
बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति का दिमाग धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और इसकी वजह से याददाश्त कमजोर होने और फोकस कम होने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, जब ये परेशानियां अगर आपके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने लगें, तब यह चिंता का विषय बन सकती हैं। डिमेंशिया के कारण भी कॉग्निटिव हेल्थ बिगडऩे लगती है, जिसके कारण आपके जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक, डिमेंशिया एक साधारण टर्म है, जो कॉग्निटिव फंक्शन को प्रभावित करने वाली बीमारियों के समूह के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर, डिमेंशिया की समस्या बुजुर्गों के साथ होती है, लेकिन हमारी रोज की कुछ आदतों की वजह से यह समस्या कम उम्र में भी शुरू हो सकती है। इस आर्टिकल में हम उन्हीं आदतों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे, जो डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ाने का काम करती हैं। आइए जानें। डिमेंशिया
स्मोकिंग

स्मोकिंग सेहत के लिए कितना खतरनाक है यह हम सभी जानते हैं। इससे सिर्फ फेफड़ों और दिल को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि दिमाग भी प्रभावित होने लगता है। एक स्टडी के मुताबिक, स्मोक करने से दिमाग सिकुडऩे लगता है, जिससे कॉग्निटिव फंक्शन पर असर पड़ता है। इसलिए स्मोकिंग डिमेंशिया के खतरे को बढ़ाता है। इसके अलावा, स्मोक करने से दिमाग का ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है, जिसके कारण कॉग्निटिव फंक्शन्स में परेशानी होने लगती है।
सेडेंटरी लाइफस्टाइल

सेडेंटरी लाइफस्टाइल, यानी गतिहीन जीवनशैली। एक ही जगह लंबे समय तक बैठे रहना, एक्सरसाइज न करें, किसी भी प्रकार की फिजिकल एक्टिविटी में कम से कम भाग लेना सेडेंटरी लाइफस्टाइल का उदाहरण हैं। इनकी वजह से कॉग्निटिव फंक्शन घटने लगती है। साथ ही, इसकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉइड और हाई ब्लड शुगर की समस्या भी हो जाती है, जो डिमेंशिया के रिस्क फैक्टर्स हैं।
खराब डाइट
हमारे खान-पान का प्रभाव हमारे दिमाग पर भी पड़ता है। इसलिए खाने में अनहेल्दी फैट्स, शुगर और नमक की मात्रा ज्यादा होने की वजह से डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है। इन फूड्स की वजह से दिमाग में सूजन बढऩे लगती है, जिसके कारण कॉग्निटिव फंक्शन से जुड़ी दिक्कतें होने लगती हैं। इसकी वजह से कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाता है, जो स्ट्रोक की वजह बन सकता है।
नींद पूरी न होना
नींद पूरी न होने की वजह से या नींद में बार-बार खलल पडऩे से भी कॉग्निटिव फंक्शन से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए नींद पूरी न होने की वजह से भी डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। नींद की कमी की वजह से दिमाग थक जाता है और बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाता। इसके कारण भी कॉग्निटिव डिक्लाइन से जुड़ी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। इनसोम्निया और स्लीप एपनिया नींद पूरी न होने की अहम वजहें हो सकती हैं।
सामाजिक गतिविधियों में शामिल न होना
सोशल एक्टिविटीज में शामिल न होना या अपने दोस्तों व सहकर्मियों से न मिलने-जुलने की वजह से भी डिमेंशिया का रिस्क बढ़ जाता है। दरअसल, सोशल लाइफ एक्टिव रहने से दिमाग भी एक्टिव रहता है, लेकिन इसकी कमी की वजह से कॉग्निटिव फंक्शन घटने लगता है। इतना ही नहीं, लोगों से न मिलने-जुलने की वजह से अकेलापन बढऩे लगता है, जिसके कारण डिप्रेशन का जोखिम भी बढ़ता है, जो डिमेंशिया का रिस्क फैक्टर है।
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