवाचन। वाला में एक और वालों में दो-तीन-चार-पांच। पांच से ज्यादा भी हो सकते हंै। अगर एक-एक की गिनती करने बैठ गए तो दिन-महिने-साल गुजरते जाएंगे। साल 2019 वैसे भी जा रहा है। नए साल को लेकर मसखरियां शुरू हो गई हैं। हम भारतीयों का नववर्ष वह नही जो कल-परसों लगने वाला है। यह अंगरेजी नववर्ष है। क्यूंकि हमारी नई नस्ल पे पश्चिम की हवा हॉवी है लिहाजा हम भी उसी में बह रहे हैं। आप बताइए-हम ने कब ग्रांड पेरेंट्स डे मनाया। हम ने कब मदर्स डे मनाया। हम ने कब फादर्स डे मनाया। हमने कब फ्रेंड्स डे मनाया। हम ने कब वेलेंटाइन डे मनाया। हम ने कब रोज डे मनाया। पर नई नस्ल दिवानी। सात समंदर पार से आए ये सारे डे’ज मार्केटिंग के फंडे हैं। इन की आड में करोड़ां-अरबों का व्यापार होता है मगर नई नस्ल बह रही है तो बह रही। कोई रोकने वाला नही। रोकें तो रूकने वाली नहीं।
नए साल की मसखरियों की अपनी छटा। कोई स्वागत की तैयारी में तो भतेरे चासे लेने में मस्त। लोग तो नए साल की राशि परोसते हैं। लोगबाग नए साल का कैलेंडर हाथ में आते ही दो चीजों पर ज्यादा फोकस रखते हैं। अगर कोई सरकारी करमचारी है तो धर ‘ई छुट्टियां देखेगा। अगर शनि-अदीत को कोई छुट्टी मर रही है तो गालिएं शुरू। शनि-रवि को होली या राम-राम अथवा दिवाली और रामा-स्यामा पड जाए तो कैलेंडर बनाने वाले की खैर नहीं। सामने पड जाए तो हाथ-टांग तोडऩा तय समझो। और दूसरे वो लोग जो कैलेंडर हाथ में आते ही राशि फल देखते है। जनवरी कैसी रहेगी-फरवरी कैसी जाएगी-मार्च में क्या होगा। इस बार मसखरियों का लोकार्पण पहले हो गया। सोशल मीडिया पर लोग जम के परोस रहे हैं। किसी ने कहा आने वाले साल में ज्यादा फरक नहीं। सिर्फ 19-20 का फरक है। कोई उसे 20-20 करार दे रहा है। कुल जमा मसखरियां करने वाले कर रहे हैं।
घूम-फिर के बात ‘वाले पर आ गई। वालों की कौम को मार्शल कहा जाए तो अति नहीं। एक ढूंढो-पौने दो हजार मिलते हंै। अब तो उन्हें तलाशने की भी जरूरत नहीं। गली-गुवाड़ी में आते-घूमते दिख जाएंगे। जरूरत पडऩे पर घर के अंदर भी आ सकते हैं। चाय वाला तो ऐसा छाया कि अच्छे-भलों की छुट्टी कर दी। कई की दुकानदारी उठा दी। फाइव स्टार वालों को टपरी में बिठा दिया। यह बात दीगर है कि चाय अब कुछ ठंडी पड रही है। चायवाला तो मिसाल भर वरना जहां देखो वहां वाला और वाले नजर आ जाएंगे। साक वाला से लेकर छाछ वाला। आलू वाला से लेकर खाली बोतलें लेने वाला। भंगार वाला। बरतन वाला। टीवी वाला। दूध वाला। दही वाला। अखबार वाला। रद्दी वाला। किताब वाला। तांगे वाला। ऑटो वाला। ढाबे वाला। कलम वाला। खड्डी-सिमेंट वाला। कुल जमा इतने वाले कि गिनना मुहाल। राहुल बाबा ने वाला-वालों में एक वाला और जोड़ दिया-चड्डी वाला-चड्डी वाले।
हमने पेंट-पतलून वालों के बारे में सुना। जींस वाला सुना। शर्ट-टी शर्ट वाला सुना। चश्मे वाला सुना। टाई वाला सुना। नमकीन वाला सुना। राहुल बाबा ने चड्डी वाले-वालों का लोकार्पण कर दिया। असम में कल एक सभा के दौरान उन्होंने आरएसएस को चड्डी वाला बता दिया। वो पहले संघ को बापू का हत्यारा बता कर कोर्ट के चक्कर काट चुके हैं। बाबू भूल गए कि एक जमाने में संघ के कार्यकर्ता निक्कर धारण किया करते थे अब पतलून पहनते हैं मगर राहुल बाबा ने उन्हें चड्डी पहना दी। वो भूल गए कि चड्डी पहनने वाला मोगली कहा जाता है। चड्डी-लंगोट किसी पार्टी या संगठन के गणवेश का हिस्सा हो। हमने तो नहीं सुना। राहुल की भटकी जुबान ने चड्डी वालों का लोकार्पण कर दिया तो कौन क्या कर सकता है। लोगबाग उन्हें बिना विचारे जो कहे, वो राहुल कहलाए की संज्ञा पहले ही दे चुके हैं।