
जयपुर। आपातकाल को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन वह दौर आज भी उन लोगों की स्मृतियों में जीवित है, जिन्होंने उस तानाशाही व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, जो उस समय जनसंघ की युवा इकाई ‘राजस्थान युवा संघ’ के प्रदेश अध्यक्ष थे। आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए तिवाड़ी न केवल जेल गए, बल्कि उन्होंने अपने केस की कोर्ट में स्वयं पैरवी कर रिहाई भी हासिल की।
हिन्दुस्थान समाचार से खास चर्चा में तिवाड़ी बताते हैं, “26 जून 1975 को मुझे सीकर में डॉ. के.डी. शर्मा और नंदलाल शास्त्री के साथ डीआईआर (भारत रक्षा कानून) के तहत गिरफ्तार किया गया। हमें जयपुर जेल में रखा गया। कोर्ट में जब पेशी होती, तो हमें जिस ट्रेन के डिब्बे में ले जाया जाता, उसमें कोई दूसरा सवारी करने को तैयार नहीं होता था। वकील इतने भयभीत थे कि कोर्ट से बाहर चले जाते। किसी ने मेरा केस लेने से इनकार कर दिया, तब मुझे खुद अपनी पैरवी करनी पड़ी।”
उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने कोर्ट में तर्क दिया कि अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगाना अपराध नहीं है, तो प्रतिबंध हटाने की बात करना अपराध कैसे हो सकता है? कोर्ट ने यह तर्क स्वीकार किया और उन्हें रिहा कर दिया। देश में यह पहली बार था जब एक व्यक्ति ने खुद की पैरवी करते हुए आपातकाल के तहत लगाए गए आरोपों से मुक्ति पाई। इस ऐतिहासिक फैसले की प्रतियां कई अदालतों में पेश की गईं। उन्होंने कहा कि सरकार के रूख से समाचार पत्र, न्यायापालिका, ब्यूरोक्रेसी और देश की आम जनता भयभीत थी। देश की जेलें काल कोठरी बन गई थी। निर्दोष लोगों को जेलों में ठूंसा जा रहा था। उन्होंने बताया कि पुलिस ने मेरे उपर आरोप लगाया था कि मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने की बात कही। इसी आधार पर मुझे भारत रक्षा कानून (डीआईआर) के तहत जेल में बंद किया गया था।
जेल से रिहाई के तुरंत बाद फिर से वारंट
तिवाड़ी ने याद करते हुए बताया कि जैसे ही वे जेल से बाहर आए, मीसा (MISA) का वारंट आ गया। इसके बाद वे 16 महीने तक भूमिगत रहकर आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करते रहे। झुंझुनूं में गिरफ्तारी के दौरान उन्हें बुरी तरह पीटा गया। मैं घायल हालत में ट्रेन के डिब्बे में फेंका गया। सीकर स्टेशन पर सफाई कर्मचारियों ने मुझे हॉस्पिटल पहुंचाया, लेकिन संभावित गिरफ्तारी के डर से मुझे वहां से भी भागना पड़ा। इस घटना के विरोध में राज्यभर के मीसा और डीआईआर बंदियों ने एक दिन का उपवास किया और सीकर बार एसोसिएशन ने पहली बार इस अमानवीयता के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया।
संघ का सबसे बड़ा योगदान
तिवाड़ी का मानना है कि उस दौर में राजनीतिक दलों की संरचनाएं लगभग ध्वस्त हो गई थीं। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही था जो आपातकाल के विरोध में मजबूती से खड़ा रहा। संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे अधिक बलिदान दिया। लाखों लोग जेलों में डाले गए। उन्होंने जयप्रकाश नारायण की भूमिका को भी ऐतिहासिक बताया।
“आपातकाल क्यों लगता है?”
तिवाड़ी ने आपातकाल के मूल कारणों पर भी बेबाक टिप्पणी की। जब कोई नेता या शासक अपने पास सारी शक्तियां केंद्रित कर लेता है, तब आपातकाल जैसे हालात बनते हैं। इंदिरा गांधी ने यही किया। देवकांत बरुआ को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया, जो कहता था ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’। राष्ट्रपति फखरूउद्दीन अली अहमद उनके आदेशों पर रबर स्टांप की तरह काम कर रहे थे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी छीनी गई। वरिष्ठता की अनदेखी कर सिद्धार्थ शंकर को सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया।