राजस्थानी भाषा और शिक्षा नीति: सरकार की दुविधा और संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी

राजस्थानी भाषा और शिक्षा नीति
राजस्थानी भाषा और शिक्षा नीति

राजस्थान में शिक्षा प्रणाली को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस फिर से गर्मा रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत राज्य सरकार ने आगामी सत्र से स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू करने की घोषणा की है, लेकिन यह विरोधाभास आश्चर्यजनक है कि राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) में राजस्थानी भाषा को अब तक शामिल नहीं किया गया है। जबकि, गुजराती, पंजाबी, सिंधी और उर्दू जैसी अन्य भाषाओं को मान्यता प्राप्त है।

राजस्थानी भाषा के अधिकारों की अनदेखी

याचिकाकर्ताओं पदम मेहता और प्रोफेसर डॉ. कल्याण सिंह शेखावत द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में तर्क दिया गया है कि राजस्थान में 4.62 करोड़ से अधिक लोग राजस्थानी भाषा बोलते हैं, फिर भी इसे रीट परीक्षा के पाठ्यक्रम से बाहर रखा गया है। यह न केवल राज्य की सांस्कृतिक विरासत के लिए एक गंभीर झटका है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 350A और शिक्षा का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन भी है, जो मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देने की वकालत करता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और राजस्थान की हकीकत

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी, समतामूलक और सुलभ बनाना है। इसमें स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात कही गई है। लेकिन, राजस्थान में इसे लागू करने की दिशा में अब तक ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। हालांकि, शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने अब स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू करने की घोषणा की है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि राजस्थानी भाषा को इसका कितना लाभ मिलेगा।

दूसरी ओर, राजस्थान विधानसभा ने दो दशक पहले राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन इसे केंद्र सरकार द्वारा अभी तक लागू नहीं किया गया। यह निर्णय न केवल शिक्षा बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी राजस्थानी भाषा को हाशिए पर रखता है।

रीट में राजस्थानी को स्थान क्यों नहीं?

रीट परीक्षा राज्य के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती के लिए आयोजित की जाती है। इस परीक्षा में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही है, लेकिन सरकार अब तक इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई है। यह विरोधाभासी है कि एक ओर सरकार स्थानीय भाषाओं में शिक्षा शुरू करने की घोषणा कर रही है, वहीं दूसरी ओर रीट परीक्षा में राजस्थानी भाषा को स्थान नहीं मिल रहा।

सरकार की इस दुविधा का कारण क्या है? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है, या फिर राजनीतिक दबाव? क्या इसे राजस्थान की सांस्कृतिक और भाषाई अस्मिता की अनदेखी के रूप में देखा जाए?

सरकार को स्पष्ट नीति अपनानी होगी

रीट परीक्षा में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग केवल भाषा प्रेम या सांस्कृतिक संरक्षण का विषय नहीं है, बल्कि यह लाखों विद्यार्थियों और शिक्षक अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़ा मसला है। जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, तो सरकार को इसे आधे-अधूरे रूप में लागू करने के बजाय पूर्ण प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।

यदि राज्य सरकार सच में स्थानीय भाषाओं के उत्थान के लिए गंभीर है, तो उसे राजस्थानी भाषा को रीट परीक्षा में शामिल करने के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली में इसका उचित स्थान सुनिश्चित करना चाहिए। अन्यथा, यह घोषणा केवल एक राजनीतिक बयान बनकर रह जाएगी, जिसका ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

निष्कर्ष

राजस्थान में शिक्षा नीति को लेकर जारी यह असमंजस सरकार की दोहरी नीति को उजागर करता है। एक ओर स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की घोषणा हो रही है, तो दूसरी ओर रीट में राजस्थानी भाषा को दरकिनार किया जा रहा है। यह राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई अस्मिता के लिए एक गंभीर चुनौती है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सर्वोच्च न्यायालय के नोटिस के बाद राज्य सरकार इस दिशा में क्या ठोस कदम उठाती है।

बलवंत राज मेहता
बलवंत राज मेहता

– बलवंत राज मेहता ,वरिष्ठ पत्रकार

 

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