राजस्थान हाईकोर्ट सख्त : जुर्माना और 11 पेड़ लगाने के निर्देश

राजस्थान हाईकोर्ट
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जयपुर। न्याय में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बार फिर अनूठा और ऐतिहासिक आदेश पारित किया है। बेदखली के एक मामले में, जो पिछले 6 साल से अधिक समय से लंबित है, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतिम अवसर देते हुए न केवल 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र में 11 छायादार पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने का भी निर्देश दिया है। यह मामला एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 9887/2025 से संबंधित है, जिसमें सेंट्रल एकेडमी एजुकेशन सोसाइटी जयपुर, अपने अधिकृत निदेशक सुरेश माथुर के माध्यम से याचिकाकर्ता है, जबकि राजेंद्र मेहता प्रतिवादी हैं।

यह विवाद बीकानेर के रेंट ट्रिब्यूनल में वर्ष 2019 से लंबित एक बेदखली आवेदन (राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 9 के तहत) से जुड़ा है। याचिकाकर्ता सेंट्रल एकेडमी ने ट्रिब्यूनल के 21 मई 2025 और 10 जून 2025 के आदेशों को चुनौती दी थी, जिनके तहत उनकी गवाही बंद कर दी गई थी और उन्हें गवाह हंसनाथ यादव को पेश करने का कोई और अवसर नहीं दिया गया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के.एन. शर्मा और यशपाल गर्ग ने दलील दी कि प्रतिवादी-मकान मालिक की गवाही 14 जनवरी 2025 को पूरी हो गई थी । इसके बाद, उनके गवाह सुरेश माथुर की गवाही 19 मई 2025 को पूरी हुई। उन्होंने बताया कि उनका एक अन्य महत्वपूर्ण गवाह महावीर प्रसाद शर्मा कैंसर से पीड़ित होने के कारण 28 अप्रैल 2025 को निधन हो गया।

इसके बाद उन्होंने हंसनाथ यादव को गवाह के रूप में पेश करने का आवेदन किया, लेकिन जब 21 मई 2025 को गवाही की तारीख थी, तो गवाह गोरखपुर में होने के कारण पेश नहीं हो सके, जिसके बाद उनकी गवाही बंद कर दी गई। याचिकाकर्ता ने एक अंतिम अवसर की मांग की थी, जिसे ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया था। वहीं, प्रतिवादी के अधिवक्ता जय प्रकाश गुप्ता ने इन तर्कों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने बताया कि बेदखली का आवेदन 2019 से लंबित है और याचिकाकर्ता द्वारा लगातार कार्यवाही में देरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने पहले भी इस मामले को एक महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया था, लेकिन याचिकाकर्ता की ढिलाई के कारण ऐसा नहीं हो सका।

उन्होंने यह भी कहा कि नए गवाह को पेश करने का अवसर मिलने के बावजूद कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि उनका एकमात्र उद्देश्य कार्यवाही में देरी करना था। न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढंड ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। कोर्ट ने स्वीकार किया कि गवाह पेश करने में याचिकाकर्ता की ओर से लापरवाही हुई थी। हालांकि, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कुछ सख्त शर्तों के साथ एक अंतिम अवसर देना उचित समझा। इसके तहत याचिकाकर्ता को ट्रिब्यूनल के समक्ष अगली तारीख पर या उससे पहले प्रतिवादी को 10,000/- रुपए का हर्जाना देना होगा।

याचिकाकर्ता को अपने आस-पास के सार्वजनिक क्षेत्र में 11 छायादार पेड़ लगाने होंगे, उनकी देखभाल करनी होगी और इस संबंध में ट्रिब्यूनल के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। कोर्ट ने इस शर्त को बड़े जनहित और सार्वजनिक भलाई के लिए बताते हुए कहा कि यह पहल शहर और आसपास के समुदाय को दशकों और सदियों तक अनगिनत लाभ प्रदान करेगी, जिससे भविष्य की पीढ़ियों को स्वच्छ, ताजी ऑक्सीजन युक्त वातावरण मिलेगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता इन शर्तों का पालन करने में विफल रहता है, तो उसे कोई और अवसर नहीं दिया जाएगा और ट्रिब्यूनल कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र होगा।

ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया गया है कि वह इस मामले को एक सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करे और गवाही दर्ज करने के लिए हर संभव प्रयास करे। यदि गवाही अगली तारीख पर दर्ज नहीं होती है, तो एक छोटी तारीख तय की जा सकती है, लेकिन किसी भी स्थिति में अगली तारीख पर साक्ष्य पेश करने में विफल रहने पर याचिकाकर्ता को कोई और अवसर नहीं दिया जाएगा।अंत में, हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल से लंबित बेदखली आवेदन को यथाशीघ्र निपटाने के लिए सभी संभव प्रयास करने की अपेक्षा की है । यह फैसला न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह न केवल कानूनी विवादों को हल करेगी, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को भी बढ़ावा देगी।

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