बिहार में 15 लाख लोग बाढ़ की चपेट में

नई दिल्ली। कोरोना का कहर झेल रहा बिहार एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है। वैसे तो बिहार के लिए बाढ़ कोई नई चीज नहीं है। अमूमन हर साल बिहार को बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। यह सालों से चली आ रही बेहद दुखदाई परंपरा है जिसको लेकर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है। सरकार हर साल दावे करती है और हर साल बाढ़ उन तमाम दावों को बहा ले जाती है।

पिछले साल भी बिहार में बाढ़ आफत बनकर आई थी। करीब 139 लोगों की मौत हुई थी। राज्य के 17 जिलों के करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी।

तब तो पटना भी जलमग्न हो गया था। सैकड़ों घरों में पानी घुस गया था। लाखों लोग फंस गए थे। कई दुकानें, अस्पताल, बाजार, शोरूम सब जलमग्न हो गए थे। 23 जुलाई 2019 को लोकसभा में गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, 2016 से 2019 के बीच बाढ़ से बिहार में 970 लोगों की जान गई थी।

पिछले दो दशक की बात करें तो बिहार के लिए 2017, 2008, 2007, 2004 और 2002 सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाले साल रहे। 2017 में 514 लोगों की जान गई थी। 2008 में 18 जिले और करीब 50 लाख लोग बाढ़ की चपेट में थे। 258 लोगों की मौत हुई थी। 2007 में 22 जिलों में बाढ़ ने कहर बरपाया था, 2.4 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और 1287 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।

राज्य के 11 जिले प्रभावित हैं, जिसका असर करीब 15 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी पर पड़ा है। कम से कम 625 पंचायतों में पानी भर गया है। वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी तबाह हो गई है। अभी तक 8 लोगों की मौत हुई है। पश्चिम चम्पारण में 4 और दरभंगा में चार लोगों की मौत हुई है।

आखिर हर साल बाढ़ क्यों आती है

बिहार में बाढ़ और नदियों पर लंबे समय से काम कर रहे प्रोफेसर दिनेश कुमार मिश्रा, बाढ़ को लेकर एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। वे बाढ़ को आपदा नहीं मानते हैं, वे बताते हैं कि उत्तर बिहार के हिस्से हिमालय से करीब हैं और वहां से निकलने वाली नदियों की वजह से पानी आना स्वाभाविक है, यह नेचुरल प्रॉसेस है।

पहले गांव में पानी आता था और चला जाता था, गांव के बुजुर्ग पानी से डरते नहीं थे, उन्हें पता होता था कि हमें एक-दो महीने तकलीफ होगी फिर पानी वापस चला जाएगा। तब उतना नुकसान नहीं होता था, जितना आज होता है। इसके लिए सरकार का कुप्रबंधन और गलत नीतियां जिम्मेदार हैं।

वे कहते हैं कि सरकार ने नदियों के बहाव को रोकने के लिए बांधों का निर्माण तो कर दिया, लेकिन इस बात को लेकर कोई नीति नहीं बन पाई कि जमा हुए पानी का क्या होगा, कितने दिन पानी जमा रहेगा। पानी का बहाव रुकने से मिट्टी भी बांध के दूसरी तरफ ही रह जाती है, इससे नदी पर मिट्टी की परत बढ़ती जाती है। इससे नदियों का जलस्तर बढ़ते जाता है और पानी या तो बांध के ऊपर से निकलता है या तोड़ देता है, जिससे गांवों में पानी भर जाता है।

वे कहते हैं कि तटबंध, बांध, बैराज बनाकर नदियों के दायरे को सीमित कर दिया गया, जिससे फायदे के बजाए केवल नुकसान हुआ। तटबंधों के बनने से नदियों व लोगों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी गयी। बाढ़ को रोकने के लिए बने तटबंधों के कारण नदियों में गाद इक_ा होने लगी, जिससे नदी का लेवल ऊपर उठता गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जो पानी समुद्र में जाना चाहिए, वह पानी गांवों में जाता है और बाढ़ का रूप लेता है।