
लड्डुओं से पहले लगता था इस खास चीज का भोग
नई दिल्ली। पूरे देश में इस समय तिरुपति बालाजी मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल, यहां विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर के प्रसाद को लेकर हुए चौंकाने वाले खुलासे के बाद से भी सिर्फ आंध्र प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सियासत तेज हो गई है। दरअसल, मंदिर के प्रसाद को लेकर ऐसा दावा किया गया कि प्रसाद के लड्डू बनाने के लिए घटिया सामग्री और जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया था। ऐसे में अब इसे लेकर पूरे देश में चर्चा जारी है। तिरुपति बालाजी का सिर्फ मंदिर ही नहीं, बल्कि इसका प्रसाद भी पूरी दुनिया में मशहूर है। दरअसल, मंदिर में प्रसाद के रूप में लड्डू दिए जाते हैं। यहां बंटने वाला प्रसाद बेहद खास तरीके से बनाया जाता है और इसे बनाने की परंपरा करीब 200 साल पुरानी है। ऐसे में प्रसाद को लेकर जारी विवाद के बीच आइए जानते हैं क्यों खास है तिरुपति बालाजी का प्रसाद और इससे जुड़ी अन्य दिलचस्प बातें।
क्यों खास है मंदिर का प्रसाद?

तिरुपति मंदिर में मिलने वाला प्रसाद यानी लड्डू बेहद खास माना जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद के बिना मंदिर के दर्शन पूरे नहीं माने जाते हैं। प्रसाद के लड्डू को पोटू नामक एक रसोईघर में बनाए जाते हैं। यहां रोजाना लगभग 8 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं। साथ ही इसे बनाने के लिए एक खास तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।
खास सामग्री से बनाए जाते हैं लड्डू

मंदिर का प्रसाद बनाने के लिए एक तरीके का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे दित्तम कहा जाता है। इस शब्द का इस्तेमाल प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री और उसके अनुपात के लिए किया जाता है। अब तक दित्तम में 6 बार बदलाव किया जा चुका है। वर्तमान में तैयार होने वाले प्रसाद में बेसन, काजू, इलायची, घी, चीनी, मिश्री और किशमिश का इस्तेमाल किया जाता है। इन लड्डू को बनाने के लिए पोटू में रोजाना 620 रसोइए काम करते हैं। इन लोगों को पोटू कर्मीकुलु के नाम से जाना जाता है। इन रसोइए में से 150 कर्मचारी रेगुलर होते हैं, जबकि 350 कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम करते हैं। वहीं, इसमें मे से 247 शेफ हैं।
कई तरह के होते हैं लड्डू
आमतौर पर मंदिर के लिए अलग-अलग तरह के प्रसाद तैयार किए जाते हैं, लेकिन दर्शन करने आए भक्त गणों को प्रोक्तम लड्डू कहा जाता है। वहीं, किसी विशेष पर्व या त्योहार के मौके पर श्रद्धालुओं को अस्थानम लड्डू बांटे जाते हैं, जिसमें काजू, बादाम और केसर ज्यादा मात्रा में होता है। जबकि कुछ विशेष भक्तों के लिए कल्याणोत्सवम लड्डू बनाए जाते हैं।
200 साल पुरानी प्रसाद की परंपरा
मंदिर में प्रसाद बांटने की यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है। साल 1803 में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ने मंदिर में प्रसाद में बूंदी बांटना शुरू किया था। बाद में साल 1940 में इस परंपरा को बदलकर लड्डू बांटना शुरू कर दिया गया। इसके बाद साल 1950 में प्रसाद को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली मात्रा तय की गई और आखिरी बार साल 2001 में दित्तम में बदलाव किया गया, जो वर्तमान में भी लागू है।
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