राजस्थली: हस्तशिल्पियों के लिए स्वर्णिम मंच, परंपरा और नवाचार का संगम

राजस्थली आर्ट एम्पोरियम
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– बलवंत राज मेहता , वरिष्ठ पत्रकार

जयपुर। राजस्थान की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा को नया आयाम देते हुए राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने बुधवार को राजस्थली आर्ट एम्पोरियम के नव स्वरूप का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने हस्तशिल्प उत्पादों का अवलोकन करते हुए पारंपरिक शिल्प को अधिकतम विपणन अवसर उपलब्ध कराने और इससे जुड़े कारीगरों को व्यावहारिक लाभ दिलाने पर विशेष जोर दिया। राजस्थान अपनी कला, संस्कृति और हस्तशिल्प की विशिष्ट पहचान के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ के कारीगरों द्वारा निर्मित ब्लू पॉटरी, कठपुतली, बंधेज, लाख की चूड़ियाँ, मीनाकारी और संगमरमर की कलाकृतियाँ सदियों से देश-विदेश में सराही जाती रही हैं। लेकिन आधुनिक प्रतिस्पर्धा और बदलते बाजार परिदृश्य में इन्हें संरक्षण और नए मंचों की आवश्यकता थी। राजस्थली का नया स्वरूप इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिससे प्रदेश के कारीगरों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का प्रदर्शन करने का अवसर मिलेगा।

राजस्थली आर्ट एम्पोरियम
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कार्यक्रम में उपस्थित उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने स्थानीय कारीगरों से संवाद करते हुए उनके हस्तशिल्प कार्यों को सराहा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्वदेशी’ अभियान से प्रदेश के कारीगरों और शिल्पकारों को वैश्विक मंच तक पहुँचने में नई राह मिली है। राज्य सरकार के सहयोग से पारंपरिक हस्तशिल्प को संरक्षित करने और उसे आधुनिक बाजार के अनुरूप विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। राजस्थली के इस नए रूपांतरण से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार प्रदेश की पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देने और कारीगरों को सशक्त बनाने के लिए ठोस योजनाएँ लागू कर रही है। हस्तशिल्प उत्पादों का डिजिटलीकरण, ऑनलाइन विपणन और आधुनिक व्यापारिक रणनीतियों का समावेश इस क्षेत्र के विकास में सहायक हो सकता है।

राजस्थली आर्ट एम्पोरियम
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हालांकि, इस पहल की वास्तविक सफलता तभी सुनिश्चित होगी जब कारीगरों को सीधे लाभान्वित करने वाली योजनाएँ प्रभावी रूप से लागू की जाएँ और उन्हें उचित मूल्य, प्रशिक्षण और वैश्विक बाजार तक पहुँच उपलब्ध कराई जाए। यदि सरकार इस दिशा में निरंतर कार्य करे, तो निस्संदेह राजस्थान का हस्तशिल्प उद्योग नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। राजस्थली का यह नव स्वरूप न केवल कारीगरों के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बनेगा, बल्कि प्रदेश की गौरवशाली परंपराओं को भी सहेजने और संवारने का कार्य करेगा।

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